बेगुनाही जुर्म है ( खरी खरी ) डॉ लोक सेतिया
राजनीति क्या है , अपराधियों का पहला घर है। नेता बन गए तो आपके गुनाह गुनाह नहीं रहते। हर मुकदमा राजनीतिक दुश्मनी से विपक्षी लोगों ने झूठा दायर किया है। साबित ही नहीं होता अपराध। हत्या हुई लूट हुई घोटाले हुए , मगर किसने किये कोई सबूत ही नहीं। हमारे देश की पुलिस और सभी जांच एजेंसी इस काम में माहिर हैं कि सबूत इस तरह मिटाते हैं कि खुद भी नहीं याद रहते। न्यायपालिका भी आंखों पर पट्टी बांधे है निष्पक्षता की नहीं देख कर नहीं देखने की। नेता सत्ता में है तो अपराध करने वाले अपने खास लोगों को बचाने में कभी शर्माते नहीं हैं। इक नेता को रंगे हाथ पकड़ा गया तो लोग कहने लगे अगर अपने दल के शासन में जेल जाना पड़ा तो क्या फायदा सत्ताधारी दल में होने का। सत्ता का मकसद ही लूट का अधिकार है। सत्ताधारी दल के अध्यक्ष की संविधान या कानून में क्या हैसियत है , आम नागरिक से अधिक कुछ नहीं। मगर देख लो हर पदाधिकारी खुद को देश समाज शहर गांव का शासक ही नहीं मालिक समझता है। लाल बत्ती लगाना ज़रूरी नहीं है , गाड़ी पर सत्ताधारी दल के पद का नाम होना आपको सब करने की आज़ादी देता है। मीडिया वालों का लिखा एक शब्द उनको वी आई पी बनवा देता है। सरकार तक को आम जनता की कोई चिंता नहीं मगर मीडिया पर मेहरबान हो जाती है। जो जनता की बात करने वाले थे वो सत्ता की चौखट पर खड़े मिलते हैं। अधिकारी नेता जो भी बोलते हैं बयान खबर बन जाते हैं।
सरकारी विभाग खुद नियम कायदे कानून तोड़ने वालों को बचाते हैं। अधिकतर अनुचित काम उनकी पहले से जानकारी या अनुमति से होते हैं। शायद देश का चरित्र ही यही बन गया है। हर कोई मानता है कि गलत काम करना उसकी ज़रूरत मज़बूरी या अधिकार ही है। आदतन हम अपराधी हैं , अनुचित करते हमें लज्जा नहीं आती बल्कि गर्व करते हैं अपने कारनामों पर। कोई अभिनेता गंभीर आपराधिक मुकदमें में जेल से बाहर आता है तो फिल्म इंडस्ट्री उसको खलनायक नहीं नायक समझती है और जनता उसकी गांधीगिरी की कायल हो जाती है। कोई महानायक हर कानून को तोड़ता है किसी राज्य की सरकार के सहयोग से झूठा प्रमाणपत्र किसान होने का हासिल करने को और तब भी उसका बाल भी बांका नहीं होता। तमाम उद्योगपति सरकार के सहयोग से सेज बनाने को किसानों की ज़मीन लेते हैं मगर करते उसका दुरूपयोग हैं तब भी उनको लोग मीडिया महान देश भक्त और समाज सेवक साबित करते हैं। उनके एन जी ओ लूटे माल से डाकुओं की तरह गरीबों की सहायता करते हैं।
हम तब हैरान होते हैं जब किसी ताकतवर के विरुद्ध कोई मुकदमा हो तो भीड़ उस का साथ देने को खड़ी ही नहीं हो जाती बल्कि उसका बचाव करती है। समझती है वो निर्दोष नहीं है तब भी उसे सज़ा नहीं मिलनी चाहिए चाहती है। हैरानी की क्या बात है , कोई बड़ा नेता खुद मानता है उसी ने रेल की दुर्घटना कराई थी बंब फेंका है मगर सत्ता मिलते ही मुकदमा वापस लिया जाता है। अभी पिछले सप्ताह ही हरियाणा सरकार अदालत गई थी दंगा करने वालों के केस वापस लेने को मगर अदालत ने झाड़ लगाई। शायद आज भी कोई सरकार यही चाहेगी सामाजिक सदभाव कायम रखने को अपराधी का पक्ष लेना। सामने बेशक कुछ नहीं कहे मगर आज भी अधिकारी और नेता यही करते हैं कानून व्यवस्था कायम रखने के नाम पर विशेष लोगों से मिलकर रास्ता निकालते हैं। कानून और अपराध में टकराव क्यों नहीं होना चाहिए। जब कानून लागू करने वाले तोड़ने वालों से सहयोग मांगते हैं तब समझ लिया जाना चाहिए सत्ता कितनी कमज़ोर है न्याय के साथ खड़ा होने तक को तैयार नहीं है। अब गुनाह करना जुर्म नहीं है। बेगुनाही जुर्म है।
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