किसके नाम की माला जपी है ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया
खड़े हुए हैं अदालत में गुनहगार की तरह। धर्मराज बही-खाता देख कर हैरान हैं ये कैसे लोग हैं इनको इंसान बनाकर कितना सुंदर जीवन दिया था व्यर्थ गंवा कर वापस लौटे हैं। कीड़े मकोड़े पशु पक्षी भी ऐसे नहीं जीते सोच समझ होते भी दिमाग से काम नहीं लिया और पापी नेताओं का नाम जपते रहे कोई अच्छा नाम नहीं लिया। अपने अच्छे बुरे कर्मों का फल तो मिलना ही है झूठ की जयजयकार करने का सत्ता के भूखे लोगों को मतलबी और कपटी लोगों का गुणगान करने का महापाप किया जीवन भर उसकी भी सज़ा मिलनी है। तुम अंधे नहीं थे आंखें मिली थी सोचने को दिमाग भी मगर तुमने पागलपन में ज़िंदगी बर्बाद कर दी। आजकल कोई आशिक़ भी माशूका का नाम रात दिन नहीं रटता है जब मिले जानू जानम कहता है बाकी दिन भर मस्त रहता है। वास्तविक नाता केवल फोन से है पल भर भी दूरी सही नहीं जाती ये व्यथा कही नहीं जाती।
जो भी कोई कहता है मान लेते हैं , खुद अपने कत्ल का सामान लाते हैं। हम नहीं वो लोग जो रखते हैं दिल दिमाग कोई , जो बदलते हैं दुनिया को जब ठान लेते हैं। वक़्त क्या ज़िंदगी बिता देते हैं बेकार हम मसीहा मानते हैं उन्हीं को जो हमारी जान लेते हैं। तुलसीदास को पत्नी का ताना शिक्षा दे सकता है हम किसी के चाहने वाले बनकर नाहक आपस में लड़ते हैं ढैंचू ढैंचू कहते हैं। देखो ओ दीवानों तुम ये काम न करो आदमी हो आदमी बनकर जिओ चाटुकार बनकर बदनाम इंसान का नाम न करो।
जो भी कोई कहता है मान लेते हैं , खुद अपने कत्ल का सामान लाते हैं। हम नहीं वो लोग जो रखते हैं दिल दिमाग कोई , जो बदलते हैं दुनिया को जब ठान लेते हैं। वक़्त क्या ज़िंदगी बिता देते हैं बेकार हम मसीहा मानते हैं उन्हीं को जो हमारी जान लेते हैं। तुलसीदास को पत्नी का ताना शिक्षा दे सकता है हम किसी के चाहने वाले बनकर नाहक आपस में लड़ते हैं ढैंचू ढैंचू कहते हैं। देखो ओ दीवानों तुम ये काम न करो आदमी हो आदमी बनकर जिओ चाटुकार बनकर बदनाम इंसान का नाम न करो।
पागल कौन है कैसे बताया जाये पागल सभी खुद हैं मगर पागल बनाते हैं औरों को। पागल होने की निशानी यही है कि वो सामने असली दुनिया को नहीं देखता और पागलपन में इक अपनी दुनिया बनाकर उसी को वास्तविकता समझता है। हम लोग वास्तविक समाज से बचकर स्मार्ट फोन की झूठी बनावटी दुनिया में जीते हैं और मनोरंजन को बड़ा मकसद समझते हैं। क्या इसको समझदारी कह सकते हैं या फिर इक पागलपन छाया हुआ है। सबसे पहले उनकी बात करते हैं जो हमारे जीवन को प्रभावित ही नहीं करते बल्कि जिनको हम सब को असली समाज की तस्वीर दिखानी थी लेकिन वो वास्तविकता से बचते हुए इक काल्पनिक दुनिया को देखते और दिखलाते हैं। टीवी चैनल खबर मनोरंजन के नाम पर जिस दुनिया की बात करते हैं देश की तीन चौथाई आबादी से उसका कोई लेना देना नहीं है। फिल्म टीवी सीरियल जाने किस समाज की कैसी कहानियां और संगीत या शो दिखलाते हैं जो हमारी आस पास की दुनिया से मेल नहीं खाता है। सच नहीं है सब झूठ ही झूठ है मगर इस झूठ के सामान को बेचकर ये टीवी चैनल और फ़िल्मकार अभिनय करने वाले मालामाल हो रहे हैं। अर्थात उनको समाज को सच नहीं दिखाना मार्गदर्शन की तो बात ही क्या बस कमाई करनी है चाहे किसी भी तरह से हो। ऐसा लगता है कुछ लोग जो किसी तरह इक आरामदायक जीवन जी रहे हैं उनको बाकी समाज जो साधनविहीन है को लेकर कोई चिंता नहीं है। क्या अपने ही देश के लोगों के लिए ऐसी उदासीनता उचित है। समझा जाये तो हम पागल बन गये हैं और पागलपन पाकर खुश भी हैं।
हमारी शिक्षा में कुछ खोट ज़रूर है जो हमें सोचने समझने भला बुरा क्या है इसका बोध कराने के किसी काम नहीं आती है। हम आंखें होते हुए भी देखते नहीं हैं परखते नहीं अंधविश्वास करते हैं और भेड़चाल के आदी हैं। पढ़ लिख कर देश की समाज की भलाई की बात की चिंता नहीं करते बस खुद अपनी चिंता रहती है। जो शिक्षा आपको अच्छा इंसान नहीं बनाती केवल इक मशीन बना देती है पैसे कमाना अपने खुद को लेकर सोचना समझना समाज और देश की कोई चिंता नहीं भले कुछ भी होता रहे हमें क्या लेना देना , ये विचार किसी शिक्षित के नहीं कूप मंडूक के लगते हैं। बहुत बातें की जाती हैं आधुनिक शिक्षा महंगी और जाने क्या क्या सिखाती है नहीं सिखलाती तो आदमी बनकर अच्छे इंसान की तरह रहना। केवल अपने मतलब को समझने समझाने वाली पढ़ाई किसी काम की नहीं है। अंक शत प्रतिशत हासिल किये मगर चाल चलन और आचरण वही रहता है स्वार्थ सिद्ध करने को सब करने को राज़ी हैं। शायद वो अनपढ़ लोग ज़्यादा अच्छे थे जो सही को सही गलत को गलत कहने का मादा रखते थे। हम लोग तो राम नाम जपना छोड़ ऐसे इंसानों के नाम की माला जपते हैं जो अच्छे इंसान भी बन नहीं पाए हैं। किस किस शैतान का नाम सुबह शाम लेते हैं हम कभी सोचा है।
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