आई लव फतेहाबाद कथा ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया
ये कथा अभी लिखी जा रही है इसलिए मौलिकता और कभी नहीं छपने की बात बिना घोषित यकीन कर लेना । खबर पढ़ते ही मुझे ज्ञान की अनुभूति हुई कि ये कथा लिखनी ज़रूरी है और पढ़ने से बेहद कल्याणकारी होनी भी है । हरियाणा सरकार मुझसे सम्पर्क कर इसके अधिकार हासिल कर सकती है । खबर है कि अपने शहर फतेहाबाद में आने जाने के सभी रास्तों पर " आई लव फतेहाबाद " लिखवाया जाएगा । इस का असर दूरगामी होने की संभावना है । शहर से प्यार उसकी गलियों से सड़कों से ही नहीं आपस में एक दूजे से भी प्यार होगा ही । प्यार ही प्यार बेशुमार । इस कथा से पहले इक और कथा की बात बताना उचित होगा , पहले उस पुरानी कथा की बात ध्यानपूर्वक पढ़ना समझना ।
नाम नहीं लेते अब जो लोग नहीं हैं उनकी सच्ची कथा है । शहरी मंत्रालय की मंत्री संसद में ब्यान देती है दिल्ली कोई रहने लायक जगह नहीं है और जिनकी यहां ज़रूरत नहीं उनको वापस अपने राज्य चले जाना चाहिए । बाहरी लोगों ने आकर दिल्ली को बर्बाद किया है मुझे इस राजधानी में रहना भाता नहीं है । ये आपत्तिजनक बात थी मगर लोग ताली बजाते रहे मामला पर्दे के सामने और पीछे का अंतर कोई नहीं समझता है । ग़ालिब की बात याद आई थी कौन जाता है दिल्ली की गलियां छोड़कर । अगले दिन इक अख़बार के मुख्य संपादक जी का संपादकीय लेख वही बात दोहराता हुआ पढ़ना पढ़ा । जाने क्यों मुझे दिल्ली अच्छी लगती थी और आज भी अच्छी लगती है भले दिल्ली को छोड़े करीब चालीस साल होने को हैं । दिल अभी भी दिल्ली को चाहता है आई लव दिल्ली । फतेहबादी हूं कोई शक नहीं पला बढ़ा रहा दिल्ली गया वापस भी आया दोनों आंखों की तरह एक समान है । मैंने संपादक जी को अपने पैड पर हाथ से खत लिखा और बताया मुझे आपकी बात अनुचित लगी है । मेरा यकीन है आप एम पी से आये थे मगर सब मिला दिल्ली से नाम शोहरत दौलत अन्यथा कोई नहीं जानता था कौन हैं आप । अपनी मुहंबोली बहन का रिश्ता गांव की बहन की बदहाली देख इक उद्योगपति अख़बार मालिक ने उसे समझाया अपने पति को ये शहर छोड़ दिल्ली आने को मनाओ नहीं तो तुम्हारे बच्चे भूखे रहेंगे । खैर संपादक जी मान गए कि इंग्लिश अख़बार में नहीं इक हिंदी का अख़बार मिले तो चला आऊंगा और उनके लिए हिंदी भाषा का अख़बार निकालना शुरू किया । अब आप जिस दिल्ली में रहते उसी को खराब बताते हैं और मेरा मानना है आपको कभी वापस नहीं लौटना है ।
खरी बात कड़वी लगी भी इतनी कि अख़बार में नहीं छापकर मुझे मेरा ही खत वापस भेजा ऊपर इक लाइन लिखी थी " ज़रूरी नहीं कि हर बात आपकी समझ आ ही जाये "। बुरा लगा ये कोई तरीका नहीं था पहले भी लिखता था उनका जवाब कभी कॉलम में तो एक बार संपादकीय लेख की शुरुआत ही की थी , फतेहाबाद के लोक सेतिया हैं लिखते रहते हैं कभी कॉलम में तो कभी मुझे भी । ये ढंग सभ्य नहीं लगा था बस रख दिया था फाइल में । शायद साल से अधिक समय बाद इक खबर पढ़ने को मिली शहरी मंत्रालय का अख़बार वालों को बेहद कम कीमत पर दिल्ली में प्लॉट्स आबंटन को लेकर जो नियमानुसार नहीं था । साथ नाम पते दिए हुए थे जिनको फायदा पहुंचाया गया । मैंने इन का वापस मुझी को लौटाया मेरा खत तलाश किया और उसके पीछे इतना ही लिखा मैंने । आज अख़बार में ये समाचार पढ़ कर सब समझ आ गया है जो अपने सही कहा था मुझ नासमझ को समझ ही नहीं आया था । बंदरबांट कहूं या अपनों को रेवड़ियां देना मगर आपको समझा था पत्रकार आप तो धंधे वाले कारोबार निकले । हिम्मत की बात है उनका फोन आया मुझे नहीं पता था सोसाइटी या संगठन ने कैसे शामिल कर लिया मुझे भी । अभी उनकी आत्मा दिल्ली में भटकती होगी क्योंकि उनका वो घर अभी वहीं है दिल्ली में ।
