अप्रैल 21, 2019

अच्छे दिन पर मेरा शोध पूर्ण ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

  अच्छे दिन पर मेरा शोध पूर्ण ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

 
    मैं डॉक्टर हूं मगर पी एच डी उपाधि वाला नहीं आयुर्वेदिक स्नातक होने के कारण हूं। लिखता हूं नियमित इसलिए कई लोग मुझे पी एच डी वाला डॉक्टर समझ लेते हैं।  इस बात पर विचार करने के बाद मैंने भी शोध करने का विचार बनाया था और पांच साल से अच्छे दिन को लेकर मेरा शोध चल रहा था और शोध प्रंबध मैंने प्रस्तुत करवा दिया है जो स्वीकृत भी हो चुका है अभी उपाधि मिलने में थोड़ा विलंब है। दस्तावेज़ गोपनीय हैं मगर आपको बता सकता हूं मगर आपको इसकी चर्चा किसी नेता से नहीं करनी है ये वादा करते हैं तभी आगे पढ़ सकते हैं। 

        अच्छे दिन झूठी बात नहीं है और वास्तव में कई लोगों को अच्छे ही नहीं बेहद अच्छे और बेमिसाल दिन भी हासिल होते हैं। अच्छे दिन मिलते नहीं हैं मांगने से खैरात की तरह उनकी कीमत चुकानी पड़ती है। बहुत लोग ज़मीर नाम की चीज़ को बचाकर रखने की मूर्खता नहीं करते और बेच कर बदले में अच्छे दिन खरीद लाते हैं। चोरों के दिन कभी खराब नहीं होते हैं और अच्छे दिन आने की आहट राजनीति की चौखट पार करते ही सुनाई देने लगती है। 

    अच्छे लोगों से अच्छे दिन की राशि नहीं मिलती है ऐसा ज्योतिष समझने वाले जानते हैं कुंडली एक जैसी होने से समस्या होना लाज़मी है। पति-पत्नी दोनों गर्म मिजाज़ होने पर तलाक की ज़रूरत पड़ती है और अगर दोनों का स्वभाव नर्म हो तो झगड़ा नहीं होने पर भी ख़ामोशी छाई रहती है अबनब लगती है। अच्छे दिन हासिल करने को अच्छाई से फासला बनाना ज़रूरी होता है। 

   जिनके दिन अच्छे थे पहले भी एक दल की सरकार में बदली सरकार में भी अच्छे बने रहे दल बदल लेने से। दिल बदलने की कोई ज़रूरत नहीं दल बदल करना समझदारी का निर्णय होता है। बहुत थोड़े ऐसे खुशनसीब होते हैं जो सही समय पर सही दल में शामिल हो जाया करते हैं। दलबदल कानून अड़चन है अन्यथा कितने लोग कितनी बार दलबदल करना चाहते हैं मगर कर नहीं पाते हैं। सरकार को अच्छे दिन का वादा पूरा करना है तो इस अनावश्यक कानून को हटा देना चाहिए। 

    आम जनता को भी अच्छे दिन दिखाई दे सकते हैं मगर दिन को नहीं रात को नींद में ख्वाब में ही। दिन के समय अच्छे दिन ख़ास लोगों को नज़र आया करते हैं। सत्ता जिनकी उनके दिन रात अच्छे होते हैं। चांदनी चार दिन की फिर अंधेरी रात की तरह से चुनाव आने पर जनता की बहार आने की बात होती है। वादों की फसल लहलहाती है ताली बजाते बरसात होती है। जिसकी शादी उसकी सुहागरात होती है बाकी बाराती नाचते गाते हैं खाते पीते हैं इतनी सीधी सी बात होती है। जीत की वरमाला पहनते ही दूल्हा समझता है मैं बादशाह और दुल्हन समझती है वो महारानी बन गई मगर वो सब किराये का महल सजावट अगली सुबह गायब हो जाती है। अच्छे दिन शादी से पहले थे या बाद में मिले हैं यही सबसे बड़ा राज़ है कोई नहीं जान पाया है। कोई कैसे बताये मुझे ठगा नहीं गया मैं खुद अपना सब कुछ लुटवा चुका हूं। कल तक बड़े ऊंची कीमत थी जिसकी आज खोटे सिक्के जैसी औकात है।

