किसी बहाने बात दिल की सुनाते हैं ( हाले दिल ) डॉ लोक सेतिया
हां ज़िंदगी का साथ ऐसे निभाते हैं , किसी बहाने बात दिल की सुनाते हैं। सवाल इतना है करते क्या हैं मगर जवाब देने को तमाम ज़िंदगी कम पड़ जाती है। करना चाहते कुछ हैं करना पड़ता कुछ है और जो किया वो होता कुछ और है। लोग समझते हैं करने का मतलब यही है कि कमाई किस तरह करते हैं अगर आप उनको बताओ हम लिखते हैं तो कहते हैं वो ठीक है मगर काम क्या करते हो। बात इतनी भी नहीं है लिखने को काम समझने वाले इस से आगे पूछते हैं क्या लिखते हैं। माना जाता है कि कोई एक ढंग समझ कर उसी तरह जो चाहो लिखो। ये बंधन तो नहीं है मगर इस तरह लिखने से आप हर बात कह नहीं सकते हैं तभी मैंने कहा है।
" कहानी हो ग़ज़ल हो बात रह जाती अधूरी है , करें क्या ज़िंदगी की बात कहना भी ज़रूरी है। "
बात को साहित्य से अलग जीवन में भी समझते हैं। अधिकतर लोग सोचते हैं उनको उस कार्य में दक्षता हासिल करनी है जिस से आमदनी या व्यवसाय या कारोबार अथवा नौकरी में फायदा हो। मगर जीवन पैसे कमाने भर से नहीं चलता है। जिस तरह आपको पांव हैं मगर साइकिल कार चलाना आना चाहिए उसी तरह आपको बाहर के काम के साथ घर के काम भी आते हों तो आपको बेबसी नहीं होती है और समाज के बारे भी समझ होना कोई बेकार की बात नहीं है। जब हम चाहते हैं अच्छा समाज हो रहने को तो उसे अच्छा बनाना भी हमने ही है। जीवन में पग पग पर समस्याओं से घटनाओं से वास्ता पड़ता है मगर जब हम उनसे परिचित नहीं होते तो उनसे डरते हैं घबराते हैं। अगर समझ सकते हैं तो उनसे बाहर निकल जाते हैं। सबको इक सीमा तक जानकारी हर विषय की हासिल करनी चाहिए भले काम कोई भी एक जो चाहते हैं करें हम। मगर ध्यान रखने की बात ये भी है कि बिना समझे जाने हर विषय की बात करना और भी नुकसान देने का काम करता है। आपको जो नहीं मालूम किसी से समझना उचित है और समझे बिना किसी राह जाना उचित नहीं है। जिसका ज्ञान नहीं उसकी सलाह देकर आप किसी को खतरे में डालते हैं। राजनीति की बात हम समझते हैं बहुत आसान है मगर अक्सर हम बिना समझे उस पर बहस में उलझे रहते हैं। और हमारे देश के राजनेता हर बात पर भाषण देते हैं मगर समझते शायद किसी भी बात को कम ही हैं। तभी जिनकी हर बात भरोसे के काबिल होनी चाहिए उनकी किसी बात का कोई भरोसा नहीं करता है। ऐसा इसलिए है कि राजनीति में आये ही लोग राजनीति को बिना समझे हैं और उनको राजनीति केवल सत्ता अधिकार शान शौकत और धन ताकत पाने का माध्यम लगती है देश और जनता की भलाई या संविधान की भावना को नहीं जानते हैं। वास्तव में इनका धर्म की बातें करना भी ऐसे ही होता है इनका कोई धर्म नहीं भगवान नहीं खुदा नहीं उनको अपने स्वार्थ से सबसे महत्वपूर्ण लगते हैं। जब तक हम इनकी वास्तविकता को समझेंगे नहीं और सोचते नहीं हैं कि जो खुद संविधान की लोकतंत्र की उपेक्षा करते हैं दलगत राजनीति में जो मर्ज़ी करते हैं हमें कुछ भी नहीं दे सकते हैं। आपको किसी एक बात में तमाम जानकारी होना पैसा हासिल करवा सकता है मगर अच्छा जीवन नहीं क्योंकि हर समस्या का हल पैसे से होना संभव नहीं है। इस दायरे से बाहर आइये और समाज घर की हर तरह की जानकारी हासिल करिये। टीवी चैनल सोशल मीडिया पर समय बर्बाद होता है इन से आजकल मनोरंजन भी स्वस्थ रूप से नहीं होता बल्कि भटकाने का काम अधिक होता है। लोग सही गलत की परख किये बिना इन पर यकीन कर धोखा खाते हैं। लोगों से मिलना स्वस्थ चर्चा करना विचारों का आदान प्रदान करना छोड़ दिया है हमने और केवल वहीं जाते हैं जहां हम जो चाहते हैं वही सब होता हो। इसको कुवें का मेंढक कहते हैं जो इक बंद दुनिया को समझता है यही सब कुछ है। आजकल बच्चों को सब सिखाने की बात की जाती है किताबी पढ़ाई के साथ साथ कला नृत्य संगीत तैरना जैसे अनेक काम। खुद हम भी कोशिश कर बाकी चीज़ों को भी जानने का कार्य कर सकते हैं। ये संक्षेप में जीवन की बात थी अब अपने लिखने को लेकर बाकी बात।
लिखना मेरे लिए अपनी और समाज की वास्तविकता को समझना और अपनी बात कहना है। कई लोग समझते हैं किसी एक विधा में निपुण होने से नाम शोहरत दौलत हासिल की जा सकती है मगर मुझे लगता है कोई एक विधा आपकी सभी बातों को बयां करने में नाकाफी है। ग़ज़ल में आप जो कह सकते हैं उस में निर्धारित मापदंड में ज़िंदगी की कहानी कहना मुमकिन नहीं है और अगर कोई ये समझता है कि सर्वोत्तम लिखना है तो इसकी सीमा कोई नहीं है कोई भी ग़ालिब निराला दुष्यंत मुंशी जी टैगोर दुनिया भर के लाजवाब लिखने वालों की कोई हद नहीं बना सकता है। इतना अवश्य है कि आपको जो भी जिस विधा में लिखना है उसके नियम समझ कर लिखना चाहिए कमियां रह सकती हैं और उस से बेहतर लिखा जा सकता है मगर गलतियां नहीं होनी चाहिएं और ऐसा नहीं होना चाहिए कि पढ़ने वाला कहे लिखना ज़रूरी ही नहीं था। आपके लिखने का कुछ मकसद होना चाहिए और लिखने की सार्थकता सबसे अहम है। मुझे लिखना ऐसे लगता है जैसे जो किसी से नहीं कह सकते खुद अपने आप से बात कर लिया करते हैं। मुझे जो काम नहीं आता वो है दुश्मनी करना जबकि मेरे दुश्मनों की कोई कमी नहीं है। दोस्ती की है निभाई भी बार बार फिर भी दोस्त बनाकर रखना मुझे नहीं आया अभी। लोग समझते हैं और बताते भी हैं कि वो फ़रिश्ते हैं मगर मैं तो गुनहगार इंसान हूं और कभी फरिश्ता होने की बात समझी नहीं सोची भी नहीं। आदमी बनकर रहना इस दुनिया में आसान भी नहीं है। किसी से गिला नहीं शिकवा नहीं है जफ़ा की जिस किसी ने कभी वफ़ा भी निभाई थी ये याद रहता है। कभी कभी सोचता हूं क्या लिखना चाहता हूं तो लगता है अभी लिखने की शुरुआत भी ठीक से नहीं हुई है मगर कुछ है ज़हन में जो लिखकर दुनिया से अलविदा होना चाहता हूं कोई इक ग़ज़ल ही सही और नहीं तो कोई शेर ही हो या कोई कविता कहानी व्यंग्य आलेख जो संक्षेप में सार में बयां कर दे मुझे जो भी कहना है। अधिक पढ़ने की फुर्सत किस के पास है।
मैं कैसा हूं कहां हूं कोई नहीं जानता , बदनसीब ऐसा हूं कोई नहीं पहचानता मुझे। यहीं ज़िंदा हूं और इसी जगह मरना भी है इक दिन जहां कोई मेरी तरफ देखता तक नहीं। ज़िंदगी के पिंजरे में कैद हूं और अपने पिंजरे से पंछी को क्या प्यार होता है मुझे पिजंरा लगता ही नहीं अपना है। मगर पिंजरे में चहचहाता रहता हूं बाहर आसमान पर उड़ते पंछियों को देखता हूं तो सोचता हूं उड़ने लगा हूं। इस पिंजरे से देखता हूं कितना बड़ा है ये जहान ज़मीन आसमान लेकिन मैं न आकाश में हूं न ही ज़मीन पर ही। ज़मीं अपनी न आसमान अपना फिर है ये सारा जहान अपना।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें