सितंबर 08, 2018

सच पर पाबंदी है लगी ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

      सच पर पाबंदी है लगी  ( आलेख )   डॉ लोक सेतिया

      झूठ का धंधा खूब चल रहा है , सच तो कोई बेचता भी नहीं बिकता भी नहीं खरीदने की औकात ही नहीं । फिर भी सच को घर में घुसने क्या अपनी गली तक नहीं आने देते । सीसी टीवी कैमरे से देख लेते हैं और द्वार बंद कर लेते हैं फोन पर उपलब्ध नहीं है सुनाई देता है । घर दफ्तर की कॉलबेल बजती नहीं सुनाई देती । सोशल मीडिया पर ब्लॉक किया इतना काफी नहीं था जो अब ईमेल भी ब्लॉक करने लगे हैं । दावा फिर भी है हम आपकी आवाज़ सुनना चाहते हैं और आपकी बात समझना चाहते हैं । मुझे ये जानकर बिल्कुल भी हैरानी नहीं हुई न बुरा लगने की बात है । यही वास्तव में सच की जीत है और झूठ के हारने की बात है , उजाले की किरण भी है और अंधियारी भी रात है । खेल नहीं जंग है शह - मात है । आप बताओ क्या हालात है । सच की अर्थी है कि झूठ की बरात है । सूखा मचा रही है अजब ये बरसात है , जी हां दुष्यंत की बात है । 
 
      झूठ काहे डरता है जब सभी कुछ उसी के हाथ है । तलवार बंदूक चाकू छुरी सब अपने साथ है । जिसे चाहें कत्ल करें कानून का जब साथ है । फिर घबराहट क्यों है किस बात का पसीना माथे पर चमक रहा है धड़कन रुकी है कि और बढ़ी हुई दिल का कैसा उत्पात है । सांस को सांस आती नहीं दम घुटने की हालात है । सच का डर इतना है कि सोना भी दुश्वार है , ख्वाब में दिखती लटकती सच की तलवार है । झूठ मुझे कहता है आकर सच तू तो मेरा पुराना यार है । मैं क्या बताऊं तुझे मेरा अपने पर नहीं इख़्तियार है , झूठ की आदत है झूठ से व्यौपार है । सच तुम बताओ तुम्हारा तो बंटाधार है । झूठ की जब हर तरफ हो रही जय जयकार है , न जाने किस बात से फिर भी शर्मसार है । सच को माना नहीं सच है क्या जाना नहीं सच को अपनाना नहीं , कोई भी नया बहाना नहीं । सच की हर राह रोक कर भी चैन नहीं करार नहीं , बेगुनाह करार होकर भी मिला दिल को करार नहीं । सच का कसूर नहीं है जनाब आपको खुद अपने पर ऐतबार नहीं । झूठ होता कभी सच का तो पैरोकार नहीं । आपकी किसी बात पर मैं कर सकता तकरार नहीं । और कोई झगड़ा हमारा तो मेरे यार नहीं । हर बार माना जो चाहा तुमने मगर नहीं इस बार नहीं । 
 

 

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