अभी भी जारी है आपत्काल ( जेपी की याद ) डॉ लोक सेतिया
43 साल पहले की शाम बहुत चहल पहल की दिल्ली की शाम थी और लाखों लोग जयप्रकाश नारायण जी को सुनने गये हुए थे। वो इक समंदर की तरह था जिस में मेरी हैसियत कतरे सी भी नहीं थी। मुझे नहीं पता क्या हुआ जो जेपी की हर बात मेरे दिल की गहराई में उतरती गई समाती गई। बहुत पोस्ट लिखी उनको लेकर आपातकाल को लेकर और उनके जन्म दिन पर अमिताभ बच्चन के जन्म दिन के शोर को लेकर। अभी इक लेखक दोस्त जिनसे मुलाकात भी नहीं हुई या हो सकी अभी , फेसबुक और फोन व्हॉट्सऐप पर सम्पर्क है , उनकी वाल पर जननायक और तथाकथित सदी के महानायक की तस्वीर साथ साथ देखी। बुरी आदत है साफ बात करना , उनसे सवाल किया ये क्या किया है। कितना जानते हैं बच्चन जी को , इक अभिनेता जो अच्छा अभिनय करता है अच्छी आवाज़ भी है मगर पैसों का शोहरत का पुजारी ही नहीं है और बिना समझे किसी वस्तु का विज्ञापन करने का ही दोषी नहीं जो वस्तु बताये गए तथ्य अनुसार सही भी नहीं , बल्कि अपने जीवन में लोगों द्वारा भगवान कहलाये जाने वाले इंसान को जालसाज़ी से किसान होने का प्रमाण जुटाने में कोई संकोच नहीं हुआ न ही अदालत में मुकदमा चलने के बाद लाज ही आई कि बाहर समझौता किया था गांव की पंचायत की ज़मीन पंचायत को देने का मगर मुकर कर उस ज़मीन को जयाप्रदा नाम की अभिनेत्री के एन जी ओ को दे दी। मगर लोग बिना जाने किसी को खुदा बना लेते हैं गुलामी की आदत जाती नहीं।
लोकतंत्र का अर्थ सबका बराबर होना है। मगर अधिकारी कभी आम जनता को अपने बराबर मानते नहीं हैं। शायद ही कोई समय पर अपने दफ्तर आने पर आम नागरिक से सही सलीके से बात करता है। अपमानित होना जनता की नियति बन चुकी है क्योंकि अधिकतर ऐसे में खामोश रहते हैं और तिलमिलाते रहते हैं। ऐसे में होता होगा कि कभी विधायक या सांसद किसी आई ए एस या आईपीएस अधिकारी से मिलने जाएं और उनके साथ भी अच्छा व्यवहार नहीं हो। मगर कोई सरकार ये निर्देश जारी करे कि आपको खड़े होकर विधायक या संसद को सम्मान देना होगा अन्यथा दंडित किया जा सकता है। इसके पीछे छिपे संदेश को समझाता है कि आप नौकर हैं और नेता आपके मालिक हैं जो वास्तव में है नहीं। नेता भी जनसेवक ही हैं और खुद को राजा या शासक समझना संविधान का अनादर है। यही सरकार दावा करती है वीआईपी कल्चर खत्म करने का मगर इनके कहीं आने पर लाखों रूपये बर्बाद हो जाते है और कई दिन तक अधिकारी और सभी विभाग इनकी खातिर सब मुहैया करवाने में लगे रहते है लेकिन जनता को उनके मूलभूत अधिकार देने में रुचि नहीं रखते। काश कोई नेता निर्देश देता मेरे आने पर दिखावे को सब करना छोड़ अपना कर्तव्य ईमानदारी से निभाएं अन्यथा लापरवाही करने पर दंडित किया जा सकता है।
देश की राजनीति 180 डिग्री घूम चुकी है तब से आजतक। हालत वही हैं। तब सत्ता को खतरा देख कर किसी ने आपत्काल घोषित कर दिया था। किसी नैतिकता का कोई पास नहीं रखा गया था। आधी रात को अपनी पसंद के बनाये राष्ट्रपति से हस्ताक्षर करवा आपत्काल घोषित कर विरोधी दल के नेताओं को जेल में डाल दिया था। मानसिकता आज भी वही है और हालात भी उसी मोड़ पर हैं जहां सत्ताधारी किसी भी तरह सत्ता का मोह त्याग नहीं सकता है और विपक्ष क्या सत्ताधारी दल में कोई साहस नहीं कर सकता अपनी बात कहने का। आज जेपी की ज़रूरत पहले से अधिक है मगर कोई उस तरह का शख्स दिखाई नहीं देता। जिस को लेकर दुष्यंत कुमार ने कहा था :-
आज के संदर्भ में उपयुक्त लेख👌👍
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