अगस्त 09, 2018

POST : 866 जीवन के दोराहे पे खड़े सोचते हैं हम ( टीवी शो की बात ) भाग 11 - डॉ लोक सेतिया

जीवन के दोराहे पे खड़े सोचते हैं हम ( टीवी शो की बात ) भाग-11   

                                           डॉ लोक सेतिया 

    आज रात की कहानी पहले ही सुना देते हैं। आपको अकारण उलझन में क्यों रखना। उसके बाद चर्चा होगी कि किस मोड़ पर कहानी पर चर्चा करने वाले क्या क्या अभिमत ज़ाहिर कर रहे थे। अधिकतर सवाल गैर ज़रूरी होते हैं और दर्शाते हैं कि हम हर किसी की ज़िंदगी में दखल देने को उतावले बैठे हैं। पति पत्नी और छोटा सा बच्चा है परिवार में पति नौकरी करता है मगर अपना घर और अन्य ज़रूरतों को समझ पत्नी से भी नौकरी करने को कहता है। बच्चा छोटा है मगर उसके लिए देखभाल को रखा जा सकता है किसी को वेतन देकर और यही किया जाता है और कोई समस्या नहीं आती सब डर बेकार साबित होते हैं। मगर पत्नी को पति के दफ्तर में ही नौकरी मिलती है और जिस का डर होता है , उन पति पत्नी को नहीं बाकी लोगों को , वही होता है। पत्नी को तरक्की मिलती है और वो पति की बॉस बन जाती है। लोग फिर डर जताते हैं अब शादी का टिकना मुश्किल है मगर सब सामान्य रहता है। आखिर में जब पत्नी को ऊपर से निर्देश मिलता है अपने आधीन कर्मचारी पति को नौकरी से हटाने को तब लगता है जैसे अभी आसमान टूटने को है। मगर ऐसा कुछ भी नहीं होता है और जब घर आकर पत्नी खुद भी नौकरी छोड़ने की बात करती है तो पति उसको मना ही नहीं करता है बल्कि जो कोई भी अपेक्षा नहीं कर रहा था वो कहता है। शायद ऐसा होता नहीं होगा अक्सर मगर होना ऐसा ही चाहिए। हर कहानी की सार्थक इसी में है कि वो मार्गदर्शन करे राह दिखलाये। पति कहता है मुझे भी शुरू में तुम प्रतिद्विंदी लगी मगर फिर समझ गया कि तुम मुझसे काबिल और मेहनती हो और तरक्की की हकदार भी। तुमने मुझे नौकरी से निकला क्योंकि तुम्हें करना पड़ा अपने पद और अपने ऊपर के अधिकारी के आदेश का पालन करने को। घर में हम पति पत्नी हैं अब बॉस और कर्मचारी नहीं रहे ये अच्छा है तुम इक दुविधा से बच सकोगी। रही मेरी बात तो मैं चार पांच साल घर पर बच्चे की देख रेख करूंगा और तुम काम करोगी। जब बच्चा बड़ा हो जायेगा मैं कहीं भी नौकरी कर लूंगा शायद तुम ही मुझे फिर से रख लो क्योंकि तब तक तुम सीईओ बन जाओ शायद।  कितनी सरल सी बात है अगर समझ आ जाये तो। कोई टकराव कोई मतभेद नहीं हुआ जिसका अंदेशा बाहरी लोगों को था। वास्तविक जीवन में ऐसा अगर नहीं होता तो उसका कारण लोगों का औरों की ज़िंदगी में अनावश्यक दखल देना है। 

                                  चर्चा समाज की मानसिकता की

   स्टुडिओ में बैठे और टीवी पर देखने वाले क्या विचार रख रहे थे। पत्नी पति के घर के लिए ही तो कमा रही है , क्यों उसका अपना घर नहीं है अपनी ज़रूरत नहीं है। जो पति भी कभी आपसी मतभेद में बातों में ये कहते हैं कि मैं आप सभी के लिए ही तो कमाता हूं उनको भी मालूम होना चाहिए घर पर पत्नी भी सभी के लिए काम करती है क्या कभी कहती है उपकार करती हूं , अगर कहती है तो अनुचित है। हैरानी की बात है इक्कीसवीं सदी में पढ़ लिखकर भी हम महिला पुरुष में समानता की बात नहीं करते और ये औरत का काम है ये आदमी का ये समझते हैं। जबकि कोई काम नहीं जो आज महिला नहीं करती है और कोई काम नहीं जो पुरुष भी महिलाओं की तरह नहीं कर सकते। अभी भी हमारी सोच को विकसित होना है और बदलना है। 
 

 

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