अगस्त 15, 2017

किस आज़ादी का जश्न ( खरी बात ) डॉ लोक सेतिया

     किस आज़ादी का जश्न ( खरी बात ) डॉ लोक सेतिया 

        शायद मैं औरों जैसा देशभक्त नहीं हूं। मुझे हर साल आज़ादी के दिन जश्न मनाने पतंग उड़ाकर ख़ुशी मनाने की चाह कभी नहीं होती। बल्कि कभी कभी लगता है इतना धन इस तरह ख़र्च करना कितना उचित है जब करोड़ों लोग गरीबी की रेखा से नीचे हैं आज भी। मगर आज शाम होने को है जब मैं लिखने बैठा हूं आज की बात बहुत भारी मन से। आज खबर सुनाई दी कि चंडीगढ़ में आज़ादी के जश्न में शामिल होकर जब इक लड़की घर को जा रही थी तब उस के साथ घिनौनी हरकत हुई। क्या देश आज़ादी के सत्तर साल बाद भी दो राज्यों की राजधानी और केंद्र शासित शहर में दिन दिहाड़े महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है। और है तो क्यों। अभी कुछ दिन पहले इक नेता के बेटे ने जब चंडीगढ़ में इक लड़की का पीछा किया तो बहुत लोग बहुत बातें बोल रहे थे। शर्म की बात है कुछ लोग इस पर नेता का  पक्ष लेकर अपने अख़बार में लिख रहे थे कि उस की कुर्सी नहीं जानी चाहिए। फेसबुक पर बाकायदा उस नेता का साथ देने की बात भी पढ़ने को मिली। सवाल हमारी संवेदनहीनता का है जो महिला की आज़ादी और सुरक्षा से अधिक चिंता हमें किसी नेता की कुर्सी की होती है। सवाल ये नहीं कि दोषी बेटा है , सवाल ये है कि जब किसी दोषी का पिता सत्ताधारी दल के बड़े पद पर है तब क्या पीड़ित महिला को न्याय मिलेगा। कल फेसबुक पर किसी महिला से बात हुई जो कुछ महीनों से अमेरिका में गई हुई हैं।  शिक्षित महिला हैं कॉलेज में अध्यापन कराती रही हैं वो भी देश में महिलाओं की सुरक्षा और कानून व्यवस्था पर निराश थी जब मैंने यूं ही कह दिया ईस्ट ओर वेस्ट होम इज़ दा बेस्ट। मगर क्या सच सारे जहां से अच्छा गाने से देश वास्तव में अच्छा हो जायेगा। अच्छे दिन भी ऐसे होते हैं।  
 
        सवाल इतना सा नहीं है।  अभी कल ही उच्च न्यायलय ने हरियाणा सरकार को लताड़ लगाई थी क्योंकि सरकार दंगा करने वालों के खिलाफ केस वापस लेना चाहती है। यही सरकार हर दिन विज्ञापन देती है ईमानदारी के इतने दिन। कैसी ईमानदारी है अपराधियों के पक्ष खड़े होने की। तीन साल में इस सरकार में हर विभाग में अनुचित अवैध और गैर कानूनी काम खुले आम होते रहे हैं और सत्ताधारी बचाव करते रहे हैं अवैध कब्ज़ों और नियम कानून तोड़ने वालों का। जब  नेता सरकार और अधिकारी ही नहीं मीडिया वाले भी सही और गलत को नहीं अपने अपने स्वार्थ के नज़रिये से देखेंगे तब झूठ की जय जयकार और सच की हार ही होगी। सच कहते हैं कभी पराजित नहीं होता , मगर आजकल तो हर तरफ झूठ विजयी होता दिखाई देता है। क्या इसी बात  का जश्न मनाया जाये कि झूठ विजयी हो गया है। 

 
            

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