आवारा भीड़ का महान देश ( कड़वा सच ) डॉ लोक सेतिया
अदालत आपके घर तलवार लेकर नहीं आ सकती , अदालत देश समाज का संतुलन बनाए रखने को नियम लागू करने का निर्देश ही देती है। अपने देश की अदालत की बात की अवहेलना करना देश के साथ छल करना है। मगर हम लोग निसंकोच करते हैं मिलकर करते हैं , कोई किसी को रोकता टोकता नहीं है बढ़ावा देते हैं। मैं किसी कानून को नहीं मानता तुम भी मत मानो , सब मनमर्ज़ी करते हैं और इसे अराजकता नहीं आज़ादी कहते हैं। खुलेआम अदालतों के निर्देश की धज्जियां उड़ाते हैं तमाम लोग। सरकार प्रशासन खुद यही करता है जिसे वास्तव में बनाया ही संविधान का शासन और कानून का राज कायम रखने को है। मगर ऐसा करने के बाद भी खुद को देशभक्त कहते झिकझकते नहीं हैं न नेता न अधिकारी न ही जनता। जिस देश की हर डाल की हर शाख पर उल्लू बैठा हो उसका भला भगवान भी नहीं कर सकता। जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा वो भारत देश है मेरा को बदल दिया जाना चाहिए। सोचिये हम क्या क्या करते हैं। भीड़ बनकर इक दहशत बन जाते हैं इंसान नहीं शैतान बन जाते हैं। कोई भी झंडा उठाकर किसी भी संगठन के नाम पर गुंडागर्दी करते हुए शान से अपराधी बन जाते हैं। भीड़ बनते ही रास्ता रोकना अत्यधिक शोर करना औरों का जीना दुश्वार करना तोड़ फोड़ करना इक आदत बन गई है और ऐसा करते हुए हम अपराधी होकर भी खुद को सभ्य नागरिक मानते हैं।
हम सब धर्म की बात करते हैं भगवान को मानते हैं ऐसा दावा भी है मगर क्या हम सच में धार्मिक हैं। दिखाई देता तो नहीं है धर्म इंसानियत हमसे कोसों दूर है। जिन की हम पूजा करते हैं उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया था न ऐसा करने को कहा ही था। धर्म के नाम पर जो मर्ज़ी करना किस धर्म की किस किताब में समझाया गया है , कहीं नहीं लिखा हुआ ये सबक। ये पाठ पढ़ाने वाले नेता सरकारी लोग सामाजिक संस्थाओं की आड़ लिए अधर्मी लोग , नफरत की आग लगाने वाले स्वार्थी लोग किसी धर्म को नहीं जानते समझते। जिनको आदर्श मानते हैं उन्होंने जीवन काल में देश समाज के नियमों को कभी तोड़ा नहीं न ही अपनी सत्ता का दुरूपयोग किया। नेकी की राह पर चले हर कठिनाई को झेला मगर डगमगाए नहीं। हम उनकी तस्वीरों को पूजते हैं उनके आदर्शों को त्यागकर तो हम उनकी भक्ति नहीं उपहास करते हैं। जो लोग समझते हैं हम पैसे वाले हैं अपने पैसे से जो चाहे करें किसी को क्या वो अभिमानी और पापी लोग होते हैं। पैसा धन दौलत अथवा ताकत अनुचित करने को उचित नहीं करती है बल्कि ऐसा करने वाले उसके अधिकारी नहीं हैं इस बात का सबूत देते हैं। देश केवल धनवान लोगों का नहीं है सभी का है और सब एक समान हैं। मगर हम कोई और नियम तोड़ता है तो आलोचना करते हैं पर खुद तोड़ते सोचते तक नहीं हैं कि हम सभ्य नागरिक ही नहीं बन पाते तो देश भक्त कैसे बन सकते हैं।
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