इतिहास का काला अध्याय ( मौजूदा हक़ीक़त ) डॉ लोक सेतिया
जो काम आज करने जा रहा हूं बेहद कठिन ही नहीं खुद अपनी रुसवाई की भी बात है फिर भी लिखने लगा हूं आजकल का वास्तविक इतिहास अपनी कलम से जिस पर कोई नाज़ तो नहीं किया जाना चाहिए। सोचा तो समझ आया कि हुआ क्या है जो हम सभी सदमें में हैं समझ नहीं पाये अभी तक हुआ क्या है। किसी व्यक्ति या दल से विरोध नहीं किसी विचारधारा से टकराव नहीं कोई चाहत नहीं शोहरत की नाम की न ही कोई गलतफहमी है इतिहास लेखन या साहित्य लेखन में मेरी अहमियत क्या कोई जानता तक भी नहीं। इक दर्द है इक टीस सी है सीने में चुभती हुई जो बेचैन किये है और हर दिन कुछ न कुछ घटता रहता है जो ज़ख्मों को कुरेदता रहता है। क्या ये तकलीफ़ मेरी है या पूरे देश की समाज की है और क्या ये एहसास मुझी को है या फिर बाक़ी लोगों को भी होता है। अगर होता है तो जो अनगिनत लिखने वाले हर दिन किताबें लिख लिख छपवा रहे हैं उन में किसी ने इस वक़्त की व्यथा को समझा है साहस किया है। लिखना क्या यही है जो अब पढ़ने को मिलता है और सभाओं में मंचों पर संस्थाओं के आयोजनों में सुनाया जा रहा है। केवल यही याद दिलवाना कि हम उनके वंशज हैं जो तोप के सामने कलम लेकर लड़ा करते थे। उन बहादुर लोगों के वंशज क्या ऐसे कायर हो सकते हैं। सच की बात का दावा करने वाले अख़बार टीवी चैनल से कविता कहानी लिखने वाले सब के सब क्या अपना फ़र्ज़ राह दिखलाने का कर रहे हैं या अपने सवर्थ सिद्ध करने वालों की भीड़ में शामिल होकर हुआं हुआं का शोर मचाने लगे हैं। पढ़ लिख कर समझदार कहलाने वाले लोग मुझे क्या सोच खुद को किनारे खड़े कर दूर से नज़ारा देख रहे हैं बर्बादी का और अपने समझदारी साबित करने को सोशल मीडिया पर व्यस्त हैं चौबीस घंटे। ऐसे में मैं इक नासमझ और पागल आपको आज के इतिहास का वो काला अध्याय पढ़कर सुना रहा हूं जिसपर कोई नाज़ नहीं करेगा चाहे बेशर्मी से नज़र बचाकर निकल जाने का कार्य करे या सुनकर अनसुना कर दे।
आपने सोचा क्या हुआ था जिस को देश की जनता ने चुना था उसने एक दिन बिना सोचे समझे घोषित कर दिया कि देश के हर नागरिक की तलाशी ली जाएगी। कभी किसी थानेदार ने शहर भर की तलाशी की बात की है किसी इतिहास में लिखा है। अपराधी को पकड़ने का ये तरीका क्या मंज़ूर किया जा सकता है। फ़िल्मी पार्टी में किसी का कीमती हार चोरी हो गया तो सभी बुलाये महमानों की तलाशी की बात की जाती देखी है कोई नहीं खुद को अपमानित महसूस करता। वास्तव में कोई किसी से ऐसा कहे तो जीवन भर उससे बात ही नहीं करना चाहोगे। मगर यहां ये घोषणा करने वाला तो घर का मालिक भी नहीं है चौकीदार है जनता का रखा हुआ। रखवाली करना छोड़ सब को चोर समझने लगा है। उसने कहा था तलाशी के बाद चोर नहीं पकड़ा गया तो सज़ा खुद उसे लोग दे सकते हैं चौराहे पर खड़ा कर मगर दो साल बाद तक चोरी का माल बरामद हुआ नहीं फिर भी उसको अपना अपराध स्वीकार नहीं है। उसकी गलती है कि नहीं क्या ये भी खुद वही तय करेगा। मामला इतना ही नहीं है उसकी गलतियों की कोई गिनती ही नहीं की जा सकती। अमेरिका में ट्रम्प के झूठ कितने हैं बता रहा है मीडिया मगर यहां हर झूठ को सच घोषित किया जा रहा है।
