सितंबर 12, 2018

अपने चरणों में जगह दे दो ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

        अपने चरणों में जगह दे दो  ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

       पैसा और शोहरत कुछ लोगों को आसानी से मिलती है टीवी पर कठपुतली बनकर दर्शक को बहलाना होता है । राजनेताओं को चुनावी गंगा में नहाना होता है जनता को राधा बना कर कृष्ण कहलाना होता है गोपियों की तरह जनता को निवस्त्र कर अपनी बात मनवाना होता है । राजनीति का नंगापन सामने दिखाई देता है फिर भी कोई राजा नंगा है नहीं कहता है , चुनाव लड़ने को सभी तैयार हैं दोस्त दुश्मन हैं दुश्मन बन जाते दिलदार हैं ।  चोरों की महफ़िल में शराफ़त का नहीं गुज़ारा है ईमानदार चुनाव लड़ता ही नहीं बिना लड़े जंग हारा है । चुनाव काले धंधे वालों का महत्वपूर्ण त्यौहार है बस उनकी खातिर आती ये बहार है । कोई कोई बिगबॉस होता है दल में कौन भला बुरा इस का टॉस होता है , नया आया खुश होता बड़ा ख़ास होता है जो पुराना था उदास होता है टिकट बिना सूखा मौसम ए बरसात होता है । नेता अपने गले में पट्टा चाहते हैं चुनाव से सदन तक जो हुक्म मेरे आका कहते हैं बंधुवा बन खुश रहते हैं ।  बिन मांगे मोती मिलें मांगे मिले न भीख सत्ता का मंत्र जपते रहते हैं आज़ादी की चाहत नहीं दल में गुलामी की आदत है लोकतंत्र की अजब ऐसी सियासत है । दल से असहमत होना बगावत है चुप चाप सहना हां जी कहना ज़रूरत है ।  चुनाव लड़ने की बस यही वजह दे दो टिकट दे कर दास बना लो आम से ख़ास बना लो आलाकमान आपकी है पहचान हम सभी हैं बेबस नादान चाहते आपका वरदान ।   
 
आप क्या चाहते हैं बाकी लोग क्या चाहते हैं आपकी समस्या है । आपके चाहने से हर बात नहीं हो जाती । हर कोई आपकी बात मानने को विवश नहीं है । घर में आपकी अपनी बिगबॉस पत्नी भी कितनी भी तानाशाही सोच रखती हो वो भी आपको उस सीमा से से अधिक विवश नहीं कर सकती जो आपको इस हद तक अपमानित करती हो कि आप अपनी आज़ादी की खातिर बगावत करने पर आमादा हो जाएं । हर कोई संविधान कानून और मानवाधिकरों की बात करता है आये दिन । मगर साल दर साल पता भी नहीं कौन है जो अपने शानदार महलों जैसे घर में कुछ लोगों को जेल की तरह कैदी बनाकर मनमानी करता है । मोगैम्बो खुश हुआ की आवाज़ वाले खलनायक को खुश करना उसके इशारे पर बिना सोचे समझे कुछ भी करना । देश में कुछ लोग हैं जिन पर कोई नियम कानून लागू होता ही नहीं , हर कानून हर नैतिक मूल्य को ठेंगा दिखाते हैं मगर वीवीआईपी जैसा रुतबा पाते हैं । सब जिनके किससे सुनते सुनाते हैं आज उनकी कहानी आपको सुनाते ही नहीं दिखाते हैं । चलो फलैशबैक में जाते हैं ।

