उसी राह पर उसी मोड़ पर ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
हो रहा है हूबहू , जैसा फिल्मों में होता है। गीत याद आया थरी इडियट फिल्म का। बात तब 1975 की और थी जस्टिस जगमोहन मिश्र ने फैसला सुना दिया था इंदिरा गांधी को गद्दी छोड़नी होगी उनका चुनाव अवैध घोषित किया जा चुका था। उनका बेटा बसों में भर भर कर हरियाणा यूपी से लोग ला रहा था दिल्ली में इक चौक पर नारे लगाने को। मैं तब दिल्ली में रहता था। भीतर से खुद को कमज़ोर और बेबस महसूस कर रही इंदिरा गांधी को खुद अपने समर्थको की भीड़ से अपनी जय के नारे लगवाना इक ढांढस की तरह था। आज जब वही बात मोदी जी को राजस्थान में दोहराते हुए अपनी ही राज्य सरकार द्वारा सात करोड़ ऐसे लाखों लोगों की भीड़ जुटाने को खर्च करवाने की खबर सुनी तो लगा बात अंदाज़ वही है। ये बेहद अजीब लगता है कि कोई देश का प्रधानमंत्री केवल उन्हीं लोगों को बुलाकर सभा में चर्चा करने की बात करे जो घोषित तौर पर उनकी चार साल की योजनाओं से लाभ उठा चुके हों ये तय हो। इतना काफी नहीं बल्कि ये भी खबर आई कि कुछ लोगों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है कि आपने कैसे जवाब देने हैं और केवल साकारात्मक ढंग से बात करनी है। एक लड़की ने ऐसा करने से इनकार कर दिया तो पता चला उसे हटा दिया सवाल जवाब करने वाले लोगों की सूचि से। हास्यास्पद बात लगती है , बात रोने की लगे फिर भी हंसा जाता है , यूं भी हालात से समझौता किया जाता है। ये राजा नंगा है कहानी दोबारा बार बार याद आ ही जाती है। शाबास उस देश की निडर बच्ची के साहस को। बेटियां वास्तव में इतिहास रचने लगी हैं।
अभी मोदी जी की सरकार को कोई खतरा नहीं है , किसी अदालत ने भी कुछ नहीं कहा है। जनता की अदालत में जाना है साल बाद , अभी चार साल का जश्न मना रहे हो फिर क्यों ऐसी घबराहट। कोई नहीं कह रहा आप हार सकते हो , जीत का भरोसा कोई भी नहीं दे सकता किसी को। जीत हार चुनावी लोकतंत्र का हिस्सा है और देश की जनता हमेशा समझदारी दिखलाती रही है। अभी तो आपने साल पहले अपने गुणगान की खूबसूरत किताब बांटनी शुरू की है और हरियाणा में मुख्यमंत्री और पार्टी के नेता लोगों को समझने में लगे हैं आपने क्या क्या किया है। खटटर जी तो बाकयदा बैंक्विट हाल में मिलते हैं लोगों से या अभी दिन में कितनी जगह जाकर ख़ास जान पहचान वालों संग चाय की चुस्की लेते है। कोई मांगपत्र नहीं लेते साफ कहते हैं। सब उसी तरह चल रहा है जैसे आपने तय किया हुआ है। कभी कभी लगता है जैसे कंपनी के सीईओ अपने कर्मचारियों को कोई टारगेट सेट कर पूरा करने को कहते हैं। ऐसे में मुनाफा तय होता है फिर भी किसलिए घाटे की बात सोचकर दुबले होते हैं।
टीवी वाले भी आजकल आत्मा की बात करने लगे हैं। दिल्ली ही की बात है 11 लोग मर गए हैं तो ख़ुदकुशी की है यही पुलिस मानकर चल रही है। उनमें कोई एक नहीं पांच आत्माओं से संपर्क रखता था और सभी घर के सदस्य उसकी बात पर भरोसा कर जो वो कहता मानते थे और खुद लिखा करते थे इक रजिस्टर में। आपको हैरानी नहीं हुई आज भी कोई कागज़ कलम से लिखता है अपनी डायरी की तरह। लोग तो फेसबुक पर लाइव ख़ुदकुशी करने तक जा पहुंचे है मगर ये लोग अभी भी इतना पिछड़े हुए थे। लगता है आपकी ऑनलाइन योजनाओं और ऐप्स से अनजान थे। किसी ओझा से बात करो कहीं आपको भी किसी आत्मा का साया तो नहीं परेशान कर रहा। कभी नेहरू कभी इंदिरा की बात करते हैं। उनको बुरा भी बताते हैं और उनकी ही तरह उसी राह उसी मोड़ पर होने का एहसास होता है। कभी कभी किसी को लगता है मैं खड़ा हूं और रास्ता चलता जा रहा है।
उधर पड़ोसी देश में भ्र्ष्टाचार में पनामा दस्तावेज़ों में नाम आने पर शरीफ साहब को दस साल और उनकी बेटी को सात साल की सज़ा सुनाई गई मगर आपकी सरकार बनी ही भ्र्ष्ट लोगों को जेल भेजने के वादे पर थी फिर भी जिनके नाम ऐसे दस्तावेज़ों में सामने आये उनसे कोई सवाल तक नहीं पूछता है। हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और जैसी बात है। सब पापी गंगा स्नान कर के पावन हो चुके हैं शायद तभी वारणसी में गंगा और भी मैली हो गई है। कोई समझ नहीं पा रहा क्या क्यों कैसे है। जब सब बढ़िया है तो चिंता क्यों है। साल भर बाकी है और शायद दुनिया के कुछ देश बचे होंगे , करिये सैर अभी। चार साल में चर्टेड विमान पर 377 करोड़ खर्च करने पर बधाई गरीबों की तरफ से नज़राना समझो। हर दिन हर देशवासी की जेब से केवल 25 लाख ही तो खर्च हुए हैं। महान देश है जो अपने चौकीदार को इतना देता है। विकास इसी को कहते हैं और अच्छे दिन आये मगर केवल आपके खुद के लिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें