जून 05, 2017

जीवन की कविताएं - डॉ लोक सेतिया

           जीवन की कविताएं   -   डॉ लोक सेतिया

    1 जन्म 

मिट्टी के ढेर तले 
दफ़्न होती सांसें 
पल-पल  इक मां 
 
कड़ी मेहनत से मिट्टी को 
हटाती रहती है निरंतर  
 
जन्म देती है इस तरह
मासूम नन्हीं सी जान को। 

2 संघर्ष 

ये कौन है जो समझता है कि 
मैंने दिया है जीवन इसे 
 
पिता हूं पालक हूं मैं
इसको जीना है मेरे लिए

उस तरह जैसे मैं चाहूं
कब खत्म होगा यह 
 
रिश्तों का कड़ा संघर्ष । 

3  ज़िंदगी 

अग्रिम भुगतान देने वाली
बाद में कीमत चुकाने वाली

दो तरह की है ज़िंदगी ।

सांसों को चलाने के लिए
चुन लें जो भी सस्ती लगे

बार बार खरीदें वैधता

चाहे हर मास भुगतान करें
प्रीपेड पोस्टपेड फोन की तरह ।

4   अंजाम 

सौ बरस जीने का अरमान
हर दिन मरने का सामान  
 
चाहते जाना उस दिशा 
इस तरफ आओ का फरमान  
 
खो रहे सब कुछ मगर 
पाया है बस यही अभिमान  
 
भरा खज़ाना खाली दोनों हाथ  
फैला हुआ है इक रेगिस्तान । 

5  दुनिया 

बेरहम सी बला , 
नहीं करती कभी भला 
 
बेचैन करती रहती , 
थमता नहीं सिलसिला 

स्वर्ग का जगा अरमान , 
बेचती मौत का सामान

नर्क की दे दे सज़ा ,
खूब लेती है मज़ा

मिले उन्हीं से दर्द हैं , 
कहते जो हमदर्द हैं

कोई ठौर रहने को नहीं , 
जीना यहीं मरना यहीं ।

6 क्षणिका 

कहानी नहीं ग़ज़ल नहीं 
इक घटना की है लघुकथा  
 
निर्धारित हैं दो पन्ने डायरी के 
पहला भी  अंतिम भी  लिखा हुआ 
 
बीच में लिखनी सब  बात अपनी 
 
उपन्यास आपको लगती है 
ज़िंदगी है वास्तव में क्षणिका ।

7  शराब कर लेते 

नीयत थोड़ी खराब कर लेते 
सरकती रुख से नकाब कर लेते 
 
खत में गुलाब भेज देते 
कुछ बराबर हिसाब कर लेते
 
देख कर होश खो जाते 
नज़रों को वो शराब कर लेते । 
 

 

 

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