                 राधा कौन है और राजू कौन सब जानते हैं । बोल राधा बोल , बोलना ही होगा । सत्ता चाहती है जनता भी राधा की तरह बोले चुप नहीं रहे मगर क्या बोले ये शासक की मर्ज़ी है । संगम फिल्म में राधा के कपड़े उठाकर फ़िल्मी नायक पेड़ पर बैठा खुश है गाता है , बोल राधा बोल संगम होगा कि नहीं । नहीं कभी नहीं । बोलती है राधा मगर सत्ता के पास  कपड़े हैं , राजा नंगा है की बात नहीं है जनता नंगी है । गांधी जी ने देखा था लोग नंगे बदन हैं तो इक धोती में रहने का संकल्प लिया था । यहां गांधी जी भी शर्मसार हैं कोई खुद इतनी बार कपड़े बदलता है और इतनी सजधज से रहता है कि भूखी नंगी जनता को चिढ़ाता लगता है । मुझ से सीखो बिना काम धाम किये कैसे मौज मनाते हैं , राजनेता वोट नहीं लेते देश की जनता के कपड़े चुराते हैं । फिर होगा कि नहीं गाते हैं , भाषणों में यही कहते हैं और सबसे हामी भरवाते हैं । इसी को समझते हैं दिन अच्छे आते हैं , आपको झूठे सपने दिखलाते हैं अपनी हक़ीक़त सब से छुपाते हैं । मैंने ब्लॉग पर पहले टीवी शो पर बहुत लिखा है , कौन बनेगा करोड़पति या ज़िंदगी के दोराहे  टीवी सीरियल तक सभी को देखकर लगता है इनको बनाने वाले समझते हैं दर्शक नासमझ और बेवकूफ ही नहीं बल्कि दिमाग का इस्तेमाल नहीं करने वाले लोग हैं और उनकी मज़बूरी है जो परोसा जाये उसे ही पसंद करना । पैसा पैसा पैसा सबको किसी भी तरह किसी भी कीमत पर जितना अधिक मुमकिन हो कमाई करनी है । बेशक इन सब से देश समाज को कितना भी नुकसान होता हो । आज बिगबॉस की बात बताते हैं ।  

              बिगबॉस के घर में कितने छुपे कैमरे हैं घर वालों को सामने नज़र आते हैं । मगर ये बंसी बजाने वाले सोशल मीडिया से आप सभी का सभी कुछ चुराते हैं । गुनहगार फेसबुक वाले क्यों कहलाते हैं आप शरीफ हैं जो गुनाह खुद करवाते हैं । सवाल पूछते हैं भाग जाते हैं जवाब देने से इतना खौफ खाते हैं , तभी तो संसद भी बेहद कम जाते हैं विदेश में रासलीला मनाते हैं । देश की जनता को केवल टीवी रेडिओ पर नज़र आते हैं , जो देश वाले देश से बाहर हैं उनको डिनर खिलाते हैं और खूब तालियां बजवाते हैं । जब से आये पूरा देश बिगबॉस के घर जैसा जेल है और आप अपना हुक्म चलाते हैं । चलो वापस टीवी शो बिगबॉस पर आते हैं । आज आपको नेपथ्य की बात समझाते हैं पर्दे के पीछे छुपे राज़ सामने लाते हैं ।

          ये खेल है या खेल के नाम पर इक नाटक है जो वास्तविकता को नंगा करता है दिल बहलाता है । चंद सिक्कों में हर कोई बिक जाता है , पैसे और शोहरत की हवस की खातिर अपनी आज़ादी को बाहर छोड़ बिगबॉस के घर में आता है । मौलिक अधिकार देश का कानून समाज के मूल्य सब बाहर रह जाते हैं । कुछ लोग किसी की शर्तों में बंधकर इस में रहने आते हैं , बंधुवा लोग क्या कहलाते हैं । जनहित याचिका वाले इस पर नहीं बोलते घबराते हैं । क्या आपके घर भी कुछ दिन रहने महमान आते हैं , क्या उनको इतना भी सताते हैं , वो जितने दिन आपके घर में हैं क्या कठपुतलियां बन जाते हैं । आपके इशारों पर रोते हैं आपके चाहने पर गाते हैं , क्या ऐसे ही किसी को जगाते हैं । गाना बजाते हैं उनको नचवाते हैं , क्या क्या ज़ुल्म ढाते हैं । घर में यातना शिविर चलाते हैं और घर आये महमानों को जी भर रुलाते हैं , दर्शक क्या सैडिस्टिक प्लेजर पाते हैं । क्यों किसी को परेशान होता देख मज़ा उठाते हैं । ये लोग क्या दुनिया ऐसी चाहते हैं । ये कैसे नियम हैं खुद किसी को अपने केबिन में बुलाते हैं और घर में गलत काम करने का हुक्म सुनाते हैं । बिगबॉस कैसे घर के मालिक हैं जो आग बुझाते नहीं खुद ही आग लगवाते हैं और उसके बाद बुझाने की आड़ में जमकर भड़काते हैं । ऐसा लगता है अभी भी मनोरंजन के नाम पर देश की न्याय व्यवस्था का उपहास होता है , कोई हद किसी बात की नहीं ये एहसास होता है । ये घर क्या देश के संविधान नियम कानून से ऊपर है जो इसमें कुछ भी करने देने की इजाज़त है । खेल नहीं है ये कोई शो भी नहीं है ये हमारी मानसिकता पर लानत है ।

