मई 13, 2019

पागल हुआ दीवाना हुआ ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

    पागल हुआ दीवाना हुआ ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

           मास्टरजी को पढ़ना पसंद नहीं था और पिता जी की ज़िद थी उनको विलायत न सही किसी और राज्य में उच्च शिक्षा दिलवानी है। अनपढ़ माता पिता को जो मर्ज़ी बताया जा सकता है फेल होने पर समझते कि हर क्लास में दो तीन साल लगाने से नींव मज़बूत होती है। ग्वालियर का नाम था दसवीं फेल बारहवीं पास कर सकते हैं पिता को मनाया और सीधे उच्च शिक्षा पाने चले गए। वापस आकर अपना स्कूल खोला और खूब कमाई की गांव की शान समझे जाते रहे भगवान उनको स्वर्ग से कम क्या दे सकता है। किसी ऐसे स्कूल से पढ़ाई पढ़कर अब कोई देश को पढ़ना लिखना सब सिखला रहा है ये कथा आधुनिक भगवान की है। हर दिन कोई न कोई ऐसी घटना बताता है जो असंभव ही नहीं होती बल्कि हास्यस्पद लगती है। विज्ञान से भगवान तक को चुनौती देती है। मनघड़ंत बात जिस आत्मविश्वास से कहते हैं सुनने वाला समझ कर भी कुछ समझ नहीं पाता है। पता लगाना कठिन है ये जनाब किस युग की बात कर रहे हैं क्या हर समय हर जगह रहे हैं असंभव को संभव करने का दावा है। जो संभव था नहीं किया ये नहीं बताते उनकी मर्ज़ी है। लोग अब शक करने लगे हैं उनको किसी मनोचिकिस्तक की राय लेने की सलाह देते हैं। 

    अचानक गढ़ा धन या कोई करोड़ों की लॉटरी लगने से मनसिक संतुलन बिगड़ जाता है। बड़ी बड़ी बातें करने लगता है खुद को ज्ञान का भंडार जाने क्या क्या कहने लगता है। लोग बुरा नहीं मानते हंसते हैं मन ही मन में पगला गया है। सबको खुश देख समझता है मेरा रुतबा ऊंचा हुआ है। कोई उसकी बात पर यकीन नहीं करता लेकिन बच्चों को अपनी शौर्य गाथा सुनकर ताली बजवाता है। बच्चों को झूठी मनघड़ंत कहानियों को सुन मज़ा आता है। किसी गांव में सभी अच्छे लोग रहते थे कोई भी सरपंच बनने के काबिल नहीं था तो पास के शहर से इक झूठा मक्कार मतलबी आया और सबको गांव को शहर बनाने का सपना दिखाया और सरपंच कहलाया। जब गांव का नाम बदल कर कबीर बस्ती को कबीर नगर किया तो सबको लगा उल्लू बनाया है। गांव में बिजली पानी सड़क कोई भी सुधार नहीं हुआ बस नाम अच्छा रख लिया। पागलखाने में पागल रोगी अपनी ख्वाबों की दुनिया बसा लेते हैं और खुश रहते हैं। कोई खुद को राजा समझता है कोई बारात लेकर महबूबा को लाने चलता है। फ़िल्मी कहानियों का असर कुछ लोगों पर बहुत देर तक रहता है। खिलौना जानकर तुम तो मेरा दिल तोड़ जाते हो। हमने देखी है उन आंखों की महकती खुशबू हाथ से छू के उसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो। ख़ामोशी फिल्म की नायिका नायक का उपचार करते करते खुद पागल हो जाती है। जिस कमरे से नायक की छुट्टी हुई उसी में नर्स नायिका रोगी बनकर दाखिल हो जाती है।

        इधर सुनने में आया है कि  जैसे कुछ पुरुष पत्नी से छुटकारा पाने का सपना देखते रहते हैं आजकल ऐसी भी महिलाएं हैं जो सोचती हैं काश उनका भी नसीब उस महिला जैसा होता जिसको छोड़ कर चले जाने वाला बहुत महान राजनेता कहलाता है। नारी नारी के दर्द को कभी नहीं समझती है उल्टा कई पुरुष पत्नी पीड़ित होने का नाटक करते हैं और किसी महिला की सहानुभूति हासिल कर लेते हैं। बात पति पत्नी और वो की है जिस का नायक बंदर की तरह गुलाटी मारना छोड़ता नहीं। पत्नी को छोड़ने वाले नेता को महिलाओं के अधिकारों का रक्षक समझना नामुमकिन का मुमकिन होना है। शायद जल्दी ही ऐसी महिलाएं अपने अपने पति को घर से जाने की अनुमति खुद दे सकती हैं इस शर्त पर कि उनको राजनीति में शामिल होना होगा।

       
     प्यार कहते हैं अंधा होता है मगर कोई भी अंधा किसी से प्यार नहीं कर सकता है। ये फ़लसफ़े की बात है समझने की कोशिश मत करो अगर नहीं समझ आई तो। कोई किसी बदसूरत लड़की पर फ़िदा हो अगर तो हर कोई समझेगा पागल हुआ है कोई दूसरी नहीं दिखाई दी। ज़हर कड़वा लगता है कोई नहीं पीता है मगर जब कोई मीठा ज़हर पिलाता है तो सब पी लेते हैं। उसकी बातें उसकी शैली सबको पागल करती है। ये इश्क़ रोग ही नामुराद है दिल बेवफ़ा पर ही आता है। हमको उनसे हो गया है प्यार क्या करें। पागलपन संभव असंभव की बात नहीं समझता है होनी को अनहोनी अनहोनी को होनी जब जमा हो तीनों मजनू रांझा महिवाल इक जगह। कागज़ के फूल फिल्म बनी थी आजकल शहर कागज़ी बन चुके हैं ज़रा से हवा चलती है बिखरने का डर लगता है। दिल्ली देखने को पत्थरीली है मगर वास्तव में सब कागज़ी है कोई जाकर किसी फूल को छूता है तो सभी कागज़ बिखर जाते हैं।

               याद आते हो कभी मिलते थे कितनी बातें करते थे अजनबी शहर जाकर तुम तो खामोश हो गए। कोई हमज़ुबां नहीं मिलता यहां भी। ये सच है इक  दोस्त था  कॉलेज का शिक्षक रहा है जाने क्यों यादास्त खो गई है अब कोई चिंता नहीं सताती होगी।  कल कोई मिलने गया था उनसे तो उनको अभी भी पिछले चुनाव की बात याद थी और पूछने लगे अच्छे दिन आने वाले हैं क्या अभी भी लोग इंतज़ार करते हैं।  उनकी सुई वहीं रुकी हुई है। इस बीच गंगा स्वच्छ हुई काला धन मिला गरीबी मिटी सब को छोड़ लोग इक पुराना खेल खेलने लगे हैं। पागल हो जाना भी राहत की बात हो सकती है।   
      

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें