अयोध्या नहीं दिल्ली चाहते हैं ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया
चार साल बाद फिर उसी पंडित जी की बात याद आई जिसने पिछले चुनाव की जीत का अचूक नुस्खा सुझाया था । उन्होंने जैसा बताया था मनौती पूरी भी की थी भले अपनी जेब से नहीं सरकारी पैसे से । अब भगवान को चढ़ावे से मतलब है जैसे भी कोई अपना वचन निभा दे । एक नंबर दो नंबर का काला सफ़ेद धन ऊपर वाले की समस्या नहीं है नेता अफ़्सर और धनवान अपनी उलटी सीधी जैसी भी कमाई की उस से हिस्सा चढ़ावे का देकर उसको खुश कर लेने का दावा करते ही हैं और पंडित लोग भी ऐसे दान पुण्य से और गंगा स्नान से पाप मुक्त होने की बात कहते हैं । अभी तक भरोसा था जनता को मुझे ही चुनना होगा दूसरा कोई विकल्प है कहां , विपक्षी दल के नेताओं का उपहास करते रहे और बड़बोलेपन की हद तक कोई विपक्षी दल नहीं रहेगा ऐसा लोकतंत्र लाने की बात सभी उनके दल वाले दोहराते रहे । भगवान को मनाने को क्या कुछ नहीं किया , कोई देश विदेश का मंदिर और विदेशी भगवान तक की चौखट पर माथा टेका । फिर भी जैसे बच्चे वार्षिक इम्तिहान से पहले डर कर भगवान से विनती करते हैं कि किसी तरह पास करवा दो आगे से किसी लड़की को बुरी नज़र से नहीं देखूंगा और लड्डू का भोग भी लगवाऊंगा । अपनी पढ़ाई पर भरोसा नहीं रहता बस ऊपर वाला नैया पार लगवा सकता है उसी तरह सरकार को अपने किये हुए विकास के कार्यों पर और तमाम विज्ञापनों पर भरोसा नहीं है बस ऊपर वाला भूल चूक माफ़ कर जितवा दे यही विश्वास है । वो मेहरबान तो गधा पहलवान । नेता जो चुपके से उसी पंडित जी को मिलने आये हैं रामभक्त हैं पंडित जी इस की थोड़ी चिंता है और उनको भरोसा भी दिलवाया था आज याद आई है बात । जैसे खुद पहले साधारण कपड़े पहनते थे और सत्ता मिलते ही शाही पोशाक और सज धज से रहने लगे हैं पंडित जी को देने को रामनामी कपड़े की जगह चमकीली महंगी पोशाक लाये हैं ।
पंडित जी अभी भी उसी पुरानी रामनामी कपड़े की पोशाक पहने बैठे हैं । इस से पहले कि वो राम मंदिर की बात कहें नेताजी खुद ही कहने लगे आपसे वादा किया था अयोध्या में मंदिर बनवा कर फिर दोबारा दर्शन करने आने का मगर अदालत का फैसला हुआ नहीं यही मज़बूरी है । भगवान सब जानते हैं हम सत्ता के नहीं भूखे और राम को खुले आसमान में रहना कितना कठिन लगता होगा । पंडित जी बोले राम जी से भला क्या छुपा है जब अपने अपने दल का इतना शानदार दफ्तर राजधानी में बनवाया है इतने कम समय में तो भगवान को उस से बेहतर आधुनिक सुःख सुविधा वाला घर भी बनवाना कठिन नहीं है । अयोध्या हो या दिल्ली भगवान को ठिकाना तो मिलना चाहिए तो क्यों नहीं जब तक अदालत निर्णय देती आप दिल्ली में उसी आलीशान भवन को राम जी का मंदिर बनवा दें ताकि आपका किया वादा भी झूठा साबित नहीं हो और रामजी को भी देश की राजधानी में ठिकाना मिल जाये । आप उपाय पूछने आये हैं तो चुनावी जीत का मुझे यही नुस्खा रामबाण दवा की तरह समझ आया है । आपको भी आसानी होगी जब चाहो रामजी के दर्शन को जा सकोगे अन्यथा इतने साल कब आपको अयोध्या जाने को फुर्सत मिली है । ये कोई नमुमकिन कार्य नहीं है भला कौन आपके दल वाला अपने दल के दफ्तर को भगवान राम को अर्पित करने का विरोध करेगा । सत्ता होगी तो ऐसे भवन बनाना कोई मुश्किल तो नहीं है । पंडित जी कहने लगे आपके मन की बात समझते हैं देशवासी और मुझे भी पता है तभी बिना आपके कहे आपकी समस्या समझ उसका निदान भी बता दिया है । अब मुझे अपने राम जी की कथा पढ़नी है आप सुनना चाहो तो बैठ सकते हैं और अगर उस से ज़रूरी काम देश की जनता की भलाई का करना चाहते हैं तो भी और भी अच्छा है । पंडित जी कथा पढ़ रहे हैं ।
नेता जी विचार कर रहे हैं और मन में आता है कि किसी शाम टीवी पर आठ बजते ही घोषणा कर दी जाये कि आज रात आठ बजे से हमारे दल का शानदार भवन वाला दफ्तर दल की जायदाद नहीं रहेगा और भगवान राम जी का बसेरा बन जायेगा । उनको पता है अभी अगर ऐसा कहते हैं कि जब तक अयोध्या का मंदिर बन नहीं जाता तब तक अस्थाई मंदिर यही होगा तब भी बाद में धर्म वाले जगह को छोड़ने पर नहीं मानेंगे और एक बार मंदिर बन गया तो कोई वापस दल का दफ्तर नहीं बना सकेगा । सामने कुंवा है पीछे खाई है । अब कोई केवल वादा करने पर मानने वाला नहीं है सब का भरोसा खत्म हो चुका है । भगवान भी समझ चुके हैं लोग मतलब को आकर पिछली भूलों की माफ़ी मांग फिर से उन्हीं चालाकियों से स्वार्थ सिद्ध करने को हाथ जोड़ भगवान के दयालु होने का फायदा उठाते हैं मगर इस बार पाला पड़ा है तो इक गुजराती कारोबारी ने आकर सलाह दी है कि हिसाब किताब अपनी जगह और भक्ति अपनी जगह । केवल आरती पूजा से काम नहीं चलता है अगर खाली पेट भजन नहीं होता है तो ऐसे बिना छत के खुले आसमान में मंदिर में रहने से रामजी को भी अच्छा नहीं लगता है । बैंक वाले क़र्ज़ लेने वाले से उसकी जायदाद रहन रखवा लेते हैं तो भगवन को भी अपने मंदिर बनवा कर देने तक विकल्प की जगह मिलनी चाहिए । गेंद अब भगवान ने नेता जी के पाले में डाल दी है निर्णय उनको करना है । भगवान का साथ चाहिए अथवा शानदार भवन के दफ्तर का सुख ज़रूरी है । आठ बजने को हैं और भगवान टीवी पर नज़र लगाये हुए हैं । जब से उस आधुनिक भवन को देखा है मुझे भी वहीं रहना है की आवाज़ सुनाई दे रही है । दिल्ली जाकर वापस आने का मन किसी का नहीं करता है । कौन जाता है ग़ालिब दिल्ली की गलियां छोड़कर , दिल्ली एक है नेता जी को भी दिल्ली से नहीं जाना और भगवान भी दिल्ली से दिल लगा बैठे हैं ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें