ईमानदार उम्मीदवार की खोज ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
चिंताराम जी को चिंता का नामुराद रोग लगा ही रहता है। हर दिन किसी चिंता में डूबे रहते हैं और चिंतन करते रहते हैं। उनका नाम चिंताराम शहर वालों का दिया हुआ है। कभी शहर की बदहाली की कभी सफाई व्यवस्था की कभी शिक्षा की कभी स्वास्थ्य सेवाओं की खराब दशा की कभी पुलिस और अधिकारियों की कथनी और आचरण की तमाम तरह की मुसीबत उनके सर है। सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है। पिछले चुनाव में राजनीति के अपराधीकरण की चिंता में दुबले हुए फिरते थे और कितने दिन इसी जानकारी जुटाने का काम करते रहे कि किस किस नेता पर कितने मुकदमें चल रहे हैं। कितने हैं जिनके गुनाह गंभीर हैं मगर गवाही नहीं मिली तो साबित नहीं हुए और उन्होंने अपनी बेगुनाही और रिहाई का जश्न भी धूमधाम से मनाया और आलाकमान भी उनको क्लीन चिट देकर बहुत खुस हुआ। सरदार खुश हुआ की तरह। जिस दल को सत्ताधारी दाग़ी लगते रहे चुनाव के समय अपने दल में शामिल कर सारे दाग़ धो डाले तो समझ आया दाग़ अच्छे हैं। कुछ बेकार के बुद्धीजीवी टाइप लोग मिलकर इक संस्था बनाई और अपराधी घोषित नेताओं को जाकर मिल कर इक सभा में आने का बुलावा दे आये सवाल जवाब देने को। नेताओं ने समझाया कि अभी मामला अदालत में है इसलिए कुछ कहना उचित नहीं मगर आप इंतज़ार करें जल्दी ही पाक साफ़ होकर निकलने का भरोसा अदालत पर है। अदालत राजनेताओं को उनकी पसंद का न्याय देने में कभी संकोच नहीं करती जानते हैं चिंताराम जी भी। उसके बाद नेताओं के सहयोगी आये और चेतावनी दे गये इस पचड़े से दूर रहो अन्यथा नेताजी को क्या है इक मुकदमा और सही आपके ऊपर हमले का। पागल हैं फिर भी नहीं समझे और सभा की बात बीच में अटकी रही मगर अपनी धुन के पक्के हैं जो बात दिमाग में घुसी निकलती नहीं है।
अपनी समस्या को लेकर चले आये मेरे घर पर , चाय पीते पीते आह भर कर बोले चुपचाप बैठने से क्या होगा। आपको क्या समाज की चिंता नहीं होती है कलम घिसाने से ज़रूरी काम और भी हैं , थोड़ा परेशान लगे। हुआ क्या पूछा तो धमकी मिलने की बात बताई और अख़बार वाले दोस्त भी कन्नी काटने लगे हैं जिस से उनकी चिंता और बढ़ गई थी। हमने बिना कोई विचार किये कह दिया आप कोई और दूसरा तरीका क्यों नहीं अपनाते हैं। बदमाश नेताओं के साथ शराफत की बात करने जाने की जगह किसी शरीफ और ईमानदार नेता के पास जाते और उनको अपनी सभा में बुलाते तो पॉज़िटिव अप्रोच होती। यूं उनको किसी की बात जचती नहीं है मगर मेरी ये बात उनको उचित लगी और उन्होंने तलाश किये कुछ शरीफ और ईमानदार लोग राजनीति की गंदगी में रहते हुए भी बेदाग़ रहने वाले। जब उनको जाकर मिले तो पता चला उन में किसी को भी अपने दल ने टिकट देकर खड़ा किया ही नहीं था। इसके बवजूद भी कुछ उनकी सभा में इस विषय पर बात कहने से बचना चाहते थे इस डर से कि कहीं इसको आलाकमान बगावत नहीं समझ ले। असंतुष्ट भी बाग़ी कहलाने को राज़ी नहीं थे अनुशासनात्मक करवाई की जा सकती है। शरीफ आदमी नेता होकर भी डरपोक रहता है।
सवाल मुश्किल था क्योंकि चुनाव में खड़े हुए बिना लोग किसी को वोट दे ही नहीं सकते हैं। शरीफ लोग लड़ने से डरते हैं भले बात चुनाव लड़ने की ही हो। अब राजनीति का मतलब विचारों की मतभेद की बात नहीं रही सत्ता की जंग है जिस में जीतने को सब करना जायज़ है। शांति पूर्वक चुनाव लड़ना संभव ही नहीं है। लेकिन उनकी हिम्मत रंग लाई और उन्होंने इक ऐसा नेता खोज ही लिया जो बेदाग़ था ईमानदार और शरीफ होने के बाद भी एक दल ने जिसे टिकट देकर उम्मीदवार बनाया हुआ था। बहुत खुश होकर उनके पास गये चिंताराम जी और निवेदन किया कि बहुत अच्छी बात है जो आप जैसे लोग भी राजनीति में हैं। हमारी संस्था आपको सभा में लोगों से रूबरू करवा कर सम्मानित करना चाहती है। राजनीति के अपराधीकरण पर आपके साथ सवाल जवाब करना चाहती है। उनके सच्चे आश्वासन के बाद सभा की तैयारी में जुट गये। अचानक उनको ख्याल आया पहले उन्होंने जो जो सवाल बना रखे थे वो अपराधी नेताओं से पूछने थे , इस ईमानदार नेता बुला लिया मगर उनसे सवाल क्या करेंगे ये सोचा ही नहीं। समस्या लेकर मेरे पास चले आये कि अपने सुझाव दिया था अब सवाल भी आप ही बनाओ। मैंने उनकी समस्या का समाधान किया और ये सवाल पूछने को लिखवा दिए। ईमानदार होकर राजनीति में कैसे बने हुए हैं बताओ। पार्टी से टिकट कैसे मिला इसका कोई राज़ है तो बताओ। ईमानदारी से नियम पर चलकर चुनाव जीत कैसे सकेंगे। चुनाव का खर्च कैसे संभव होगा। क्या जनता ने जितवा दिया तो कोई पद मिलने की उम्मीद है और बिना मंत्री बने जनता को किये आश्वासन पूरे कर सकेंगे। जब ये सब सवाल उनको पहले लिखकर देने गए तो उनका कहना था ईमानदारी की बात है मैं इन सवालों के जवाब नहीं दे सकूंगा अतः मुझे क्षमा करें।
उनके घर से निराश होकर लौटते चिंताराम जी को इक उम्मीदवार खुद मिल गए। और कहा चिंताराम जी आपकी समस्या हम जानते हैं और हम जानते हैं आप कब से किसलिए भटकते फिरते हैं। वो ईमानदार नेता हमारी धमकी से डर गए हैं कि अगर आपकी सभा में गये तो उनके ऊपर ऐसा केस बनवा देंगे कि नानी याद आ जाएगी। आप बताओ ऐसे डरपोक क्या करेंगे ईमानदारी और शराफत का। आप हमें बुलाएं और अवसर दें , आपके सभी सवाल हम जानते हैं। कोई केस किसी थाने में दर्ज नहीं हमारे खिलाफ। किसी थानेदार की मज़ाल नहीं कोई रपट भी लिखने की हमारे विरुद्ध। चिन्तराम जी के तैयार सभी सवाल उनकी तेज़ आंधी में उड़ते चले गए और उन्होंने सभा बुलाने का इरादा छोड़ दिया है। आजकल की राजनीती का वाक्य है बेदाग़ ढूंढते रह जाओगे।
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