सितंबर 06, 2017

मुहब्बत तब से अब तक ( व्यंग्य कहानी ) डॉ लोक सेतिया

     मुहब्बत तब से अब तक ( व्यंग्य कहानी ) डॉ लोक सेतिया 

               आजकल ये होता नहीं है , कभी अक्सर हुआ करता था। किसी विषय पर खुली सभा में चर्चा करवाना। आजकल टीवी पर ही बहस होती है और सब को पता होता है जो आजकल जिस दल के साथ है उसको उसकी ही बात कहनी है। हमने इसी को शोध का विषय रख दिया और जिनको पी एच डी की डिग्री लेनी उनको इस पर शोध करना पड़ा और आज सब का सार इस सभा में चर्चा में सामने आया है। जब परदादा जी का समय था तब मुहब्बत करते थे हर किसी से , घर परिवार ही नहीं , आस पड़ोस तक नहीं , गांव क्या हर जान पहचान वाले से बात करते तो प्यार से ही और याद रखते सभी को। इश्क़ किसे कहते कभी सोचा ही नहीं था किसी ने। नफरत कोई किसी से नहीं करता था , किसी की बात अच्छी नहीं लगती तब भी बड़े प्यार से बताते भाई ये ठीक नहीं है , और कोई बुरा भी नहीं मानता था। दादा जी के ज़माने में फिल्मों और नाटकों में मुहब्बत की बात होती थी , मुहब्बत करना आंसू बहाना और अपने आप को तबाह करना। सब इस से बचते थे , दिल में ऐसा बुरा ख्याल आये भी तो निकाल देते थे। महिला क्या पुरुष भी लाज शर्म का पास रखते थे। पिता जी के समय रंगीन फिल्मों का युग आया तो युवकों पर फ़िल्मी नायिकाओं से प्यार का खुमार चढ़ा हुआ था। मगर शादी हो जाती तो अपनी बीवी ही फ़िल्मी नायिका सी लगती थी। अगली पीढ़ी बीच मझधार में अटकी रही , दिल ही दिल में प्यार मगर इज़हार करने से डरते डरते , बात खत्म हो जाती। बड़े भाई के समय लोग बिना सोचे समझे इश्क़ कर बैठते , मगर शादी तक बात नहीं पहुंच पाती थी। कोई कोई भाग कर शादी की मुसीबत मोल लेता , अधिकतर तकदीर का फ़साना जाकर किसे सुनाएं , इस दिल में जल रही हैं अरमान की चिताएं , जैसे गीत गाकर अपनी भड़ास निकाल लिया करते। ज़माना बड़ा ज़ालिम है कहते रहते। 
 
             अब तक संक्षेप में पुरानी कहानी सुनाई , आगे विस्तार से आधुनिक प्रेम की लघुकथा सुनाते हैं। लंबी नहीं चलती अब इश्क़ की कहानी , उपन्यास तो लिखा ही नहीं जा सकता। सब से पहले हर प्रेम कहानी में तीसरा किरदार होना लाज़मी है। साक्षी के साथ ही राहुल भी कॉलेज में पढ़ता था , और अब दोनों एक ही शहर में जॉब कर रहे हैं , राहुल का दोस्त अलोक साक्षी के साथ ही उसी कंपनी में जॉब करता है। सप्ताह के अंत में तीनों साथ साथ सिनेमा जाते हैं डिनर करते हैं मस्ती करते हैं। कभी कभी शादी की बात भी होती है मगर कोई खुलकर बताता नहीं उस के दिल में क्या है। हम अच्छे दोस्त हैं इतना ही सोचते हैं , मगर साक्षी भी समझती है राहुल और अलोक चाहते हैं उस से शादी करना , अभी कहना नहीं चाहते क्योंकि अभी उनको पहले जॉब में तरक्की अधिक ज़रूरी लगती है। साक्षी को यही लगता है शादी किसी से भी कर लें कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता क्योंकि शादी के बाद सब एक जैसे हो जाते हैं। पति पद मिलते ही महिला पुरुष एक समान नहीं रह जाते , कई सहेलियों को देखा है , प्यार किया शादी की और उसके बाद कुछ भी नहीं रहता। कोई जल्दी नहीं है , उसे खुद पहल नहीं करनी है , ऐसी कोई ज़रूरी भी नहीं शादी करनी। मगर करनी पड़ेगी नहीं तो पिता जी जाने कब कहीं रिश्ता कर देंगे। 
 