            ये एंकर क्या है जो हर घर वाले को बहुत भाता है , यही है जो उनसे अधिक पैसा हर एपिसोड से कमाता है । जब जिसे चाहे प्यार जताता है , जब मर्ज़ी खुलेआम मज़ाक उड़ाता है । हर घर में रहने वाले को समझाता है जो मुझसे बगावत करता नहीं बच पाता है । कभी किसी को डराता है धमकाता है कभी अच्छे दिन की बात कहकर दिल बहलाता है । राजनीति भी बिगबॉस के घर जैसी है , आगे समझ जाना है क्या लगती कैसी है । आपकी ऐसी की तैसी है । पैसा पैसा पैसा सबको किसी भी तरह किसी भी कीमत पर जितना अधिक मुमकिन हो कमाई करनी है । बेशक इन सब से देश समाज को कितना भी नुकसान होता हो । जिस तरह लोकतंत्र बनी हुई राजनितिक दलों की रखैल है उसी तरह मनोरंजन कुछ लोगों की मनमानी करने और दौलतमंद बनने का गंदा खेल है ।  हर नेता सत्ता को वरमाला समझ जनता को राधा मान उसके साथ रंगरलियां मनाना चाहता है ।  ज़ोर-ज़बरदस्ती का प्यार संगम नहीं कुछ और कहलाता है । कर्तव्य किसी को याद नहीं अधिकार ही अधिकार है देश का संविधान खामोश है कानून लाचार है । कोई भी नहीं है जो अपने किये पर शर्मसार है । टीवी शो की आड़ में किसी को कितने भी पैसे देकर आप विवश नहीं कर सकते कुछ भी करने करवाने को ।  देश का कनून आपकी जागीर नहीं है । कोई आवाज़ नहीं उठाता क्योंकि हर कोई इनका यार है ।  सोशल मीडिया आपको कोई सरोकार है । ये भी गुनाह है चौकीदार को कोई करता खबरदार है । आज देखते हैं ये कैसी सरकार है ।


सरकार है बेकार है लाचार है - लोक सेतिया "तनहा"

सरकार है  , बेकार है , लाचार है ,
सुनती नहीं जनता की हाहाकार है।

फुर्सत नहीं समझें हमारी बात को ,
कहने को पर उनका खुला दरबार है।

रहजन बना बैठा है रहबर आजकल ,
सब की दवा करता जो खुद बीमार है।

जो कुछ नहीं देते कभी हैं देश को ,
अपने लिए सब कुछ उन्हें दरकार है।

इंसानियत की बात करना छोड़ दो ,
महंगा बड़ा सत्ता से करना प्यार है।

हैवानियत को ख़त्म करना आज है ,
इस बात से क्या आपको इनकार है।

ईमान बेचा जा रहा कैसे यहां ,
देखो लगा कैसा यहां बाज़ार है।

है पास फिर भी दूर रहता है सदा ,
मुझको मिला ऐसा मेरा दिलदार है।

अपना नहीं था ,कौन था देखा जिसे ,
"तनहा" यहां अब कौन किसका यार है।

       सरकार क्या होती है बिगबॉस कौन है , सब जानते हैं देख कोई नहीं सकता दोनों ही हैं मगर दिखाई नहीं देती हैं । किरदार निभा रहे तमाम लोग अपना अपना मगर खुद निर्णय करने की आज़ादी किसी को भी नहीं है । इक वही है जो बिगबॉस बनकर सबको बस में रखकर अपना दिल बहला रहा है ।  जनता हर तरफ रोती चिल्लाती है मगर वही अकेला नाच रहा है गा रहा है । सामने उसी का चेहरा नज़र आ रहा है , हर जगह उसी का फोटो इश्तिहार पर है आपकी बदहाली सामने है वो मुस्कुरा रहा है । इंसान कागज़ बन गया है संवेदना मर गई है आप को भूख लगी है वो हलवा पूरी खा रहा है । आपको तरसा रहा है अच्छे दिन का मतलब अब तो समझ आ रहा है । टीवी पर विज्ञापन बार बार आ रहा है बिगबॉस पुलिस और कानून को जोड़ीदार बना रहा है । मुझे फिर इक शेर दुष्यंत कुमार का याद आ रहा है । अंत में वही बंदा सुना रहा है ।

                    अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई कोई दरार ,

                     घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तिहार । 

                      इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीक ए जुर्म हैं ,

                     आदमी या तो ज़मानत पर रिहा है या फरार ।

 
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1 टिप्पणी:

  1. बढ़िया आलेख...सच मे जनता नंगी है और राजा पर एक से बढ़कर एक पोशाकें हैं

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