मिल गया मुझे सच्चा दोस्त ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
न जाने कब से ,
मुझे तलाश थी ,इक सच्चे दोस्त की ।
कोई ऐसा जो ,
मुझे समझे और ,
अपना बना ले मुझे ,
मैं जैसा भी हूं ,
बिना कोई कमी बताए ।
जो हर हाल में निभाए ,
साथ मेरा उम्र भर ,
सुःख -दुःख में ,
जीवन की कठिन डगर पर ,
नहीं बिछुड़े कभी भी मुझसे ।
और मैं आज तक उदास रहा ,
जिया इक निराशा को लेकर ,
कि मुझे इस सारी दुनिया में ,
नहीं मिल सका कोई भी ,
दोस्त जैसा मेरी कल्पना में था ।
आज सोचा शायद पहली बार ,
समझा और किया एहसास भी ,
कोई कदम कदम चलता रहा है ,
जीवन भर मेरे साथ बनकर दोस्त ,
बिना मुझे महसूस हुए भी ,
और मेरी हर परेशानी को ,
हर कठिनाई को दूर करता रहा ,
बिना कोई एहसान या उपकार ,
करने का दुनिया वालों की तरह ,
मुझे करवाए ज़रा सा भी मुझे ।
मैंने जाने कितनी बार अपना भरोसा ,
उस प्रभु के होने नहीं होने का ,
टूटता बिखरता हुआ अन्तरमन में ,
किया है महसूस भी अक्सर ,
तब भी बिना मेरे विश्वास के ,
होने या नहीं होने का विचार किए ,
कभी किसी कभी किसी रूप में ,
उसने आकर मेरा हाथ थामा है ,
और पल पल डोलती मेरी जीवन नैया ,
को हर मझधार हर तूफ़ान से ,
बचाकर लाया है हर बार किनारे पर ।
सामने नहीं दिखाई देता फिर भी ,
वही एक है जो मेरा ही नहीं ,
हर किसी का साथ देता ही है ,
नहीं बदले में चाहता कुछ भी ,
कभी रूठता नहीं खफ़ा नहीं होता ,
अपनाता है हर किसी को सदा ।
उस से अच्छा सच्चा दोस्त ,
पूरी दुनिया में दूसरा कोई नहीं ,
मैं जिस को ढूंढता रहा इधर उधर ,
वो तो पल पल था मेरे पास ही ,
मैंने ही उम्र गंवा दी उसको ,
समझने पहचानने में कितनी ,
मिल गया है मुझे मेरा सच्चा मित्र ,
कभी जुदा नहीं होने को आज ।
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