अधिकार मिलने के बाद ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया
बच्चे को स्कूल में दाखिल करवाने जाने पर आधार कार्ड की ज़रूरत नहीं रही मगर इक सवाल जोड़ दिया गया है कि माता को लिख कर देना होगा कि बच्चा उसकी अपने पिता की ही संतान है। उनकी मज़बूरी है कि किसी की नाजायज़ औलाद को दाखिल नहीं कर सकते और कभी बाद में किसी पत्नी के पति को खबर हुई कि उसकी पत्नी के किसी और पुरुष का साथ संबंध रहे हैं और तलाक की नौबत आने पर बच्चा किस का समझा जाना चाहिए और क्या बाद में कोई बच्चे के पिता का नाम बदलवा सकता है। अदालत को जो करना था कर चुकी मगर बाकी लोग नहीं जानते भविष्य में कुछ भी हो सकता है। मामला डी एन ए टेस्ट का बना तो मुमकिन है और कठिनाई सामने खड़ी हो कि दो लोग पिता होने का दावा कर रहे हों और डी एन ए दोनों से मेल नहीं खाये और माता बताने को जीवित ही नहीं हो। तब समझ आएगा कि बेटा सही था कि बाप जिसने कानून को नहीं बदला था कि महिला को भी बराबरी का अधिकार है किसी से संबंध बनाने का। उलझन और उलझती जाएगी सुलझाने में किसने सोचा था। अब अदालत को स्कूलों को इक नया निर्देश जारी करना होगा कि बच्चे को स्कूल में दाखिला देते समय केवल माता का नाम लिखा जाये ताकि पिता के नाम पर विवाद नहीं हो कभी भी। इतिहास में यही चलन रहा है पहले भी अगर आपको याद हो तो। ऐसा होता है कभी कभी आगे बढ़ रहे हैं समझने वाले वास्तव में बहुत पीछे चले जाते हैं। समझदार लोग अभी से बिना विवाह किसी सेरोगेट माता से संतान पैदा करवा रहे हैं। और क्या क्या होना है अभी नहीं लिखना उचित अभी ऊंठ देखते हैं और ऊंठ की चाल देखते हैं बाद में समझेंगे ऊंठ किस करवट बैठता है। अभी महिला पुरुष दोनों को समझना चाहिए कि जश्न मनाना है या मातम इस बात का। फिर इक विदेश में रहने वाले ने बवाल खड़ा कर दिया है। तभी कहते हैं परदेसियों से न अखियां मिलाना , आज यहां कल वहां उनका होता है ठिकाना। आता है उनको सौ बहाने बनाना। कभी कभी कुछ चीज़ें परदे के पीछे ढकी रहें यही अच्छा होता है। अपने भी किसी को कहा होगा या किसी ने आपको कहा होगा मेरा मुंह मत खुलवाओ इसी में भलाई है। ये औरतों को बराबरी का अधिकार कहीं उनकी मुसीबत नहीं बन जाये। अग्नि परीक्षा का चलन शुरू हो सकता है। मेरे इक दोस्त मुझे बताया करते थे कि वो हर किसी को बुरा समझते हैं जब तक उसकी अच्छाई का सबूत नहीं मिल जाये और मैं उनको पता था हर किसी को भला समझता हूं जब तक उसकी बुराई सामने नहीं आ जाती।ज़माना बदल रहा है अब पति पत्नी दोनों औरों से संबंध बनाने को आज़ाद हैं। अपराध नहीं है तो डरने की कोई बात नहीं है ,पति तो बेशर्मी से कह सकते हैं अदालत ने उचित बताया है। तुम में हौँसला है तो जाओ आशिक़ी कर लो , हम तो दिल फैंक आशिक हैं। पति पत्नी और वो फिल्म काडायलॉग है , आदमी का प्यार ऐसा है कि वो सभी को बांटता रहता है औरत बस किसी एक को ही प्यार देना चाहती है। इक चुटकुला है कोई अपने निकाहनामे को बार बार पढ़ता हुआ परेशान लग रहा था बीवी ने शौहर से सवाल किया क्या कुछ ख़ास है इस में जो लिखा हुआ आपको परेशान कर रहा है। शौहर कहने लगा नहीं बेगम मैं इस की एक्सपाइरी की तारीख ढूंढ रहा हूं मिलती ही नहीं। शायद वक़्त आ गया है विवाह का पंजीकरण भी हो और हर पांच दस साल बाद नवीनीकरण भी लाज़मी हो। समस्या है तो समाधान भी होता है , लोग थोड़ी तसल्ली से जिएंगे चलो इतने साल बाद तो छुटकारा मिल सकेगा। अन्यथा तलाक कोई आसानी से नहीं मिलता , कौन पिंजरे के पंछी को आज़ाद करना चाहता है। जो बातें लतीफों में थीं शायद हक़ीक़त में सामने आने लगें। इक लतीफा है , ज़मीन के मालिकों और मुज़ेहरों के बच्चों में मालिकों के बच्चे मार खा कर आये तो इक पिता ने अपने पिता से पूछा ये तो बुरा हुआ , पहले तो हम ज़मीदारों के बच्चे मुज़ेहरों के बच्चों की पिटाई किया करते थे। बूढ़े दादा जी ने कहा तुम बेकार चिंता कर रहे हो असलियत अभी भी वही है। आगे समझदार हैं आप , असंविधानक शब्द नहीं उपयोग करने चाहिएं। अदालत ने अधिकार महिलाओं को दिलवाये हैं मगर खुश पुरुष लगते हैं। उनके सीने से अपराधी होने का बोझ हट गया है। महिलाओं को समझ नहीं आ रहा खोया क्या था और पाया क्या है। कुछ खोकर पाना है कुछ पाकर खोना है। हिसाब की बात कोई नहीं जनता घाटा हुआ या मुनाफा हुआ है। मामला सरकारी बजट की तरह बन गया है , सबको उम्मीद थी मगर सबको गिला भी है और मिला भी है। मामला गड़बड़ है।
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