जून 18, 2017

फिर आया है मसीहा ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

     फिर आया है मसीहा ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

  उनको सदी का महानायक नाम दिया गया है , टीवी पर आकर कहते हैं मैं फिर आ रहा आपको करोड़पति बनाने। आज पहला सवाल है भाग लेने को उसका जवाब दें। आप को लगेगा भाई करोड़ रूपये की बात है सवाल कठिन होगा ही। और सवाल पूछते हैं बाहुबली फिल्म को लेकर , अगले दिन तक सही जवाब देना है। अगली दोपहर को बाहुबली फिल्म उसी टीवी चैनल के फ़िल्मी चैनल पर देख आप सही जवाब दे सकते हैं।
लगता है आपको कितनी आसानी से राह मिल रही है। स्वच्छ भारत भी उन्हीं की मेहरबानी है गांव गांव खेत खेत जाकर सुबह शौच को जाने वालों को लताड़ते हैं समझाते हैं भारत सरकार शौचालय बनाने को पैसा देती है। उनको कौन सवाल कर सकता है कितने गांवों में पानी ही नहीं पीने को मीलों दूर जाना पड़ता है और आप शौचलय की बात करते हैं। इन फ़िल्मी लोगों को सब फ़िल्मी नज़र आता है , इनकी ताकत भी फ़िल्मी , इनकी गरीबी भी फ़िल्मी , और इनका नायकत्व भी फ़िल्मी। नकली किरदार हैं ये सब। सब से अजीब बात है कि आप क्या दिखला रहे हैं , आपको सवाल भी यही पूछने हैं फ़िल्मी काल्पनिक दुनिया के। समाज को क्या अंधकार में रखना चाहते हैं और झूठे सपनों में खो जाओ यही आपका उद्देश्य है। लोग भूखे नंगे हैं बदहाल हैं मगर आपको उनको खाली पेट मनोरंजन के नशे में अपनी हालत को भूल जाने का उपाय करना है। बचपन में परीकथाओं में खोना अच्छा लगता था लोगों को , मुझे शायद तब भी मां ने उस तरह की झूठी कहानियां या लोरियां नहीं कुछ सच्ची कथाएं सुनाईं।

                आप को सब को टीवी वालों तक को बाहुबली को किसने मारा और भारत पाक मैच में जीत हार देश की सब से बड़ी समस्या लगती हैं। जब आपके सामने खड़ा होता है कोई नेता जो रिश्वत खाता हर काम करने को या अपना फ़र्ज़ नहीं निभाता अथवा कोई अफ़्सर जो जनता की सेवा नहीं नागरिक पर सत्ता का चाबुक चलाता हो। तब देश के प्रति अपराध करने वालों के सामने आप हाथ जोड़ खड़े होते हैं या अपने किसी मकसद को हासिल करने को उनको मुख्य अथिति बनाकर सम्मानित करते हैं। मगर आपकी देशभक्ति नहीं जगती और आप कुछ नहीं बोलते कायर बन जाते हैं। आपका जोश खेल को टीवी पर देखते जगता है बंद कमरे में या किसी मैदान में जाकर तरह तरह से दिखावा कर के। आप कोई भी काम करते हों , राजनीति , नौकरी या अपना कारोबार , आपको कभी नहीं लगता अपने काम में देश और समाज के लिए आप कितने सही हैं ईमानदार हैं। कम से कम देश का बीस तीस प्रतिशत हिस्सा जो सुविधा संपन्न है शायद नहीं जनता सत्तर प्रतिशत जनता की दशा क्या है। उन से सरोकार रखना देशभक्ति नहीं हो सकता। अगर हम सब को अपने ही देश के लोगों से प्यार नहीं है तो फिर किस से है। देश आप सब से है , हम सभी देश हैं मिलकर।

       बेहद हैरानी की बात है ये टीवी शो समाज को न केवल दिशाहीन करते हैं बल्कि साथ साथ उसको छलते भी हैं कुछ देते नहीं लूटते ही हैं। धन दौलत के अंबार हैं इन के पास फिर भी इनकी पैसे की हवस खत्म नहीं होती और कुछ भी करते कभी नहीं सोचते कि उस में देश या देशवासियों की भलाई है या उनके लिए बिछाया जाल है। आप हम इनकी मछलियां हैं , इनको ज़रूरत है हमारी , अपनी आमदनी और और बढ़ाने को। आपको ये कोई मसीहा लगते हैं। एक बार फिर याद दिलाता हर धर्म ग्रंथ कहता है वो सब से दरिद्र है जिस के पास सब कुछ है फिर भी और अधिक पाने की हवस है। हाउ मच लैंड ए मैन नीड्स , कहानी भी किसे याद है। यूं भी बड़े लोगों को मरने के बाद भी कई कई एकड़ ज़मीन चाहिए समाधि स्थल बनाने को उस देश में जिस में लोगों को ज़िंदा रहते घर नहीं नसीब होता।  अर्थशास्त्र का नियम समझाता है अधिकतर के पास कुछ इसी लिए नहीं है क्योंकि कुछ थोड़े से लोगों पास ज़रूरत से कहीं अधिक है। इस पर जो खुद और चाहते उनका कहना कि आपको अमीर बनाना चाहता हूं , झूठ है धोखा है और कपट है। मगर जानते हुए भी ऐसा करने वाले को जो महान समझते हैं सवाल उनकी सोच का है।

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