मई 29, 2017

मुझे नहीं बनना अच्छा आदमी - डॉ लोक सेतिया

    मुझे नहीं बनना अच्छा आदमी - डॉ लोक सेतिया 

 सच अगर मीठा होता तो कोई झूठ नहीं बोलता , अब सच का स्वाद अगर कड़वा है तो सच बोलने वाला क्या करे। मगर इधर लोगों की शक्ल खराब है और बुरा भला दर्पण को कहते हैं , दर्पण झूठ न बोले जो सच है वो सामने आया , हंस ले चाहे रो ले। हम कैसा सभ्य समाज हैं जो खुद बोता है कांटें और चाहता फूल हासिल करना। सच सच बताओ कौन कौन सच के साथ खड़ा होता है। मुझे सामने बेशक नहीं बोलते मगर पीठ पीछे कहते हैं ये अच्छा आदमी नहीं है , भला कोई अधिकारी कर्तव्य नहीं निभाता , पुलिस अपराधी का बचाव करती है , नेता अपने चहेतों को मनमानी की छूट देते हैं , शिक्षक विद्या को दान नहीं वयापार समझते हैं , करबारी अपने मुनाफे की खातिर हर अनुचित तरीका अपनाते हैं , डॉक्टर हॉस्पिटल ईमानदारी से मरीज़ का इजाल नहीं करना चाहते बल्कि किसी भी तरह अधिक से अधिक पैसा बनाना चाहते हैं , लूट करना सभी की आदत बन गई है। सेवा की आड़ में स्वास्थ्य से खिलवाड़ होता है , लगता ही नहीं शराफत और मानवीय मूल्य किसी को याद भी हैं। कितना धन कमा लो क्या होगा , इक मित्र जो जाने कितने धंधे कर चुके हैं और अब दलाली का धंधा करते हैं , मुझे बता रहे थे मैंने क्या क्या नहीं बना लिया। उनको लगता है इन सब से उनका नाम अमर हो जायेगा , लोग याद किया करेंगे क्या क्या ज़मीन जायदाद उनकी बनाई हुई है। मैंने कहा आपको अपने पिता जी से जो मकान दुकान मिले क्या आपको अभी लगता वो उनकी है। आप किसी को बताते हैं ये मेरी नहीं पिता जी की बनाई हुई है मुझे विरासत में मिली है। चुप लगा ली क्योंकि उनको लगता है अब ये सब उन्हीं का है पिता जी के बाद। मैंने कहा ठीक ऐसे आपके बेटे और उनकी संतानें जब उनको जो मिला उसे खुद अपना ही समझेंगे आपका नहीं। आप को अपने लिए जितना चाहिए उतना आप बिना ठगी या धोखे के कारोबार किये कमा सकते हैं। सब धर्म बताते हैं अपनी संतान को काबिल बनाओ तो वह खुद अपनी काबलियत से कमा सकती है। और अगर नाकाबिल हो तो आपका जमा किया भी खत्म कर सकती है। इक बात उनको बताना बेकार था मगर आपको बताता हूं , आपकी जमा पूँजी कोई छीन सकता है चुरा सकता है , मगर आपकी काबलियत कोई नहीं छीन सकता। उनको ही नहीं तमाम बाकी लोगों को भी लगता है मैंने कुछ नहीं जमा किया कोई धन दौलत बढ़ाई नहीं। मगर मैं मानता हूं मेरा रचनाकर्म मेरी सब से बड़ी पूंजी है , जो मेरे बाद भी मेरी ही कहलाएगी किसी और की नहीं। मेरी संतान भी इसको अपना नहीं समझेगी बल्कि याद करेगी ये हमारे पिता की लिखी रचनाएं हैं। बस यही किया है मैंने , भले  घर फूंक तमाशा देखना कहे कोई।
 
वो जिनको मुझ से गिला है कि मैं बेबाक कहता और लिखता हूं हर किसी के अनुचित आपराधिक कृत्यों को लेकर उनको चिंतन की ज़रूरत है। आप अधर्म कर धार्मिक कहलाना चाहते हैं , तमाम नियम कायदे कानून तोड़ कर अपने अनैतिक कामों को सभ्य नागरिक होने के दावे से ढकना छुपाना चाहते हैं। मुझे समाज के अंधियारे को उजाला नहीं बताना अच्छा कहलाने को। आपको बुरा लगता हूं तो मेरे लिए ऐसा बुरा कहलाना अपमान की नहीं गर्व की बात है। 

 

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