आई लव फतेहाबाद कथा यहां से शुरू होती है । इक आशिक़ रोज़ महबूबा को सोशल मीडिया पर संदेश भेजा करता था संक्षेप में , आई एल जानू लिखता था । शहर के हर रस्ते पर आई लव फतेहाबाद पढ़ते पढ़ते बात दिल तक जा पहुंची और अपनी माशूका को लिख दिया " आई एल एफ " पढ़ते ही झटका लगा ये जानू की जगह एफ का अर्थ किसी और को भेजना था गलती से मुझे भेज बैठा । आग लगनी थी जवाब दिया ये कौन नई कल मुहीं ढूंढ ली जिस को भेजते हो लव यू का संदेश । हाथ पैर जोड़ कसम खाई तब सब बताया तो जान बची । मगर हर चीज़ का फायदा भी होता है नुकसान भी , दोस्तों को बताया बहुत काम की बात है जो भी फतेहाबाद में रहते हैं यही संदेश जिसे मर्ज़ी भेज सकते हैं । दोस्त भाई बहन माता पिता कोई भीं हो सब को लगेगा वाह क्या बात है जो शहर से प्यार करता है ।
शहर से प्यार है तो शहर वालों से भी प्यार होना चाहिए , थोड़ा इस पर भी विचार करना उचित है । कुछ लोग प्रवासी पंछी होते हैं उनका प्यार बदलता रहता है कुछ हम जैसे होते हैं शहर से दूर दिल फिर भी वहीं बसता है । अभी भविष्य में इक नया पार्क आई लव फतेहाबाद बनाया जाना उचित होगा जिस में मुहब्बत करने को खुली छूट होगी पुलिस आपकी सुरक्षा को रहेगी हर वक़्त । अभी ये कल्पना है सच हो जाये क्या खबर । खबर ही तो है , गुलाबी नगरी का ये नया संबोधन आपको कैसा लगा । सब मिलकर बोलो , आई एल एफ थोड़ा ऊंचा बोलो आई एल एफ । आपका कल्याण हो ।
खरी बात कड़वी लगी भी इतनी कि अख़बार में नहीं छापकर मुझे मेरा ही खत वापस भेजा ऊपर इक लाइन लिखी थी " ज़रूरी नहीं कि हर बात आपकी समझ आ ही जाये "। बुरा लगा ये कोई तरीका नहीं था पहले भी लिखता था उनका जवाब कभी कॉलम में तो एक बार संपादकीय लेख की शुरुआत ही की थी , फतेहाबाद के लोक सेतिया हैं लिखते रहते हैं कभी कॉलम में तो कभी मुझे भी । ये ढंग सभ्य नहीं लगा था बस रख दिया था फाइल में । शायद साल से अधिक समय बाद इक खबर पढ़ने को मिली शहरी मंत्रालय का अख़बार वालों को बेहद कम कीमत पर दिल्ली में प्लॉट्स आबंटन को लेकर जो नियमानुसार नहीं था । साथ नाम पते दिए हुए थे जिनको फायदा पहुंचाया गया । मैंने इन का वापस मुझी को लौटाया मेरा खत तलाश किया और उसके पीछे इतना ही लिखा मैंने । आज अख़बार में ये समाचार पढ़ कर सब समझ आ गया है जो अपने सही कहा था मुझ नासमझ को समझ ही नहीं आया था । बंदरबांट कहूं या अपनों को रेवड़ियां देना मगर आपको समझा था पत्रकार आप तो धंधे वाले कारोबार निकले । हिम्मत की बात है उनका फोन आया मुझे नहीं पता था सोसाइटी या संगठन ने कैसे शामिल कर लिया मुझे भी । अभी उनकी आत्मा दिल्ली में भटकती होगी क्योंकि उनका वो घर अभी वहीं है दिल्ली में ।
आई लव फतेहाबाद कथा यहां से शुरू होती है । इक आशिक़ रोज़ महबूबा को सोशल मीडिया पर संदेश भेजा करता था संक्षेप में , आई एल जानू लिखता था । शहर के हर रस्ते पर आई लव फतेहाबाद पढ़ते पढ़ते बात दिल तक जा पहुंची और अपनी माशूका को लिख दिया " आई एल एफ " पढ़ते ही झटका लगा ये जानू की जगह एफ का अर्थ किसी और को भेजना था गलती से मुझे भेज बैठा । आग लगनी थी जवाब दिया ये कौन नई कल मुहीं ढूंढ ली जिस को भेजते हो लव यू का संदेश । हाथ पैर जोड़ कसम खाई तब सब बताया तो जान बची । मगर हर चीज़ का फायदा भी होता है नुकसान भी , दोस्तों को बताया बहुत काम की बात है जो भी फतेहाबाद में रहते हैं यही संदेश जिसे मर्ज़ी भेज सकते हैं । दोस्त भाई बहन माता पिता कोई भीं हो सब को लगेगा वाह क्या बात है जो शहर से प्यार करता है ।
शहर से प्यार है तो शहर वालों से भी प्यार होना चाहिए , थोड़ा इस पर भी विचार करना उचित है । कुछ लोग प्रवासी पंछी होते हैं उनका प्यार बदलता रहता है कुछ हम जैसे होते हैं शहर से दूर दिल फिर भी वहीं बसता है । अभी भविष्य में इक नया पार्क आई लव फतेहाबाद बनाया जाना उचित होगा जिस में मुहब्बत करने को खुली छूट होगी पुलिस आपकी सुरक्षा को रहेगी हर वक़्त । अभी ये कल्पना है सच हो जाये क्या खबर । खबर ही तो है , गुलाबी नगरी का ये नया संबोधन आपको कैसा लगा । सब मिलकर बोलो , आई एल एफ थोड़ा ऊंचा बोलो आई एल एफ । आपका कल्याण हो ।
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