शोले - 2 का पहला शो ( हास - परिहास ) डॉ लोक सेतिया
शोले फिल्म दो बनकर तैयार है , पहला शो फिल्म को दर्शकों को दिखाने से पहले ख़ास लोगों और मीडिया वालों के लिए होता ही है। सब अपने शामिल होते हैं और हर फिल्म की सफलता की कामना की जाती है। अख़बार टीवी पर फिल्म को लेकर जानकर लोग राय दिया करते हैं ताकि लोग दर्शक ताली बजाने को खेल तमाशा देखने चले जाएं आखिर फिल्म आम दर्शक के मनोरंजन को बनाई जाती है। असली मकसद कमाई का है इसलिए आजकल उपदेशक या संदेशक तरह की फिल्म कोई नहीं बनाता है हर कोई मौज मस्ती नाच गाने और आईटम सांग सब शामिल करता है हर किसी का ख्याल रखने को। बात राजनीति जैसी है जाति धर्म देशभक्ति भड़काना झूठ का गुणगान सब की इजाज़त है। नायक गब्बर सिंह ही है ऐसा बता रहे हैं अब गब्बर इस बैक की बात है तो गब्बर को खलनायक नहीं कहा जा सकता महानायक बता रहे हैं। कहते हैं रामगढ़ वालों ने समझ लिया है गब्बर से बचने का कोई उपाय नहीं है गब्बर को वोट देना ही एक ही रास्ता है।
बसंती पहले से ही गब्बर की नर्तकी बन गई है उसको गब्बर के सामने नाचना अच्छा लगता है गब्बर उसकी कला का सच्चा पारखी है। ठाकुर के हाथ भी काट दिए थे इस बार पांव भी काटने ज़रूरी थे अब जूते भी नहीं पहन सकेगा तो गब्बर का कुछ भी नहीं बिगड़ने वाला है। जय और वीरू भी ठाकुर के लिए काम नहीं करते हैं गब्बर से उनको ज़्यादा पैसा मिलता है तो उसकी महिमा का बखान करते हैं रामगढ़ वालों को समझाते हैं इतना भलामानुष डाकू कोई नहीं हुआ है आज तक। गब्बर गब्बर सबको बोलने को कहते हैं गब्बर के नाम की धूम मची है। फिल्म की कीमत का कोई अंदाज़ा नहीं है इक गब्बर के किरदार पर ही करोड़ों का खर्च किया गया है। फिल्म आने से पहले अधिकार बिक जाते हैं अब तो बनाने वाले को घाटा नहीं होता है कमाई ही कमाई है। लोग छोटे मोटे जेबकतरों को नहीं गब्बर जैसे डाकू को पसंद करते हैं हास्य अभिनेता भी गब्बर के भाई बंधु बन चुके हैं। कहानी बदल चुकी है नर्क को स्वर्ग का नाम दे दिया है गब्बर सिंह ने। अब लोग मरना नहीं चाहते स्वर्ग जाने को जीने को नर्क को स्वीकार कर लिया है ऐसा मीडिया वाले समझा रहे हैं। नेता जी इतिहास बदलने चले थे लेकिन वही पुराना इतिहास दोहरा रहे हैं कलयुगी रामायण लिखी जा रही है राम कथा सुनाने वाले रावण की स्तुति गा रहे हैं लोग झूम रहे हैं ताली बजा रहे हैं। सरकार इधर चले आ रहे हैं।
दर्शक का हाल क्या होगा देखना है कमाल क्या होगा जनता की धोती वही फ़टी हुई है सत्ता का रेशमी रुमाल क्या होगा। धमाल के बाद धमाल होना है और बढ़कर धमाल क्या होगा। बता मेरे लाल क्या होगा , कालिया खामोश है कितने आदमी थे का कोई जवाब नहीं देता है। गब्बर सिंह की अदा पे हर कोई फ़िदा है मारता भी है तो हंसी ठठा करते हुए जिसको कत्ल करना है पहले खुश करता है बच गये साले तीनों बच गये भाषा अच्छी लगने लगी है। होली पर गाली अच्छी लगती है हर कोई खैरात मांगता है गब्बर को सबकी झोली खाली अच्छी लगती है। ताली बजाते रहो ज़िंदा रहना चाहते हो अगर उसको ताली अच्छी लगती है। घरवाली घर पर है कुछ नहीं बोलती जो घरवाली अच्छी लगती है। गब्बर ने बहुत विकास किया है अपने लिए शानदार अड्डा नया बनवा लिया है गब्बर का संदेश रोज़ आता है व्हाट्सएप्प पर लतीफे सुनाता है। ये गब्बर अच्छा है क्या शान से रहता है क्या अंदाज़ से डराता है हर किसी को सपने में आता है। गब्बर का बसंती से बहुत अच्छा नाता है बसंती हुई गब्बर की दीवानी है क्या कमाल की ये कहानी है। देखने वालों का हाल क्या होगा इससे बढ़कर कमाल क्या होगा हाल बेहाल हुआ है बढ़कर बदहाल क्या होगा।
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