क़त्ल मुझको लोग सब करते रहे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
क़त्ल मुझको लोग सब करते रहे
हम न जाने किसलिए मरते रहे ।
ख़ुदकुशी करनी न आई आपको
हम पे ये इल्ज़ाम भी धरते रहे ।
ज़हर अपने हाथ से हमने पिया
दोस्त अपने जाम को भरते रहे ।
दे के हमको बेग़ुनाही की सज़ा
आप खुद फिर क्यों सभी डरते रहे ।
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