बोलिये मत केवल सुनिये ( खरी-खरी ) डॉ लोक सेतिया
बात इक पुरानी फिल्म की है , इक महिला कमरे में आती है , ध्यान से देखती है। वही खुशबू वही सिगरेट का ब्रांड वही शराब की बोतल भी उसकी पसंद की ब्रांड की। सिगरेट सुलगाती है और कश लेकर सोचती है वही पुराना खरीदार है। महिला काल गर्ल का काम करती है। दरवाज़ा खुलता है तो महिला जिस की बात समझ रही थी उसकी जगह और ही शख्स भीतर आता है। वास्तव में यह शख्स उस महिला का आशिक है और महिला उसके दोस्त की बात समझ रही थी। उस दोस्त ने ही महिला को बुलवाया था अपने दोस्त की उदासी मिटाने की खातिर बिना जाने कि उसकी उदासी की वजह क्या है। नायक के पांव तले से ज़मीन खिसक जाती है ये असलियत जानकर कि दिन भर मंदिर मस्जिद गिरिजाघर गुरूद्वारे जाने वाली महिला रात को जिस्म बेचती है। मुझे ये कहानी क्यों याद आई असली बात पर आता हूं।
फिर वही जगह वही लोग वही तमाशा। पुलिस वाले फिर पार्क में लाऊड स्पीकर लगा कर नाच गाना करवा रहे हैं। खाई के पान बनारस वाला , नाच गाना देखो सुनिये। इसे जनता से संवाद कहते हैं। आपको बोलना नहीं है केवल सुनना है देख कर झूमना है और ताली बजानी है। सब वही है लोग कुछ पुराने कुछ नए हो सकते हैं मकसद नहीं बदला। पार्क के बाहर खड़े पुलिस वालों ने बुलाया आप रोज़ सैर करते हो आज हमारे साथ भी सैर करो , उनसे बात की और कई घटनाओं की चर्चा की और सवाल किया मुझे समझा दो ये क्या है जनता से मेलजोल कदापि नहीं है। तमाशा है आखिर पुलिस वाले को भी कहना पड़ा। तमाशा मदारी दिखलाता है और जादूगर आपको सामने दिखलाता है। असलियत और होती है। सरकार और अधिकारियों को खुद भी वास्तविकता को समझना होगा , झूठे सपने बेचना किसी विभाग का काम नहीं है। शायद बिना विचारे अपने उच्च अधिकारी की हर बात पर अमल करना इक सीमा तक ज़रूरी है। कभी तो चिंतन करें आपका काम क्या है और कर्तव्य क्या है , क्या इन बातों से उसका कोई मतलब है। आंखे बंद रखना गंधारी की तरह कोई सच्ची निष्ठा नहीं , आपकी निष्ठा देश समाज के लिए होनी चाहिए व्यक्ति के लिए नहीं। 43 साल बीत गए लोकनायक जयप्रकाशनारायण की बात फिर भी वही है। सुरक्षाकर्मी जनता और देश की सुरक्षा को हैं या सत्ताधारी नेताओं की उचित अनुचित हर बात हर आदेश के पालन करने को। यक्ष प्रश्न यही है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें