अगस्त 02, 2017

भाषण भी उद्योग है ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

         भाषण भी उद्योग है ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

       बहुत सारे नेता अच्छा भाषण देने के लिए विख्यात रहे हैं। उनका भाषण सुनने को लोग बड़ी संख्या में खुद भी आते रहे हैं वरना अधिकतर भाषण देने को जनता को लाया जाता है , किसी न किसी तरह से। पिछले चुनावों में दूर दूर से लाया गया दिहाड़ी पर मज़दूरों को ताली बजवाने को। उनको टिफिन मिला जिस में पांच सौ वाला नोट जो तब वैध था भी रखा हुआ था खाने के साथ और जाने आने को बढ़िया बस भी। कुछ नेता समझा जाता चुनाव की हवा बदल देते हैं भाषण देकर ही , उनकी ज़रूरत बढ़ जाती है चुनाव में। किसी रैली की भीड़ को चुनाव जीतने का प्रमाण समझा जाता है वैसे ये बात कई बार गलत भी साबित हुई है। नेता अपने भाषण में हल्की फुल्की बातें चुटकुलेबाज़ी भी करते हैं ताकि भीड़ का मनोरंजन हो और भीड़ भाग नहीं जाये। बड़े नेता तो कम भीड़ होने का पता पहले से लगा लेते हैं और आना स्थगित कर देते हैं। अभिनेता के डायलॉग पर दर्शक फ़िदा  हो जाते हैं भले अभिनेता जो संवाद बोलता है उस जैसा खुद होता नहीं है। प्राण खलनायक था मगर वास्तव में बेहद भला मानुष और बहुत नायक असल में जो किरदार निभाते उसके विपरीत होते हैं। बड़े बड़े साहस वाले किरदार निभाने वाले जीवन में कायरता दिखलाते हैं और सच पर मिटने वाले फ़िल्मी अभिनय करने वाले झूठों के सरदार हुआ करते हैं। कुछ फ़िल्मी कलाकार भी भीड़ जमा करने को बुलवाये जाते हैं और कुछ इसी तरह राजनेता भी बन गए हैं। तभी तो कहते हैं काजल की कोठड़ी में कितना भी स्याना घुस जाये कालिख लग ही जाती है। राजनीति में दाग़दार कौन है बेदाग़ कौन ये भी रहस्य की बात है। जब चाहा किसी को दाग़ी करार दिया और जब अपनी तरफ आया तो बेदाग़ समझ लिया क्लीन चिट दे दी। सत्ता की गली में बेदाग़ ढूंढते रह जाओगे , अभी तक किसी डिटरजेंट बनाने वाले ने सत्ता से मिले दाग़ मिटाने का दावा नहीं किया है। ये काम केवल और केवल सी बी आई ही करती है। अदालत भी अपराधी साबित नहीं होने पर दाग़ मिटा नहीं सकती। लोग दाग़ी मानते रहते हैं। कोई कंपनी सी बी आई ब्रांड का डिटरजेंट बनाती तो मालामाल हो जाती। अभी भी लोगों को इस नाम पर भरोसा है , सी बी आई भी बड़े चमत्कार दिखलाते हैं जिसे खुद रंगे हाथ पकड़ा उसी को निर्दोष ठहराते हैं। बदली सरकार तो ये भी बदल जाते हैं।

            भाषण देना भी इक कला है दाग़ मिटाना भी कला है। भाषण में खुद पर लगे दाग़ विपक्षी पर चिपका देते हैं। उसके पायजामे को मैला और अपने कुर्ते को चकाचक सफेद बताते हैं। लोग हर झूठ पर तालियां बजाते हैं और नेता सोचते हैं जनता उल्लू है और सोचकर मुस्कुराते हैं। भाषण सुनकर अंधे बन जाते हैं तभी हर तरफ जनता को हरियाली दिखलाते हैं। नेताओं का यकीन है देश की जनता को रोटी की शिक्षा की स्वास्थ्य सेवाओं की नहीं भाषणों की ज़रूरत है तभी हर दिन भाषण खिलाते हैं भाषण पिलाते हैं। सभा में ही नहीं टीवी शो और रेडियो तक क्या सोशल मीडिया पर भी खूब ज़ोर ज़ोर से चिल्लाते हैं। हंसते हैं गाते हैं और खुलकर मुस्कुराते हैं , वोट देने वाले बाद में आंसू बहाते हैं , अच्छे दिनों की अच्छी सज़ा पाते हैं। लोग आजकल बहुत घबराते हैं , मालूम नहीं क्या नया अब ये लाते हैं। जनता को बुनियादी सुविधा देने को सकुचाते हैं और खुद करोड़ों अपने पर हर दिन उड़ाते हैं। सत्ता मिलते मकसद भी बदल जाते हैं , फूल खिलाने थे और पत्थर बरसाते हैं। सब सपने सुनहरे बिखर जाते हैं और अच्छे दिन वाले कैच हाथ से फिसल जाते हैं। राजधानी में पत्थरों के महल बनवाते हैं , नर्म दिल लोग भी वहां पत्थर दिल हो जाते हैं।

            भाषण देने वालों की जेब में भाषण भाषण से टकराते हैं। उद्द्घाटन वाले भाषण बंद वाले भाषण से बतियाते हैं। बधाई देने के बाद दुःख भी किसी को जाकर जताते हैं , बिल्लियों को लड़वा बंदर रोटी खाते हैं। भाषण लिखते नहीं लिखवाते हैं और पुरानी बात को हमेशा भूल जाते हैं , जिसे खराब कहते रहे बढ़िया है समझाते हैं शब्दों तक के अर्थ बदल जाते हैं। कहने का मतलब और था बोलते हुए नहीं शर्माते हैं। जनता के हिस्से बस भाषण आते हैं जो अपने खास हैं वही सत्ता की रेवड़ियां खाते हैं। किसी को मंत्री किसी को अधिकारी बनाते हैं , चंदा देने वाले इशारा समझ जाते हैं। चुनाव सुधार और ईमानदारी निष्पक्षता टके सेर बिक जाते हैं। झूठे लोग सच बोलने की शपथ खाते हैं। कुछ दिन भाषण की बौछार लाते हैं जब आज़ादी और गणतंत्र दिवस मनाते हैं। हर बार पुराना संकल्प दोहराते हैं अंधियारे लेकर उसे नई रौशनी बताते हैं। जनता को बदलाव लाने का पाठ पढ़वाते हैं और खुद सभी ज़िम्मेदारियों से मुक्त हो जाते हैं।

        अभी तक इतने उपजाऊ उद्योग पर कोई आयकर नहीं लगाया गया है। अब तो नया चलन चला है नेता भाषण भी टिकट बेचकर देने जाते हैं और बिके लोग खुद पैसे खर्च कर तालियां भी बजाते हैं। तभी तो टीवी पर नज़र आते हैं। जी एस टी लगाने वाले हमको इतना नहीं बताते हैं कितने फीसदी जी एस टी भाषणों पर खुद चुकाते हैं। कोई नहीं हिसाब मांगता भाषण देकर कितना मुनाफा कमाते हैं। राजनीति भाषण से शुरू भाषण पर खत्म होती भी है। मगर इस इतने बड़े उद्योग की आमदनी और जमापूंजी वा संम्पति सब करों से मुक्त है , धारा  चार सौ बीस का उपयोग कर के।

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