      स्कूल जाते लगता था क्या खराब दिन हैं खेलना चाहते हैं पढ़ाई करनी पड़ती है। कॉलेज जाकर लगा अच्छे दिन हैं मगर चाहते कुछ मिला कुछ और था इसका मलाल रहा तो अच्छे दिन का लुत्फ़ उठाया ही नहीं। उच्च शिक्षा पाकर सपने साकार करने की खातिर मौज मस्ती करने से बचते रहे मगर बाद में पता चला जो मौज मस्ती किया करते थे उनकी मौज है अभी भी नेता बने फिरते हैं हम पढ़ लिख नौकरी ढूंढ रहे हैं। मुहब्बत करने वाले सोचते हैं विवाहित जीवन खूबसूरत ख्वाब की तरह होगा मगर विवाहित होने पर समझ आता है अच्छे दिन बेकार बर्बाद कर दिए अभी शादी करने की जल्दी क्या थी थोड़े दिन और आशिक़ी का मज़ा लेना था। इस में भी बाज़ी जीतने वाले वो लोग होते हैं जो मुहब्बत किसी से शादी किसी और से करते हैं।  ये खेल भी खतरे का है पकड़े जाने पर अच्छे दिन खराब बनते देर नहीं लगती। वास्तव में अच्छे दिन उन्हीं को हासिल हैं जिन्होंने शादी की ही नहीं या एकाध खुशकिस्मत है जो शादी करने के बाद भी पत्नी से छुटकारा पाने में सफल रहा। पति - पत्नी दोनों एक साथ खुश नहीं रह सकते ये सबसे बड़ा सत्य है एक ही खुश रह सकता है जिसको दूसरे को दुखी करना आता हो।

      लोगों से सुना करते हैं गुलामी के दिन भी कितने अच्छे थे कोई चिंता नहीं थी परेशानी नहीं थी। गुलामी की आदत थी कोई कुछ कहे खराब नहीं लगता था। अभी भी हैं जो गुलामी को बरकत समझते हैं और किसी न किसी की गुलामी करने में जीवन बिता देते हैं। उनको आज़ादी अच्छी नहीं लगती डरते हैं खुली हवा में सांस लेने से भी। किसी शायर ने कहा है , लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यों हैं , इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं। कोई धनवान की जीहज़ूरी करता है कोई सत्ताधारी नेता की कोई अधिकारी की। जय जय कार करने से सब मिलता रहता है मगर जिस दिन धनवान का पैसा नेता की सत्ता अधिकारी का पद नहीं रहता सबसे अधिक परेशानी इन्हीं लोगों को होती है। बिना चाटुकारिता इनकी सांस नहीं चलती और चाटुकारिता करने को उनका ऊंचाई पर होना शर्त है। बराबरी पर दुआ सलाम होती है सलाम साहिब नीचे खड़े होकर कहना होता है तलवे चाटने वाले को जो सुख मिलता है वही समझता है। आशिक ऐसे ही नहीं इल्तिजा करते पांव छू लेने दो फूलों पे इनायत होगी।

         अच्छे दिन पर शोध कभी खत्म नहीं हो सकता है। कुछ अन्य बातें हैं जिनको इशारों में संक्षेप में समझना उचित है। पिता की कमाई पत्नी की कमाई पर ऐश करने वाले के दिन सदा अच्छे होते हैं। कई लोग जिनके पिता जीते जी हाथ से कुछ नहीं देते स्वर्गवासी होने पर वसीयत में सब कुछ छोड़ जाते हैं उनके अच्छे दिन पिता जी के जाने के बाद आया करते हैं। नौकरी करते लगता था कोई जीना ही नहीं सेवानिवृत होकर चैन से रहना है खूब पैसा होगा पेंशन मिलेगी और आराम करने को फुर्सत होगी। मगर खाली होते ही घर पर बाबू क्या अधिकारी को लगता है चपरासी बना दिया गया है। चौकीदार बनना कोई मज़ाक नहीं है जैसा सब समझ रहे हैं चौकीदार होने की बात से रुतबा बढ़कर मोदी जी जैसा हो जाएगा। उनकी किस्मत में हमेशा अच्छे दिन रहे हैं सबकी किस्मत में नहीं होते अच्छे दिन। अच्छे दिन पाने को क्या क्या नहीं करना पड़ता है शोले के सूरमा भोपाली की तरह सौ सौ झूठ बोलने पड़ते हैं। मैंने जय वीरू को ऐसे पकड़ा था की कहानी आज भी सच है बात आपसी लेन देन की है अपराधी खुद कहता है मुझे पकड़वाओ , इस तरह अच्छे दिन आपको तलाश करते हैं। आप उस जगह मिलते नहीं जिस जिस जगह अच्छे दिन होते हैं कभी इस देश कभी उस देश कभी इस शहर कभी उस शहर कभी मंदिर कभी मस्जिद कभी गिरिजाघर गुरुद्वारा अच्छे दिन एक जगह टिक कर नहीं रहते है। वक़्त रहता नहीं कभी टिककर , इसकी आदत भी आदमी सी है। शाम से आंख में नमी सी है , आज फिर आपकी कमी सी है। दफ़्न कर दो हमें  कि  सांस मिले , नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है। कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी , एक तस्लीम लाज़मी सी है।  जगजीज सिंह की गई ग़ज़ल अच्छी लगती है। ग़ज़ल के अच्छे दिन हुआ करते थे आजकल क्या हालत है बता नहीं सकते। हास परिहास तक के दिन खराब चल रहे हैं व्यंग्य को देखो तो बेहाल ज़ख़्मी लगता है।


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