एक नाक़ाबिलेगौर शोहरत ( बेसिर पैर की ) डॉ लोक सेतिया
अमर्त्य सेन के नाम से दुनिया वाकिफ है , मगर भारत देश में बहुत थोड़े लोग जो अख़बार टीवी और शिक्षा अर्थशास्त्र से या फिर लेखन से जुड़े हैं परिचित हैं। अन्यथा आप किसी से पूछो तो जवाब मिलेगा नहीं जानते या फिर नाम सुना तो है कोई मीडिया से जुड़ा होगा। उनकी किताब आई है " एन अनसर्टेन ग्लोरी " उस इंग्लिश नाम का उर्दू में अनुवाद है। मगर ऐसा खुद उनकी बात हरगिज़ नहीं है क्योंकि उनकी शोहरत दुनिया मानती है। इंडिया जो भारत है उसकी सरकार जिनको देश में रहते नहीं पहचानती है उनको जब नोबेल पुरुस्कार मिलता है तब सम्मानित करती है संसद में बुलाकर भी। मगर जिस कारण उनको नोबेल पुरुस्कार मिला उस अर्थशास्त्र की बात नहीं मानती है। अपनी इस नई किताब में उनका कहना है कि 2014 में इंडिया जो भारत है ने उल्टी दिशा में इक लंबी छलांग लगाई है। उधर इक उच्च अधिकारी वित्त मंत्रालय में हैं हंसमुख आधिया उनका कहना है कि जी एस टी की नाकामी की वजह इनफ़ोसिस का बनाया सॉफ्टवेयर है जो ठीक काम नहीं कर रहा है। हम इस सब को यहीं छोड़ देते हैं ये सियासत की बातें हैं अपनी समझ से बाहर हैं। दुनिया के दस्तूर निराले हैं नाम शोहरत वालों के पीछे दौड़ती है मगर जो वो कहते हैं सुनती ज़रूर है मानती कभी नहीं है।
इक पुलिस वाला आया कागज़ों का पुलिंदा लेकर , दूर किसी शहर में कब से कोई मुकदमा चल रहा है और आपकी लिखावट पाई गई है , आपको वहां की अदालत में जाकर गवाही देनी है। मुझे कुछ समझ नहीं आया कि माजरा क्या है , मगर अदालती नोटिस है जाना तो होगा ही। अदालत जाने पर मालूम हुआ कि बहुत पहले इक रचना भेजी थी , मैंने ख़ुदकुशी नहीं की , मेरा कत्ल किया गया है। सच के कत्ल होने की बात थी मगर उस में अदालत पुलिस कहां से आ गये। पता चला कि डाकिया जब डाक को छांट रहा था इक लिफाफा खुल गया और उसने पढ़ भी लिया। उसने समझदारी दिखाते हुए जिनको भेजी गई थी रचना उनके बारे ये समझा कि किसी ने ख़ुदकुशी से पहले उनको दोषी बताया है। पुलिस ने करवाई की और उनको पकड़ लिया , इतना ही नहीं कागज़ों पर आदान प्रदान करते उस नाम के व्यक्ति की मौत की पुष्टि और जाने क्या क्या कर दिया। मैंने कहा न्यायधीश महोदय ऐसा कोई कत्ल वास्तव में नहीं हुआ और ये केवल इक व्यंग्य कहानी है सच के हो रहे कत्ल के बारे में। न्यायधीश बोले तुमसे जो सवाल पूछे जाएं उनके जवाब देने हैं। सच को कत्ल किया गया , तुम मानते हो। ये लोग भी सच को कत्ल करते हैं , आपको ये भी लगता है। लिखावट आपकी है इस से मुकर नहीं सकते। अभी तो आप सरकारी गवाह हैं आपको आने जाने का खर्चा भी मिलेगा , अगर बचाव पक्ष को बेगुनाह बताया तो तुम्हें भी उन्हीं में शामिल किया जा सकता है। भोजन अवकाश में पुलिस वाला समझाने लगा जैसा हम चाहते हैं वही बयान दो इस में तुम्हारी भलाई है। ये बड़े लोग हैं और टीवी मीडिया सब इस खबर को कवर कर रहे हैं। तुम्हारा नाम हो जायेगा और मश्हूर हो जाओगे। आप क्या सलाह देते हो सरकार और नेताओं की तरह झूठी शोहरत हासिल कर लूं। अपनी आत्मा अपने ज़मीर को मार कर खुद की खुदी को बेच कर ख़ास लोगों में शामिल कर इस मुकदमें पर टीवी अख़बार में बहस का हिस्सा बन धन दौलत जमा करने लग जाऊं इनकी तरह से। नहीं होगा मुझसे। अदालत को सब सच सच बताया और सबूत भी दिया कि ये रचना कई जगह छप चुकी है बहुत पहले ही और मेरे ब्लॉग पर भी लिखी हुई है। मुकदमा झूठा है बताना संभव नहीं था इसलिए अदालत ने निर्णय दे दिया है साक्ष्य नहीं मिलने और अभी तक सच की लाश बरामद नहीं हो पाने से सबूतों के आभाव में बरी किया जाता है।
बहुत खूब.👌👌
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