तोता मैना की कहानी नया अध्याय ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
जब से देश में घोटाले होने लगे तभी से सरकार ने इक तोता पाल रखा था। कथावाचक तोता जो लिखा हुआ मिलता उसे बांचता था। कभी किसी ने दक्षिणा पर सवाल नहीं उठाया मामला जितना बड़ा दक्षिणा उतनी अधिक। कथावाचकों का झगड़ा कोई अनहोनी बात नहीं है कथावाचक आरोप लगाते रहते है सरकार बीच बचाव करती और किसी को खबर नहीं होती। नये नेताजी को उस तोते पर भरोसा था जो बीस साल से उनकी पसंद की कथा पढ़ता रहा था। मुश्किल सामने आई कि तोता अनुभव में कम था और उस से अधिक अनुभवी कथावाचक तोते पहले से विभाग में थे। मगर बीच का रास्ता तलाश किया और अपने तोते को दूसरे नंबर पर बराबरी के अधिकार देकर नियुक्त किया और पहले पर भी अपनी पसंद का थोड़ा अनुभवी तोता रख लिया। जो काबिल और अनुभवी थे उनको रखना मुश्किल था क्योंकि उनको पुरानी कथा कंठस्त थी मगर सत्ता को अपनी लिखवाई किताब की कथा बंचवानी थी। सरकार ने उन दोनों को अपनी पसंद की कथा समझा दी थी और उनको पढ़नी भी आ गई थी। ऐसे में कोई नया घोटाला सामने आने को था जो नज़र आता भी छुप जाता भी। ऐसे कठिन समय में दो कथावाचक खुद को देशभक्त और दूसरे को देशभक्त नहीं चोर है का आरोप लगाने लगे। चोरी हुई सब जानते हैं मगर चोरी का माल बरामद नहीं हो सकता था। ज़रूरत थी उस पुरानी वाली देशभक्ति की किताब की मगर उसको पहले ही नष्ट किया जा चुका था ऊपरी आदेश से। फिर भी किताब तलाश करने की बात ज़रूरी थी और तलाशी शुरू भी कथावाचक से शुरू की गई।वादों की किताब अभी सुरक्षित रखी हुई है अलमारी में। चुनाव जीतने के बाद संभाल कर रखी दी थी। और इरादों की किताब पर अमल शुरू कर दिया था जो अभी जारी है। इरादे बहुत हैं कुछ सामने हैं कुछ छुपे हुए हैं। इरादों की किताब बहुत विस्तार में लिखी है। लिखने वाले लिख कर शर्मिंदा भी बहुत थे मगर फिर भी दंगों की किताब को जलाया नहीं देश जलाने के बाद भी। विश्वास था सत्ता उसी से मिलेगी तभी उसकी नियमित पूजा करते रहे हैं उनके बाद उनके शागिर्द भी। बड़े मियां ने सिखाया छोटे मियां को वही भाया। अभी नफरत को और बढ़ाना है जो सबक भूल गये उनको याद करवाना है। जाना चाहिए जाना चाहते नहीं दोबारा आज़माना है वही किस्सा पुराना है। चोरों की किताब दो भाग में लिखवाई हुई है सभी विभागों को अलग अलग ढंग से समझाई हुई है। आपको भी भिजवाई हुई है भूली क्यों सीबीआई है। पहला भाग है चोरी करने के ढंग हज़ार पढ़ते हैं बड़े अधिकारी और उसके सब यार। चोरों के उसूलों की है जो आधी बाकी किताब हुआ उसी को लेकर है नया फसाद। उसूल तोड़ने वाले पर लिखवाई एफआईआर मचा हुआ है हाहाकार। खो गई उसूलों की किताब है जिसमें हर सवाल का दिया जवाब है। इतिहास की भी किताब रखी है दूध में गिरी कोई मक्खी है। किताबों की बात कभी नहीं बदलती है यही बात उनको मगर खलती है। देशभक्ति को बेचना बात अच्छी है झूठ की हर इक बात सच्ची है। सच्चाई कड़वी है नीम जैसी है , बात झूठी अफ़ीम जैसी है। झूठ मक्खन भी है मलाई भी और खिलाता है वो मिठाई भी। हो गई गुम है देशभक्ति की किताब जिसमें शामिल था सभी का सांझा हिसाब। जाने किस ने चुरा लिया उसको , हम सभी ने भी भुला दिया जिसको। गब्बर सिंह तक हैरान है अभी तलक उस पर नहीं बसंती भी लगा सकी गलत कोई इल्ज़ाम है। नाचना गाना कब किसने कहा हराम है जब भी मौज मस्ती हो वही सुहानी शाम है। डाकू तक देशभक्ति की किताब को अच्छा बताते थे , उसी के सामने सर झुकाकर बदल जाते थे। जिस किसी ने किताब चुराई है लौटा दे दुहाई है।
