अप्रैल 16, 2017

लो अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम ( आज के वक़्त की सरकार के नाम आखिरी खत ) डॉ लोक सेतिया

         लो अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम 

        ( आज के वक़्त की सरकार के नाम आखिरी खत ) डॉ लोक सेतिया 

चालीस साल से अधिक समय हो गया है मुझे जनहित के पत्र लिखते लिखते। बेशक किसी भी सरकार से मेरी आशायें नेताओं और प्रशासन के संवेदनशील और वास्तविक लोकतांत्रिक होने की पूरी नहीं हुई हों , इंदिरा गांधी से लेकर सभी बदलती सरकारों में , जिन में वाजपेयी जी की भी सरकार शामिल रही है , और मनमोहन सिंह जी की केंद्र की और हरियाणा में भुपिंदर हुड्डा जी की सरकार तक। फिर भी शायद इक उम्मीद बची हुई थी कि किसी दिन मैं अपने जीवन में वो बदलाव देख सकूंगा जो मेरा ख्वाब है। कभी कोई नेता आयेगा जो खुद राजसी शान से रहना अपराध समझेगा जब देश की वास्तविक मालिक जनता गरीबी और भूख में जीती है। मगर आपके नित नये नये झूठे प्रचार के शोर में हर तरफ जब बस एक ही नाम का शोर है तब ऐसे सत्ता के होते विस्तार के जश्न भरे माहौल में भला किसी मज़लूम की आह या चीख किसी को सुनाई देगी। आपका सारा संवाद एकतरफा है मन की बात से तमाम तथाकथित ऐप्स तक की बात। तीन साल में आपको पी एम ओ ऑफिस में देश के भ्र्ष्टाचार और आपकी सभी योजनाओं की असलियत तक की जानकारी भेजी पत्र द्वारा। और आपके सभी दावे शत प्रतिशत झूठे साबित हुए। आपका स्वच्छ भारत अभियान और खुले में शौच मुक्त का दावा इस कदर कागज़ी और झूठा सब को नज़र आता है अपने आस पास। सब से अनुचित बात आपको कभी लगा ही नहीं कि प्रशासन को उत्तरदायी बनाया जाये उनका तौर तरीका बदला जाये। जो पहले मुख्यमंत्री हुए उन्होंने भी हर अफ्सर को यही निर्देश दिया था कि उनके दल के कार्यकर्ता की हर बात मानी जानी चाहिए। ये कैसा लोकतंत्र है , दल की सरकार का अर्थ क्या हर तथाकथित नेता का शासक होना है। संविधानेतर सत्ता जितनी आज है कभी नहीं रही। खेद इस बात का भी है कि पहले मीडिया का कुछ हिस्सा सत्ता के हाथ की कठपुतली बनता था आज सभी बिक चुके लगते हैं। जिस तरह हर राज्य में मनोनयन से मुख्यमंत्री बनाये जा रहे हैं उस से तानाशाही का खतरा साफ मंडरा रहा है। आज तक जितनी भी सरकारें आईं उन्होंने कभी भी सच बोलने वालों को इस कदर प्रताड़ित नहीं किया जितना भाजपा के शासन में जनहित की बात करने पर मुझे झेलना पड़ा है। सी एम विंडो की बात छोड़ो प्रधानमंत्री जी से जनहित की शिकायत भी बेअसर है। आपके ऑफिस में लिखे किसी पत्र का को उत्तर नहीं मिला न कोई प्रभाव। आपके मीडिया में खुद के सोशल मीडिया पर महानता के चर्चे बस आपकी इकतरफा बात है। सौ पचास की भलाई की बात को अपने प्रचार में बताते क्या कभी बताया कितने लाख या शायद करोड़ की अर्ज़ियाँ रद्दी की टोकरी में फैंक दी। हो सकता है आपकी लोकप्रियता चरम पर हो और तमाम लोग आपके नाम का गुणगान करते हों मगर मैं आपकी केंद्र की सरकार और हरियाणा में राज्य की सरकार से इस कदर निराश हो चुका हूं कि भविष्य में जनहित की बात सरकार प्रशासन या नेताओं को लिखना ही छोड़ रहा हूं। शायद आप सभी के लिए ये राहत की बात होगी कि मुझ जैसे लोग तंग आकर खामोश हो जायें।

                    लो आज हमने छोड़ दिया रिश्ता ऐ उम्मीद ,
                   लो अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम। 

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें