मनाना मान जाना ( व्यंग्य कहानी ) डॉ लोक सेतिया
( ये इक काल्पनिक कथा है इसका कोई संबंध किसी से केवल एक इत्तेफाक है इत्तेफाक होते रहते हैं )
पति सभा हर शाम को पार्क में आयोजित होती है जब ठीक उसी समय पत्नियों का महिला मंच किसी और जगह विचार विमर्श करता रहता है। विषय बदलते रहते हैं मगर निर्णय बहुमत की ज़रूरत के बिना एकमत से होते हैं जब चिंतन पुरुष महिला की आपसी उलझनों को लेकर हो रहा हो। हालांकि नतीजे हमेशा उलझन को और उलझाने का काम ही करते हैं। बस दोष अपना नहीं दूसरे पक्ष का समझा जाता है। आज चर्चा का विषय है वोट किसको देना है और कैसे इस राजनीति की लड़ाई को अपने अपने घर से बाहर रखना है। पति सभा का एकमत से फैसला ऐतहासिक है और अति गोपनीय रखा गया है। घटना एक समान है घर घर की बात है तथ्य नहीं बदलते हैं केवल नाम स्थान अपना अपना निवास है। एक ही घर को झांक कर देखते हैं , कोठे चढ़ के वेख फ़रीदा घर घर एहो हाल।
पत्नी को नाराज़ नहीं करना है हमने भी सोच लिया था। सुनते हो कल वोट डालना है किस को देना है आपको बताओ तो मुझे। मैंने कहा हज़ूर जिसको आप कहोगी उसी को दे देंगे अपना कोई चाचा ताऊ तो है नहीं और हैं भी सब एक थाली के चट्टे बट्टे। उनको यकीन नहीं आना था न आया , साफ बताओ ऐसे पहेलियां नहीं बनाओ। हमने कहा आप मोदी जी की समर्थक हो आये दिन का झगड़ा खत्म करते हैं अपने अपनी हर बात मनवाई है किसी न किसी ढंग से अब खुद ही मान लेते हैं। दोनों एक को देंगे तो दो वोट बढ़ते हैं किसी के और बंट गये एक एक तो बेकार जाएगा हमारा वोट गिनती को कम नहीं करेगा न बढ़ाएगा ही। खुश हो गई सरकार घर की , पहली बार अपने समझदारी की बात की है। कोई बहस की गुंजाईश बची ही नहीं।
पत्नी महिला मंच की साथियों के साथ और हम भी अपनी सभा के यारों संग वोट डालकर घर वापस आये और खुश से आज कोई विवाद नहीं हो सकता है। पत्नी ने चाय पेश की और पूछा वोट उसी को दिया है ना जिसको कह रहे थे। आपको कोई शक है जब जन्म जन्म का साथ है तो वोट की क्या बात है आपके लिए जान भी हाज़िर है। हमने उनसे नहीं पूछा किसे वोट दिया है क्योंकि बात पहले से निश्चित थी उनको मोदी जी पसंद हैं। यहां कोई गलतफहमी नहीं हो इसलिए बताना ज़रूरी है ये मोदी हमारे शहर के हैं और निर्दलीय हैं। कोई दलगत राजनीति नहीं है मामला मायके ससुराल के मुहल्ले का ही है। पत्नी के पेट में राज़ की बात दो घंटे से अधिक नहीं रहती है खाना खाते समय राज़ बाहर आना लाज़मी था। आपसे इक बात कहनी है वोट देते समय मुझसे गलती हो गई और वोट मोदी जी के खिलाफ डाला गया। कोई बात नहीं जिसको दिया है जीतेगा वही सब जानते हैं। पति पत्नी दोनों एक साथ खुश थे और मतलब साफ है ऐसा तभी संभव होता है जब झूठ बोला जाये और झूठ को सच समझा जाये।
पतियों की सभा की चालाकी सफल रही थी। सभी ने जिसको खुद समर्थन करते उसको नहीं जिसको पत्नी मंच समर्थन देना चाहता उसको वोट देने की घोषणा घर जाकर करनी थी। नतीजा अनुमान के अनुसार निकलना ही था। पत्नी को पति की हर बात का विरोध करने की आदत होती है भला हम जिसको अच्छा बताएं वो अच्छा कैसे हो सकता है। बस इसी तरह सोचने लगी तो मोदी जी की जितनी कमियां हमने गिनवाई थी सब वास्तव में सही लगने लगी। आपको चिंता करने की ज़रूरत नहीं है ये कुदरत का बनाया नियम है , क्या कहते हैं पति पत्नी एक गाड़ी के दो पहिये होते हैं साथ साथ चलते हैं मगर स्टेरिंग घुमाते हैं तब समझना पड़ता है आगे जाने को दाएं घूमाना ही बैक करते समय बाएं घुमाना हो जाता है। इस से सरल भाषा में पति पत्नी रेल की पटरी की तरह साथ साथ चलते हैं फासला रखना ज़रूरी है। मिलना संभव नहीं है पति पत्नी का सहमत होना असंभव बात है। हासिल यही आपको जो काम पत्नी से करवाना हो उसके विपरीत बात कहने से बात बन जाती है। लाख टके की बात है ध्यान रखना।
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