ग़ज़ल कहानी इतिहास इबादत का सफर ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया
कहनी तो सभी की बात है , मगर शुरुआत अपने घर से करना ही उचित होगा। ग़ज़ल दुष्यंत कुमार से राहत इंदौरी तक आ पहुंची है। मुलाहिज़ा फरमाएं।
मत कहो आकाश में कुहरा घना है ,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।
दुष्यंत जी ने समझाया था लोग समझ भी गए और चुप हैं सब सामने देख कर भी बापू के बंदर बनकर।
लेकिन राहत जी बहुत अंदाज़ से अपनी ग़ज़ल को सुनाते हैं , हर शेर सुनाने से पहले पिछला दोहराते हैं।
अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है ,
ये सब धुंआ है कोई आसमान थोड़ी है।
अब लोग समझ नहीं पा रहे कि करें तो क्या करें। दम घुट रहा और ऑक्सीजन नहीं है तो शायरी से सांस ली जाये। राहत जी का ही पुराण शेर है , मौत का ज़हर है फ़िज़ाओं में अब कहां जा के सांस ली जाये। दुष्यंत जी ने तो समझा भी दिया था। यहां दरख़्तों के साये में धूप लगती है , चलो यहां से चलें और उम्र भर के लिए।
बात को आगे बढ़ाते हैं। 1942 ऐ लव स्टोरी से टॉयलेट इक प्रेम कथा तक सिनेमा का सफर है। विकास शायद यही है। इधर विकास बहुत बदनाम हो गया फ़िल्मी ढंग से लड़की को सताते हुए थाने तक का सफर तय कर लिया। विकास किस का है अब मामला समझ नहीं आता , भाजपा का होकर भी कैसे नहीं है। इतिहास पर लोग लड़ रहे हैं कि इतिहास में कौन नायक था कौन खलनायक। फिर से लिखवाया जा रहा है इतिहास , इक बच्चे ने सबक सीखा था गाय पर लेख लिखना है या भैंस पर कोई अंतर नहीं है। दोनों दूध देती हैं और दूध का रंग सफेद होता है। आगे गाय भैंस का नाम बदलना है और दूध की बात लिखनी है। इम्तिहान में लेख लिखना था पिता पर और बच्चा याद कर लाया था दोस्ती पर लिखने को। बस दोस्त शब्द की जगह पिता लिखता गया और लिख डाला।
सब गलत होता आया है हमने आकर सब कुछ बदलना है , कहते रहे मगर आकर बस सब को सही बताने लगे और बुरा है शब्द जिस जिस पर लिखा था ज़रूरी है लिख दिया। जो लोग गंदे थे उनको अपने रंग के कपड़े पहनाये और साफ होने का तमगा लगा दिया। दिल्ली शहर की बात कभी बज़ुर्ग किया करते थे तो कहते थे दिल्ली शहर नमूना अंदर मिट्टी बाहर चूना। भीतर सब खोखला है और बाहर से चमकता लगता है। तीन साल तक यही किया गया है रंग बदलने का काम। खुद भी गिरगिट से बढ़कर रंग बदले हैं। कभी कोई भी इतिहास की किताब पढ़ना आपको उसकी जिल्द बहुत सुनहरी दिखाई देगी मगर भीतर पढ़ोगे तो समझोगे किताब में मुट्ठी भर लोगों की महिमा का वर्णन है। मुश्किल से दो पांच प्रतिशत लोग , नेता अभिनेता , कारोबारी , धर्म और समाज के अगड़े लोग या धनवान लोग सफल लोग। नब्बे प्रतिशत देश की जनता की किताब में कोई बात तक नहीं है। किसका इतिहास है।
आज इक बहुत शिक्षित व्यक्ति से बात हुई सैर पर। यूं ही पूछा क्या हाल है देश का क्या कुछ ठीक हुआ , जवाब दिया उन्होंने हमारे जीते जी तो कुछ नहीं बदलने वाला। ऐसे सोचने वालों का बहुमत है। मेरे मन में विचार आया जाकर पूछूं ऐसे लोगों से क्या आप ज़िंदा हैं , जी ठीक याद आया लोहिया जी ने कहा था ज़िंदा कौमें पांच सात तक इंतज़ार नहीं किया करतीं हैं। और हम ने क्या किया है सत्तर साल तक। आज या कल भगवान कृष्ण जी की जन्माष्टमी है। बहुत बुरा किया था इक वादा कर के जब जब धरती पर पाप बढ़ता है मैं आकर जन्म लेता हूं धर्म की स्थापना करता हूं। हम बस उस मंत्र को पढ़ते रहे और कभी धर्म और अधर्म की लड़ाई में शामिल ही नहीं हुए , जबकि कृष्ण जी महाभारत में दोनों तरफ थे। पांडवों की सेना में खुद और कौरवों की सेना में अपने सैनिक दिए हुए थे। राजनेता उस राह चलते हैं सदन में टीवी पर लड़ाई और वास्तव में चोर चोर मौसेरे भाई। बताओ किस ने घोटालों की सज़ा है पाई। काला धन भी रंग बदलवा कर साफ सफेद चमकदार बना दिया। जनता का काला धन खराब और राजनेताओं का काला धन अच्छा ही नहीं ज़रूरी। वाह री सत्ता की मज़बूरी , कुर्सी की चाहत नहीं होती कभी पूरी।
अब औरों को दोष देना छोड़ खुद जनता की बात की जाये। हम खुद बड़ी बड़ी हौसलों की बातें करते हैं। कभी चौराहे पर मिलकर किया करते थे आजकल फेसबुक व्हाट्सएप्प और सोशल मीडिया पर देशभक्त बनते हैं। मगर जो देश को कानून को संविधान को ताक पर रखते हैं हम उन्हीं की स्तुति भी गाते हैं। बुराई को अच्छाई बताते हैं बुराई को बुरा कहने से घबराते हैं। सच की जय का नारा लगाने वाले सच से नज़रें चुराते हैं। ये मेरा काम नहीं है विरोध करना सोचकर दिल को बहलाते हैं। हज़ारों साल से यही करते आते हैं। जब भी कठिनाई आती है हम आरती गाते हैं भगवान को बचाने को बुलाते हैं। हर बार ठोकर खाते हैं और जिसे देवता समझ पूजा उसी को राक्षस बताते हैं। हमारे भगवान देवी देवता बार बार बदल जाते हैं , कभी मंदिर कभी मस्जिद कभी गिरिजाघर कभी गुरूद्वारे चले जाते हैं। कितने गुरुओं की शरण में चले जाते हैं , तस्वीर लेकर आकर दीवार पर सजाते हैं मगर जो सबक पढ़कर आये नहीं समझ पाते हैं। खुद कुछ भी नहीं करना चाहते कोई और करेगा आस लगाते हैं। मुझे इक शेर अपना कहना है सभी को फिर आखिर में दुष्यंत का।
जिन के ज़हनों में अंधेरा है बहुत ,
दूर उन्हें लगता सवेरा है बहुत।
हम बदलने की कोशिश ही नहीं करते अन्यथा सब बदल सकता है। दुष्यंत कहते हैं।
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