मार्च 23, 2018

बात सवदेशी की और विदेशी दखल की ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

बात सवदेशी की और विदेशी दखल की ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया 

  आज शहीदी दिवस है , भगतसिंह राजगुरु सुखदेव को याद करते हुए , महात्मा गांधी के विदेशी सामान को जलाने को भी याद रखते हुए आज फिर से विचार करना होगा क्योंकि इधर हमारी ज़िंदगी ही नहीं हमारी सोच पर भी विदेशी लोग मनचाहे तरीके से प्रभाव डालते हैं। फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने माना ही नहीं बल्कि उस बात की माफ़ी भी मांगी है कि उन्होंने डाटा चोरी या लीक होने दिया या फिर किया। ये कोई छोटी बात नहीं है। पिछले कुछ सालों से सोशल मीडिया पर तमाम लोग किसी नेता या दल की विचारधारा की बात करते हुए अभद्रता की हद तक पहुंच जाते हैं। कोई किसी को चाहता है किसी का समर्थक है तो उसको ये अधिकार नहीं मिलता कि जो कोई उसकी बात से असहमत हो उसको बुरा भला कहे। लेकिन जब बड़े बड़े राजनेता और राजनैतिक दल धनबल से भाड़े के लोगों से सोशल मीडिया पर अपना गुणगान और दूसरों को अपमानित करने का घटिया और निम्न स्तर का खेल करवाते हों तब उनकी निजी महत्वांकाक्षा देश के लोकतंत्र को अपमानित करती है जिस में सत्ता पक्ष को विपक्ष की असहमति का आदर करना ज़रूरी है। आज शायद गांधी जी और भगतसिंह जी दोनों ही एकमत होते कि इक विदेशी को हमारे देश की आज़ादी के साथ खिलवाड़ या छेड़ छाड़ करने पर उसपर रोक लगा दी जाये। 
 
         आज फेसबुक पर बड़ी बड़ी देशभक्ति की बातें लिखने वाले क्या वास्तव में देश हित को समझ फेसबुक और व्हाट्सऐप का विरोध कर सकते हैं। ऐसा करने में कोई भी कठिनाई नहीं है क्योंकि अधिकतर लोग इनका उपयोग किसी सार्थक काम के लिए नहीं करते हैं और उनके लिए ये केवल समय बिताने और घटिया तरह का मनोरंजन करने का साधन है। विचार किया जाये तो ये सब एकतरफा संवाद है जहां आप जो भी लिखते हैं कोई अपनी असहमति नहीं जता सकता , कोई लाइक कर सकता है मगर कमेंट आपकी अनुमति से ही किया जा सकता है। भारत में बीस करोड़ लोग घंटों अपना समय हर दिन और पैसा भी बर्बाद तो करते ही हैं साथ ही कभी कभी मानसिक रूप से भी असामान्य आचरण करते हैं। जिस तरह दवाओं के दुष्प्रभाव होने पर उसकी ज़रूरत है या नहीं और उपयोग करनी है तो किस मात्रा तक ये देखना होता है उसी तरह इन सभी सोशल मीडिया के माध्यमों पर विचार किया जाना चाहिए।


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