सितंबर 03, 2018

POST : 893 पंछी पिंजरा तोड़ के आया ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

          पंछी पिंजरा तोड़ के आया ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

    शायद अभी भी शायद बाकी है । शायद पिंजरा छोड़ कर उड़ जाता तो मैं भी आज कुछ बन गया होता । पिंजरे के पंछी रे तेरा दर्द न जाने कोय , बाहर से खामोश रहे तू भीतर भीतर रोय । गीत गुनगुनाने से क्या मिला जब साहस ही नहीं किया पिंजरे को तोड़ने का , हरी मिर्च खाता रहा कड़वी जो पसंद भी नहीं थी , 
मिट्ठू तोता बनकर हासिल क्या हुआ । मोदी जी की दाद देता हूं इस बात पर कि कोई चिंता नहीं की अंजाम क्या होगा । शादी के पिंजरे की कैद से निकल भागे , आज देश की सत्ता के पति हैं । पति शब्द का अर्थ भी अब पता चला , लखपति लाखों का मालिक , करोड़पति करोड़ का मालिक , लंकापति लंका का मालिक , मगर कितने पति हैं जो वास्तव में मालिक की हैसियत से रहते हैं नौकर से बदतर हालत होती है और कहलाते हैं हम पति हैं । जोरू के गुलाम । सफल वही लोग होते हैं जो खुद अपनी मर्ज़ी से उड़ान भरते हैं , हम पतंग की तरह आसमान में भी उड़ रहे हों तब भी मांझा पत्नी के हाथ रहता है । जिधर चाहे डोर से इशारा करती है और हम उधर जाने को विवश होते हैं । ऐसी ऊंचाइयों पर नाज़ करना सिर्फ मूर्खता ही है । मोदी जी ने कोई विद्यालय इस पढ़ाई का खोला होता तो जाने कितने लोगों को समझ आ गया होता अच्छे दिनों का मतलब होता क्या है । सच मोदी जी आपने कभी बुरे दिन देखे ही नहीं , आपकी खुशनसीबी से रश्क होता है । जब चाहा खुद को कुंवारा समझा जब मर्ज़ी शादीशुदा हो गये । इतना बढ़िया नुस्खा आपको मिला कहां से , औरों को भी बताते तो दुनिया भर के लोग आपको दुआएं देते । 
 
         मालूम नहीं हमारे पंख किधर गये , कट गये या उड़ना भूल गये और पिंजरे में दाना चुगते रहे । दाना डालने वाले को लगता है मेरा पाला हुआ है , शासन करना चाहते हैं । पिंजरे के मालिक पंछी से प्यार नहीं करते हैं पिंजरे की कदर करते हैं । पिंजरा चाहे सोने का बना हो या चांदी का बनाया हुआ हो रहता पिंजरा ही है । आशियां नहीं होता कोई भी पिंजरा किसी भी पंछी का , कैद में है बुलबुल सय्याद मुस्कुराए कहा भी न जाए चुप रहा भी न जाये , बुलबुल और गुल की कहानी चमन में हो तभी मुहब्बत की कहानी होती है । गमले में गुल खिले और पिंजरे में बुलबुल हो तो उनको इजाज़त नहीं होती बात भी करने की । पिंजरा बरामदे में टंगा रहता है और गमला अंगने में पड़ा रहता है । मोदी जी खुद तलाक के पचड़े में बिना पड़े आज़ाद हैं मगर मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से मुक्ति दिलाना चाहते हैं इस से बड़ा खेल कोई खेल सकता है । पहले अपनी वाली को मुक्त ही कर देते , बीच मझधार लटकी हुई है इक अबला नारी । आजकल की सबला नारी होती तो आपको पंचायत पुलिस थाने और अदालत में ऐसा बेहाल कर देती कि आपको नानी याद दिलवा देती और अच्छे दिन की आस में जैसे जनता के चार साल बीते हैं आपकी तमाम ज़िंदगी बीत जाती । आज आप जो भी हैं उनका उपकार समझना । कुछ लोग आज़ादी को लेकर झूठे ब्यान देते हैं कि आज़ादी मिली जब से मोदी जी का शासन आया जबकि मोदी जी हमेशा से आज़ाद थे कभी किसी बंधन में रहना उनको मंज़ूर नहीं था । सभी को ऐसी स्वतंत्रता मिले ऐसा संभव नहीं है , हर कोई मुकद्दर का बादशाह नहीं होता है ।
 
       शादी का मतलब किसी को पहले नहीं पता होता है । खुद ही अपने कत्ल का सामान करते हैं । बस इक बार जाल में आये तो छटपटाने के सिवा कुछ नहीं कर सकते । पिंजरे से लगाव हो जाता है और उसके बाद खुद अपने पिंजरे को सजाने को लगे रहते हैं । घर क्या कभी पिंजरे को कहते हैं । बेगुनाह होकर भी सितम सहते हैं उनके रहमोकरम पर रहते हैं । मोदी जी इस बात पर खामोश क्यों रहते हैं , सच को सच कहें काहे चुप रहते हैं । मेरे दिल में इक ख्याल आया है , जीने मरने का सवाल आया है । थोड़े महीने बाकी है चुनाव का अगला साल आया है । वोट क्या महिलाओं के ही होते हैं , हम भी बराबर वोट देते हैं , पुरुषों पर निर्दयता की भी सीमा होती है । कोई सरकार पतियों के पक्षधर भी बनाई जा सकती है । जाति पाति धर्म की नहीं असली जंग महिला और पुरुष की लड़ाई है , इधर है कुंवा तो उधर खाई है । महिला संगठनों की तरह पुरुष संगठन बनाओ मिलकर , बोझ सब अपना हटाओ मिलकर । इक जुर्म किया मुहब्बत करने और शादी करने का , कितनी कठोर मिलती है सज़ा । और नहीं तो सेवानिवृत होने का अधिकार ही सही , स्वेच्छा से पति पद से मुक्ति का कोई उपाय ही हो । आरक्षण की नहीं मांग करते , न कोई क्षतिपूर्ति ही मांगते हैं , ज़रा सी सांस आज़ादी से लेने की राहत चाहते हैं । ऐसे अनुपम विचार नहीं बार बार आते हैं , हौसलों वाले लोग हौंसलों को आज़माते हैं । मोदी जी का क्या है जब मन चाहा पिंजरा तोड़ कर आज़ाद मनमौजी बन अपनी मस्ती में जिधर चाहा चल पड़े । कैफ़ी आज़मी कहते हैं , इतना तो ज़िंदगी में किसी के खलल पड़े , हंसने से हो सुकून न रोने से कल पड़े । 11 साल की उम्र में ये लिखना कैसे हुआ वही जानते होंगे लेकिन कुछ लोग दुनिया को कम उम्र में समझने लगते हैं मोदी जी शायद समझदार हैं शुरुआत से ही समझे आप क्या ।









1 टिप्पणी:

  1. पुराना लेख है... पढ़कर अच्छा लगा...वाक़ई गृहस्थी में होते तो अच्छेदिनों कि वाट जोहते रहते...👌👍

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