महानायक के किरदार का अभिनय ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
पता नहीं हम लोग ही आंखे खुली होते हुए भी देखते रहे फिर भी नहीं समझे। शुरुआत से ही वह अभिनय ही करते रहे हैं। साल पहले ही नकली लालकिला बनवा भाषण देने का कार्य उसी आने वाली फिल्म का हिस्सा था , जैसे कैमरे के सामने आने से पहले रिहसल करते हैं अदाकार लोग। नेता जी का सपना सच हुआ मगर समस्या बनी रही कि उनको चार साल तक सपना ही लगता रहा और किसी महानायक के किरदार का अभिनय करने से उनको फुर्सत नहीं मिली। जब पता चला फिल्म बनकर पूरी होने के बाद असली इम्तिहान दर्शक पसंद करते हैं या नहीं बाद में मालूम होता है की ही तरह आपका अभिनय सज धज जनता को कितना मोह पाई और क्या कोई करिश्मा आपके अभिनय आपके तौर तरीके ढंग और बोले गये डॉयलॉग दिखा पाए सामने आता है ठीक उसी तरह आपने देश जनता को क्या दिया भविष्य के चुनाव में दिखाई देता है। नेताजी को भरोसा है सब कुछ उनकी लिखवाई पटकथा के अनुसार हुआ है और उनका किरदार हिट होना ही चाहिए। मगर यहां अमिताभ बच्चन सलमान शारुख आमिर सब के दिल की धड़कन बढ़ जाती है कितने अनुभव के बाद भी फिर आपकी तो पहली असली फिल्म है बेशक आपने किसी पुरानी शोले जैसी सुपरहिट फिल्म का रीमेक चोरी से बना लिया है थोड़ा इधर थोड़ा उधर से मसाला जोड़कर चटनी बनाई है मगर अभी बाज़ार में स्वाद का इम्तिहान होना बाकी है और आजकल बच्चे भी जाने किस को पसंद करते हैं किसको नहीं पता नहीं चलता है।
रामायण महाभारत में शानदार अभिनय करने वाले लोगों को उस समय वास्तविक राम सीता कृष्ण अर्जुन मानकर आरती उतारते थे मगर आजकल उनकी हालत मत पूछो पछताते हैं अपनी हैसियत से बड़ा किरदार निभा कर। तीन घंटे की फिल्म और घंटे आधे घंटे रोज़ाना का सीरियल के हज़ार एपिसोड देखना अलग अनुभव है मगर चार साल तक लगातार किसी को सामने देखना बिल्कुल अलग बात है। अभिनय करने वाला भूल जाता है पिछले बोले डॉयलॉग मगर सुनने देखने वाले उनको दोहराते रहते हैं और जिस पल बात उल्टी तरफ की नज़र आती है मोहभंग होते देर नहीं लगती। अपने हर दिन इतने रंग बदले हैं कि तस्वीर सतरंगी नहीं बनी बदरंगी बनती लगती है। आपने परिधान और छवि पर इतना ध्यान दिया कि आपको ये भी समझना ज़रूरी नहीं लगा कि जिस तरह का किरदार निभाना था उस को ये सब जंचता नहीं है। तैनू सूट सूट करदा सुना है वो पंजाबन की बात है जो साड़ी पहनती हैं उनकी अपनी बात होती है और मुंबई में चोली का चलन बदलता है तो दिल्ली में फैशन पल पल बदलता है। गंगा जमुना में नायक बोली भी खड़ी बोलता है और पहनावा भी धोती कमीज़ और लहज़ा भी देसी तब जानदार अभिनय से शानदार शाहकार बनता है।
अब जब तीन चैथाई फिल्म बन चुकी है और चार साल तक किरदार निभाया जा चुका है आखिरी सीन की शूटिंग बची है तब कहानी को बदलना कठिन है। अंत आपकी मर्ज़ी का बना सकते हैं मगर कोई नहीं जनता कि नतीजा क्या होगा। दर्शक चैंक सकते हैं या आपको हैरान कर सकते हैं , शायद आपको फिल्मों का अधिक पता नहीं हो यहां बेहतरीन कहानी और निर्देशन से बनी फिल्म नहीं चलती तो कभी लचर किस्म की बनाई फिल्म भी चल जाती है। जनता का मिजाज़ और दर्शकों का कोई भरोसा नहीं है। इक बात तय है कि फिल्म के कुछ समय बाद लोग फ़िल्मी किरदार को याद रखते हैं मगर अभिनय करने वाले का कोई पता नहीं होता उसका क्या हुआ। समझदार को इशारा काफी है बाकी बची कहानी को सही अंजाम तक पहुंचाना होगा। जाते जाते मेरा इक ग़ज़ल का मतला हाज़िर है।
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