सितंबर 03, 2017

कौन कौन है अपराधी ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

      कौन कौन है अपराधी ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया 

         बस हर तरफ चर्चा है इक नाम की। क्या बस वही गुनहगार है। अपराधी और बहुत हैं। आपको गिनती करनी कठिन हो जाएगी। इक अख़बार के पत्रकार को पता था और उसने अपने छोटे से अख़बार में लिख भी दिया और उसका कत्ल भी हो गया। क्या तब की सरकार तब से अभी तक का प्रशासन सुरक्षा और न्याय व्यवस्था कायम रखने को नियुक्त लोग पुलिस और नेता ही नहीं वो सभी आम नागरिक जो ये सब देखते रहे जानते रहे और खामोश रहे अपना कर्तव्य देश और समाज के लिए नैतिकता और सच्चाई के लिए नहीं निभाते रहे वो भी शामिल नहीं इस सीमा तक हालत बढ़ने के लिए जो आज देश भर की पुलिस और सेना भी देश में किसी जगह जाने को इक बड़ी चुनौती समझती है। जो जो नेता जाकर उसको मिलकर वोटों की भीख मांगते रहे क्या उन्हें असलियत नहीं मालूम थी। क्या उनके लिए सत्ता पाना देश हित से अधिक महत्वपूर्ण है। आज वो सब खामोश हैं , कोई इक शब्द नहीं बोलता इस बात पर। दिखावे की देशभक्ति की ज़रूरत नहीं है वास्तविक देशभक्ति क्या है इसको समझना ज़रूरी है। आज जो टीवी चैनल नए नए कारनामे खोजने की बात करते हैं अभी तक क्या अंधे थे गूंगे थे बहरे थे। कल तक उसी की महिमा का गुणगान करते रहे आप भी और आज सच के झंडा बरदार बन गए , सच को मुनाफे का सामान समझते हैं। कितनो की बात की जाये कोई सीमा ही नहीं है। 
 
             कौन हैं जो खुद को धार्मिक समझते हैं। आपने खुद देखा ही नहीं अनुचित कामों को होते हुए बल्कि आप शामिल रहे किसी के अनुचित और अधर्म के कामों में , क्या यही शिक्षा हासिल की आपने धर्म की। आप खुद तो अधर्म की नगरी में अपनी ख़ुशी से रहते रहे औरों को भी विवश किया अधर्म की नगरी में आकर बसने को। धर्म के नाम पर आपने अधर्म का साथ दिया तो आपका अपराध और अधिक हो जाता है। शायद ये सभी धर्म को न मानते हैं न ही समझते हैं , इनका धर्म से कोई सरोकार नहीं है। इन सब का मकसद कुछ और ही रहा है। भगवान से तो इनको कोई डर लगता ही नहीं है वर्ना अधर्म की राह पर चलने से बचते। आज इक गुनहगार पकड़ा गया मगर कितने गुनहगार अभी आज़ाद हैं और उनको कोई सज़ा नहीं होगी केवल इतनी सी बात नहीं है। इस से खराब बात ये होगी कि उनको अपने किये अपराधों का कभी पछतावा तो क्या एहसास भी नहीं होगा। ये समझते ही नहीं हैं इन्होंने कितना अक्षम्य अपराध किया है। 
 
               इक पुरानी कहानी है , इक चोर को अदालत में सज़ा हुई तो उसने अपनी माता को पास बुलाया और उसे कान में कुछ कहने की बात की और जब कान पास आया तो उसने कान को काट खाया। ऐसा क्यों किया पूछने पर उसने कहा जब पहली बार मैंने चोरी की थी माता को पता चला मगर उसने मुझे बचाया था डांटती फटकारती सज़ा देती तो शायद मैं सुधर जाता। मेरे अपराध सुन कर भी खामोश रही अपने स्वार्थ की खातिर और अपना फ़र्ज़ नहीं निभाया संतान को सही राह दिखाने का। ये मेरे अपराधी बनने की महत्वपूर्ण कारण है। आज ये कहानी दोहरानी होगी और बहुत गुनहगार सज़ा के हकदार हैं समझना होगा। 

 

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