जुलाई 01, 2018

आया है मुझे फिर याद वो ज़ालिम ( सच्ची कहानी ) डॉ लोक सेतिया

 आया है मुझे फिर याद वो ज़ालिम ( सच्ची कहानी ) डॉ लोक सेतिया 

  कल शाम ही की बात है मेरी धर्मपत्नी जी बाज़ार गई थी अपने लिये कुछ नये सूट खरीदने को। अधिकतर हम एक ही दुकानदार की दुकान से खरीदते हैं कपड़े। हर बार की तरह वापस आते ही घर में मुझे दिखाये और पूछा कैसे हैं। कुछ ख़ुशी थी चेहरे पर बताते हुए कि आज ये अपनी बचपन की साथ वाले घर वाली सहेली की दुकान से खरीदे हैं और दो लेने थे मगर तीन ले आई हूं। कल से ही उसी की बातें फोन पर बहनों को भी बता रही हैं। बाज़ार से गुज़रते नज़र आई अपनी पड़ोस में बचपन में साथ खेलने वाली सखी। सालों बाद अपने घर परिवार बच्चों की बातों के साथ बचपन की पुरानी बातें याद करती रही दोनों। कितना सुंदर अनुभव होता है। क्या ज़माना था , घरों की छत के बीच नाम की दीवार होती थी , उस तरफ वो इस तरफ ये साथ साथ मिलकर खाना खाते आपस में अचार चटनी लेते देते। कभी उस बीच की दीवार पर ही चढ़ बैठते और बातें किया करते। गर्मी के दिनों छत पर ही बिस्तर लगा लेटे लेटे बातें करते सो जाया करते। आज भी बात होती है मगर ऐसी चला बंद कमरे में व्हाट्सऐप पर किसी किसी पड़ोस की दोस्त से। आधुनिकता ने कितनी दूरियां बढ़ा दी हैं। बहुत मुश्किल से मिलते हैं मधुर यादों के पल। चुराया करो आप भी जीवन से ऐसे ही कभी कभी। 
 

 

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