आज जब सत्ता संवैधानिक संस्थाओं को ध्वस्त करने लगी हुई है और जो उसकी नहीं मानता उसी को गुनहगार साबित कर सज़ा देने लगे हैं सीबीईआई आईबी अदालत के बाद आरबीआई की बारी है और आगे किस किस को बर्बाद करना है उनके इरादे नहीं मालूम। क्योंकि उनको अभी सत्ता चाहिए और किसी भी तरह से हर कीमत पर चाहिए। पहले उनसे कोई पूछेगा आपको चुना किस किस वादे पर गया था उनका क्या हुआ। अपने जो किया सब सामने है मगर चुनाव से पहले अपने ये तो नहीं कहा था कि आप सत्ता मिलते ही देश विदेश घूमने का कीर्तिमान स्थापित करना चाहते हैं और उस पर इतना धन देश का खर्च करेंगे जो पहले कभी किसी ने नहीं किया और उन सारी विदेशी यात्राओं से देश को मिलना कुछ नहीं केवल आपकी छवि चमकानी है। ये बहुत महंगी देशभक्ति है जो देश को देती कुछ नहीं लेना सभी कुछ चाहती है। अपने तो लोगों को बताया था कि अपने गरीबी देखी है और गरीबों की हालत सही करोगे मगर अपने तो रईसों की तरह शान से जीवन व्यतीत करने में राजाओं महाराजाओं को पीछे छोड़ दिया। अपने रहन सहन वेश भूषा और हर गली चौराहे पर अपनी तस्वीर के विज्ञापन से क्या देश की दशा बदल जायगी या आप की हंसती मुस्कुराती तस्वीर जनता को चिढ़ाती लगती है। काला धन मिला नहीं काले धन वाले जेल नहीं गये और आपके ख़ास लोग देश के बैंकों का धन लेकर रफू चक्क्र हो गए। अपने बार बार कहा था परिवारवाद को खत्म करना है मगर अपने संघवाद को बढ़ावा दिया और हर राज्य में सत्ता विस्तार कर संघ के लोगों को सत्ता पर थोपने का काम ही नहीं किया बल्कि ऐसे लोगों के सरकार चला पाने में असफल होने पर भी ख़ामोशी से साथ दिया और ऐसे नाकाबिल लोग मनमानी कर अपराध और दहशत को बढ़ाने का काम करते रहे।
नाम बदलना और पुराने लोगों को बदनाम कर खराब साबित करना क्या यही किसी चुनी हुई सरकार का ध्येय होना चाहिए। सत्ता की हवस में आपने उस पुरानी कहानी को दोहराया है जिस में और अधिक ज़मीन पाने की चाहत में कोई शाम ढलने तक अपनी मंज़िल तक नहीं पहुंच पाता है। हाउ मच लैंड ए मैन नीड्स। अब आपको पता चलने लगा है जब साये लंबे होते जा रहे हैं मगर अपने जिस मंज़िल पर पहुंचना था वो कहीं दिखाई नहीं दे रही है। अच्छे दिन नहीं हैं। भ्र्ष्टाचार बढ़ा है। गरीबी बढ़ी है। महंगाई और बढ़ती गई है। लोग असुक्षित हैं। महिलाओं को और भी चिंता बढ़ी है सुरक्षा को लेकर। रोज़गार खत्म हुए हैं। कारोबार बर्बाद हुए हैं। किसान ख़ुदकुशी करने को विवश हैं। सीमा पर सैनिक शहीद हो रहे हैं। पहले सत्ताधारी लोगों ने जो भी बनाया सामने है अपने क्या बनाया है नहीं मालूम। भूखे भजन न होय गोपाला। देश को मंदिर मस्जिद और धर्म के नाम पर नफरत और बांटने का काम नहीं करना था और किसी ऊंची मूर्ति से एकता होती है ऐसा शायद ही कोई समझता है। सार्थक क्या है जिसे सुनहरे हर्फों में लिखा जाये आज का इतिहास ऐसा हर्गिज़ नहीं जिस पर भावी पीढ़ियां गर्व करेंगी।
इक पुरानी कहानी फिर से लिखनी पड़ी है। इक नगर का शासक बनाने की बात आई तो इक जादूगर आया कहीं से और उसने दावा किया जादू की छड़ी से सब कुछ कर दिखाने का। लोग भोले और नासमझ सपने बेचने वाले सौदागर की चिकनी चुपड़ी बातों में फंस गये। और उस के सर पर ताज रख दिया। वो हर दिन खेल तमाशे दिखलाता और हाथ की सफाई और आंखों के सामने झूठ का सुनहरा पर्दा डालकर शानदार दृश्य दिखलाता और कहता कि जल्दी ही इस ख्वाबों की दुनिया को वो हक़ीक़त में बदल देगा। मगर वास्तव में उसे जादू से धोखा देने को छोड़ कुछ भी नहीं आता था। उसको जितना समय दिया गया था धीरे धीरे व्यतीत होता गया और आखिर में उसने नगर वालों को बर्बाद ही कर दिया। संक्षेप में आज भी हम वास्तविकता और छल का अंतर नहीं समझते हैं और ठग आते रहते हैं। हम खुश हैं ठगस ऑफ़ हिंदुस्तान फिल्म के बड़े बड़े अभिनेता हमें जादूगर की तरह झूठी दुनिया में रखना चाहते हैं और हम ख़ुशी से उनको धनवान बनाने को तैयार हैं जबकि ठग तो हमारे पर नेता अधिकारी क्या साधु संत बनकर भी आते रहते हैं जो खुद अपनी इच्छाओं को पूरा करते हैं मगर हमें भगवान सब करेगा का सबक पढ़ाकर उल्लू बनाते हैं।
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