मई 04, 2017

मिल गया मुझे सच्चा दोस्त ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

मिल गया मुझे सच्चा दोस्त  ( कविता )   डॉ लोक सेतिया

न जाने कब से ,
मुझे तलाश थी ,
इक सच्चे दोस्त की ।

कोई ऐसा जो ,
मुझे समझे और ,
अपना बना ले मुझे ,

मैं जैसा भी हूं ,
बिना कोई कमी बताए ।

जो हर हाल में निभाए ,
साथ मेरा उम्र भर ,
सुःख -दुःख में ,
जीवन की कठिन डगर पर ,
नहीं बिछुड़े कभी भी मुझसे ।

और मैं आज तक उदास रहा ,
जिया इक निराशा को लेकर ,

कि मुझे इस सारी दुनिया में ,
नहीं मिल सका कोई भी ,

दोस्त जैसा मेरी कल्पना में था ।

आज सोचा शायद पहली बार ,
समझा और किया एहसास भी ,

कोई कदम कदम चलता रहा है ,
जीवन भर मेरे साथ बनकर दोस्त ,

बिना मुझे महसूस हुए भी ,
और मेरी हर परेशानी को ,

हर कठिनाई को दूर करता रहा ,
बिना कोई एहसान या उपकार ,

करने का दुनिया वालों की तरह ,
मुझे करवाए ज़रा सा भी मुझे ।

मैंने जाने कितनी बार अपना भरोसा ,
उस प्रभु के होने नहीं होने का ,

टूटता बिखरता हुआ अन्तरमन में ,

किया है महसूस भी अक्सर ,
तब भी बिना मेरे विश्वास के ,

होने या नहीं होने का विचार किए ,
कभी किसी कभी किसी रूप में ,

उसने आकर मेरा हाथ थामा है ,
और पल पल डोलती मेरी जीवन नैया ,

को हर मझधार हर तूफ़ान से ,
बचाकर लाया है हर बार किनारे पर ।

सामने नहीं दिखाई देता फिर भी ,

वही एक है जो मेरा ही नहीं ,
हर किसी का साथ देता ही है ,

नहीं बदले में चाहता कुछ भी ,

कभी रूठता नहीं खफ़ा नहीं होता ,
अपनाता है हर किसी को सदा ।

उस से अच्छा सच्चा दोस्त ,
पूरी दुनिया में दूसरा कोई नहीं ,

मैं जिस को ढूंढता रहा इधर उधर ,
वो तो पल पल था मेरे पास ही ,

मैंने ही उम्र गंवा दी उसको ,
समझने पहचानने  में कितनी ,

मिल गया है मुझे मेरा सच्चा मित्र ,
कभी जुदा नहीं होने को आज । 
 

 

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