            इक दिन साक्षी नहीं आई तो राहुल और अलोक में शादी को लेकर बात हो ही गई। साफ भी हो गया दोनों को ही ऐसी लड़की चाहिए जो जॉब करती हो ताकि ज़िंदगी आराम से कट सके। अब वो साक्षी हो चाहे कोई और ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता , इसलिए दोनों ने फैसला किया कि इस से पहले कि कोई तीसरा भाजी मार जाये हम आपस में टॉस कर लेते हैं। सवाल इस का है कि साक्षी को कौन अधिक पसंद है ये पता लगाना ज़रूरी है। ये तय किया गया कि दोनों अपना अपना प्रस्ताव खत लिखकर साक्षी को भेजते हैं और फिर मिलकर बात करेंगे किस को साक्षी क्या जवाब देती है। दोनों इक दूजे को नहीं बताएंगे क्या लिखा है। और एक साथ दोनों के खत स्पीड पोस्ट से भेजे गए। अगले सप्ताह मिलने पर बताया जाना है कोई जवाब आया या नहीं आया। 
 
          साक्षी को भी आज आना था उसी पार्क में , राहुल और अलोक थोड़ा जल्दी ही पहुंच गए आपस में बात करने को। राहुल खुश था उसको साक्षी का जवाब मिल गया था , लिखा था मुझे कोई ऐतराज़ नहीं है तुमसे विवाह करने में मगर घरवालों की अनुमति लेनी होगी। आजकल कोई लड़की भाग कर कोर्ट मैरिज नहीं करती , माता पिता भी देखते बेटी खुश रहेगी ऐसा लड़का होना चाहिए। आमदनी और अपना घर रहन सहन बस यही देखना होता है , मिलकर दोनों के परिवार तय करते हैं। राहुल को लगा था बात बन ही गई है। अलोक के चेहरे पर भी कोई दुःख दर्द नहीं था , इक मुस्कान थी होंटों पर। राहुल ने पूछा क्या तुम्हें भी यही जवाब मिला है। अलोक ने बताया कि नहीं उस ने साफ लिखा है हम दोस्त हैं और इक दूसरे को समझते हैं पसंद भी करते हैं मगर तुमने जो जो दावे किये मुहब्बत में चांद तारे तोड़ लाने और मेरी ख़ुशी की खातिर सब करने के मुझे नहीं लगता तुम्हारी जॉब का भविष्य और आर्थिक हालत अभी उस सब की अनुमति देती है। अभी तुम इस बात को छोड़ अपने भविष्य की सोचो मेरा यही कहना है जो इक सलाह है। 
 
             तभी साक्षी भी आ गई थी , अलोक ने कहा साक्षी मुझे ख़ुशी है तुमने राहुल को चुना है , मगर मुझे इक बात समझ नहीं आई कि मैंने तो खत में कोई बात लिखी ही नहीं थी। तुमने कैसे समझा मैं आजकल का युवक चांद तारे लाने की बात करूंगा। साक्षी ने कहा सच बताऊं मैंने तुम्हारा खत खोलकर पढ़ा ही नहीं क्योंकि मुझे डर था तुमने ऐसी बातें लिखी होंगी जैसी कविताएं तुम सुनाया करते हो। और कहीं मैं भावुकता में आकर तुम से शादी करने की भूल न कर बैठूं।  मगर तुमने क्या लिखा था बताओ तो। अलोक ने बताया कि मैंने तो कोरा कागज़ ही भेजा था ताकि तुम उस पर चाहो तो अपना नाम लिख दो। 
 
            आपको लगता है अब तो सब साफ हो गया है। राहुल और साक्षी की शादी हो गई होगी। मगर ऐसा नहीं है। गगन को साक्षी पसंद थी जो उसकी कंपनी में जॉब करती थी। गगन ने अपने पिता जी को अपनी पसंद बताई और उन्होंने जाकर साक्षी के माता पिता से उसका हाथ मांग लिया। गगन को लगा था साक्षी ही ऐसी लड़की है जो उसके साथ मिलकर कंपनी को और उंचाईयों पर ले जा सकती है। अलोक से राहुल अच्छा था और राहुल से गगन अधिक अच्छा है। साक्षी को कोई और अच्छा मिल जाता तो गगन से भी शादी नहीं करती शायद। आजकल के इश्क़ की अच्छी बात ये है कि कोई किसी से नाराज़ नहीं होता दुश्मनी नहीं करता इस बात को लेकर। सब को उस से और अच्छी या अच्छा मिल ही जाता है।

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