पढ़े लिखे अज्ञानी लोग ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया
बात कोई भी हो बात कहने से पहले समझना ज़रूरी है। किताबी शिक्षा हासिल करना नौकरी कारोबार के लिए अपनी जगह है। मगर जीवन में समाज और देश के बारे क्या समझ रखते हैं उसका महत्व अपनी जगह है। इधर पढ़ लिख कर हाथ में कलम है या स्मार्ट फोन पर सोशल मीडिया पर लिखने की आज़ादी कई लोगों को हर बात मज़ाक सरीखी लगती है। जिसे देखो इस बहस में उलझा है कि इन दो लोगों में किसी एक को अगला प्रधानमंत्री चुनना है। क्या आपको समझ है कि संविधान किसी दलीय लोकतंत्र की बात ही नहीं करता है। और अगर अभी तक ऐसा होता आया है कि सांसद चुनने से पहले ही तय हो कि चुने जाने वाले सांसदों का नेता कौन होगा तो ऐसा संविधन की भावना के विपरीत है। जिनको जनता सांसद बनाती है उनके खुद के संविधान के अधिकार को ही अपहरण करना और उनको कठपुतलियां समझना देश की जनता और सवा सौ करोड़ लोगों का अपमान है। क्या ऐसा नहीं हुआ पहले भी कि जो सत्ताधारी दल की नेता थी उन की ज़मानत तक ज़ब्त हो गई थी जीतना तो दूर की बात है। अगर अगले चुनाव में देश की जनता उन दोनों को ही नकार देती है तो क्या उनके बिना प्रधानमंत्री नहीं बनाया जायेगा कोई दूसरा। ये कहने का मकसद ये बताना है कि इतने गंभीर विषय को उपहास की तरह समझना अपरिपक्वता की निशानी है। टीवी चैनल या कोई विश्लेषक अथवा खुद को विशेषज्ञ समझने वाले भी नहीं जानते देश की जनता कब किस तरह से अपना मत व्यक्त करती है।
गंभीर विषय ये होना चाहिए कि जो सत्ता में है उसने जनता को कितना अच्छा शासन और अधिकार दिए हैं और अपने वादों पर कितना खरे उतरे हैं। विकास भाईचारा और देश की जनता को बुनियादी सुविधाएं देने में शिक्षा रोज़गार महंगाई और स्वस्थ्य सेवाओं से सुरक्षित जीवन के लिए कितना किया है। अपने अधिकारों का दुरूपयोग कर सत्ताधारी अपने ऐशो आराम और अपनी महत्वांकांक्षा अपने गुणगान पर धन बर्बाद तो नहीं किया है। जनता के पास भाषण लेकर नहीं अब कहना चाहिए क्या आप खुश हैं हमारे काम से , आपका जीवन सुधरा है या नहीं , अगर समझते हैं हमने आपकी भलाई की है तो दोबारा अवसर दे सकते हैं। देश की जनता को पांच साल का हिसाब देना है न कि आगे दस बीस साल को सत्ता मांगनी उचित है। देशभक्ति की बात वालो देशभक्ति देश की जनता की वास्तविक सेवा और उसके चुनने के अधिकार को आदर देना होती है। सत्ता की खातिर कुछ भी कर चुनाव जीतना दसगभक्ति नहीं कहला सकता है।
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