कोतवाल को रपट लिखनी है किस भाषा में लिखी हुई किताब है जिस किसी ने पढ़ी हो सामने आये। सुनी है मगर देखी नहीं देखी थी मगर पढ़ पाये नहीं सब यही जवाब देते हैं। सीबीआई को सुरक्षा करनी थी देशभक्ति की किताब अनमोल थी। जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं सरकार कहती है जिनको किताब की सुरक्षा करनी थी उन्हीं को जांच का अधिकार नहीं हो सकता है। सीवीसी को पता होगा किताब को किसे तलाश करना है। नेता लोग ब्यानबाज़ी से बाज़ नहीं आते हैं कोई कहता है जब आज़ादी के बाद उस किताब की पढ़ाई ही बंद कर दी गई और केवल कई तरह की बातों को ही देशभक्ति मान लिया गया तो किताब को दीमक चाट गई होगी। आजकल देशभक्ति तिरंगा फहराना कोई दौड़ आयोजित करना किसी खेल की हार जीत पर ख़ुशी या दुःख होने से दिखाई देती है या दो दिन खास तौर पर छुट्टी मनाते गीत गाने से नज़र आती है। पुराने ढंग की देशभक्ति जिसमें जान नयौछावर करने का जज़्बा होता था इधर चलन से बाहर है। राजनेता देश को लूटने को देशभक्ति नाम देते हैं। कहीं किसी विदेशी हाथ की बात तो नहीं है पता चले कि देशभक्ति की किताब कोई और देश अपने अजायबघर में रखे हुए हो और जिसे देखनी हो वो किताब उसे दाम चुकाना पड़ता हो। दाम चुकाने वाली देशभक्ति आज कौन चाहता है , हर किसी को देशभक्त बनना है सांसद विधायक या कोई तमगा पाकर।
सत्ता का कहना है आपको देश में अगर रहना है झूठ को सच ज़रूरी कहना है। देशभक्ति उन्हीं की सच्ची है आज़ादी से पहले की देशभक्ति तो कोई बच्ची है। किताब फिर से लिखवानी होगी जिस में बस उनकी सिर्फ कहानी होगी। न कोई दादा होगा न कोई नाना नानी होगी , आपको ताली ही बजानी होगी , नेता जी को सुनानी है उन्हीं की ज़ुबानी होगी। आग पहले लगानी होगी फिर आग से आग बुझानी होगी। जहां राजा होगा वहीं राजधानी होगी , रानी नई होगी न ही पुरानी होगी। लोग शक कर रहे हैं जिस पर उसका कहना है किताब मिट गई हमारी राजनीति में पिसकर। सत्ताधारी खामोश है किताब की सुरक्षा उसी का ज़िम्मा था। उसको पहले सत्ताधारी ने सौंपी थी आने वाले को अपने बाद सौंपनी थी। सवाल हैं जवाब नहीं हैं , उनका सब ज़ुबानी जमा खर्च है कोई बही खाता नहीं है। जानकर कहने लगे हैं ये तो पुरानी कथा का नया अध्याय है। जो पहले कोई करता वही चल रहा है। बेकार लोग तोते की साख की चिंता करते हैं जब तोता है वो भी सरकारी सत्ता का पिंजरे में बंद तोता तो साख बचती कहां है। जो पढ़ाया वही दोहराता है फिर भी सभी को क्यों भाता है। आधी रात को दो तोतों को पिंजरे से बाहर कर दिया और इक तोता वहां रख दिया गया , पिंजरा खाली नहीं रहना चाहिए। जिन को किताब खोजने पर लगाया गया था उनको भी आज़ाद कर भेज दिया अलग अलग जगहों पर। हर तोता रखवाली करने वाला था अब हर तोते पर पहरा लगाया गया है। किताब मिल गई तो चौकीदार की नौकरी पर बन आएगी। एक डाल पर तोता बोले एक डाल पर मैना , दूर दूर बैठे हैं लेकिन प्यार तो फिर भी है ना , बोलो है ना। कोयल भी गीत सुना रही है मेरी ग़ज़ल गुनगुना रही है।
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