बोलना भी है मना सच बोलना तो दरकिनार ( सूरत ए हाल )
डॉ लोक सेतिया
बहुत शोर सुना विश्व में भारत का नाम रौशन हो रहा है। जाने ये क्या मानसिकता की बात है हम अपने बारे खुद सामने अपनी नज़र से नहीं देखते कोई विदेशी कहता है तो यकीन कर लेते हैं। मगर यहां भी मीठा मीठा गप कड़वा कड़वा थू की बात है। विदेशी हमारे बिगड़ते स्वस्थ्य बदहाल आर्थिक हालात शिक्षा की बिगड़ती दशा से लेकर देश में आम लोगों की सुरक्षा विशेषकर महिलाओं के शोषण पर नकारात्मक टिप्पणी करते हैं अपने नागरिकों को भारत आने से पहले सचेत करने को मगर हम अपमानित नहीं महसूस करते हैं। विदेश से आने वाले हर किसी को आकर शक भरी नज़र से देखते हैं मगर हम चंद रुपयों की चाह में इस को स्वीकार करते हैं। घटनाएं घटती हैं तो राज्य सरकार देश की सरकार ब्यान जारी करती है भविष्य में ये नहीं होने दिया जायेगा। इक इमारत में आग लगती है तो हमारे अग्नि शमन विभाग के पास सीढ़ी तक छोटी पड़ जाती है। अपने देश के नागिकों की जान की सुरक्षा की कीमत कुछ भी नहीं है।
ये खबर भी विदेशी संस्था देती है कि इन चुनावों में पिछली बार से अधिक संख्या में टिकट हर दल ने अपराधी छवि वाले लोगों को बांटे हैं और चुनाव घोषित होने के बाद जब हमारे टीवी चैनल मज़ाकिया शायरी और अनावश्यक हस्ताक्षेप एंकर करते हुए रौब गांठते हैं तब कोई विदेशी खबरची आंकड़े जमा कर सूचना देता है इस बार संसद में अपराधी पहले से कितने अधिक बढ़ जाएंगे। जब सत्ता मिलने का मतलब ही दौलत की बरसात होना हो तब अपराधी तत्व किसी और जगह खतरे उठाने क्यों जाएंगे। अब उनको जेल नहीं सुरक्षा उपलब्ध करवाई जाएगी। करिये अगर गर्व कर सकते हैं तो ऐसी तमाम बातों को जो शायद आजकल कोई समाचार ही नहीं हैं। इक आतंकवाद की दोषी चुनाव लड़ती है जीत जाती है क्या इसी तरह से हम आतंकवाद को मिटाना चाहते हैं। जिस तरह की भाषा गाली गलौच से लेकर बदज़ुबानी करने तक चुनाव में तथाकथित देश के जाने माने नेता देते रहे हैं उसको लेकर क्या देश के शिक्षित लोग थोड़ा भी चिंतित हैं। मगर कोई विदेश में बैठा लिखने वाला अचरज व्यक्त करता है इस महान देश के सच के झंडाबरदार आंखें कान बंद कर खुद अपनी बढ़ाई करने में खोये हुए हैं। नहीं उनकी हर बात सच साबित नहीं हो सकती मगर उनका आगाह करना गैर वाजिब भी नहीं है कि हम कितनी गलत दिशा को जाते जा रहे हैं। कैसे गुंडे बदमाश नेता बना लिए हैं और हम उनको जितवा कर खुद अपने लिए बड़ा खतरा मोल ले रहे हैं। चुनाव आयोग सर्वोच्च न्यायालय बेबस हैं और जब यही अपराधी किसी संवैधानिक पद पर नियुक्त किये जाते हैं तब न्याय कानून की धज्जियां उड़ती हैं क्योंकि उनको जकड़ने को उन्हीं की इजाज़त की ज़रूरत होती है। मगर आप देखेंगे जल्द ही संविधान की शपथ लेकर सबको समानता और न्याय देने की पक्षपात नहीं करने की बात भी फिर कही अवश्य जाएगी निभाई कभी नहीं जाएगी। जो अपराधी अपने दल में शामिल हो विजयी हुआ उसको कहा जाएगा जनता ने माफ़ कर दिया या बेगुनाही का सबूत है। अगर ऐसा है तो पुलिस थाने अदालत को बंद कर सभी फैसले जनता से जनमत लेकर किये जा सकते हैं भले नतीजा बड़े बड़े अपराधी निर्णय छीन सकते हैं या खरीद सकते हैं। ये ज़हर मीठा लगता है आपको तो लगे मगर इसका असर अच्छा हो नहीं सकता है।
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