दुनिया के यातायात के नियम ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया
आप पैदल चलते हैं या किसी वाहन की सवारी कर सफर करते हैं आपको कुछ कायदे कुछ नियम समझने ज़रूरी होते ही हैं। बायीं तरफ चलना देख कर कदम रखना और ऊंचाई या निचाई फिसलन या धूल और गंदगी के इलावा जानवर आदि का ध्यान रखना होता है। सड़क पार करनी हो तब इधर उधर देख सही जगह से करना होता सुरक्षा की खातिर। जब आप वाहन चलाते हैं तब भी आपको बहुत बातों का ध्यान रखना होता है। किस गति से चलना किस तरफ कैसे मोड़ काटना सिग्नल पर रुकना और हैलमेट पहनना। आपको सिर्फ खुद अपने वाहन का ही ध्यान नहीं रखना होता , दायें बायें आगे पीछे चलते वाहनों का भी ख्याल रखते हैं। कभी सोचो अगर सब केवल खुद अपनी मर्ज़ी से इधर उधर होते बगैर सब को रास्ता देते चलने लगें तो कितना टकराव हो कितनी दुर्घटनायें घटती हैं ऐसी लापरवाही से। पुलिस हवालदार और जुर्माने का डर काफी मदद करता है खुद हमारी सुरक्षा में।
मगर क्या हम अधिकतर जीवन में इन बातों पर विचार करते हैं , जीने का सही तरीका भी वही है जब हम सब केवल अपनी सुविधा नहीं सभी की परेशानियों और अधिकारों की परवाह करें। कभी ध्यान देना हमारी अधिकतर समस्याओं की जड़ खुद हमारे अथवा किसी दूसरे के सामाजिक नियमों की अनदेखी करना होता है। मुझे जो चाहिए जैसे चाहिए की सोच उचित नहीं है , क्यों और किसलिए भी सोचना समझना ज़रूरी है। काश इतनी छोटी सी बात सभी समझ लें कि चाहे जो भी हो हमें सही राह पर चलना है , मुश्किलों से बचने को आसान रास्ते नहीं तलाश करने। कहने को बेशक हम सब दावा करते हों कोई अनुचित कार्य नहीं करने का , मगर वास्तविकता ये नहीं है। अगर हम अनुचित नहीं करते तो कोई हमारे कारण परेशान नहीं होता। खेद की बात तो ये है कि हम हर अनुचित काम उसको उचित ठहरा कर करते हैं। आप अपने घर के सामने सफाई रखते हैं और चुपके से या छिपकर अपनी गंदगी पड़ोसी के दरवाज़े के सामने या जहां कहीं चाहते हैं डाल देते हैं। कोई रोकता है तो हम समझते हैं वही गलत है , इस तरह हम चोरी और सीनाज़ोरी करते हैं। रिश्वत खाना और खिलाना दोनों अनुचित हैं , हम उचित काम भी अपनी सुविधा से करवाने को ऐसा मर्ज़ी से भी करते हैं और कभी विवश होकर भी। आपने रिश्वत देकर अपना काम ही नहीं करवाया अपने दूसरों के लिए भी मुश्किल खड़ी कर दी , क्योंकि आपने गलत लोगों की आदत बना दी घूस लेने की।
सोचो अगर सरकारी अधिकारी अपना काम निष्पक्षता से पूरी इमानदारी से करते तो आज देश की ऐसी दुर्दशा कभी नहीं होती। चंद सिक्कों की खातिर अपना ईमान बेचकर कुछ मुट्ठी भर लोगों ने देश के करोड़ों लोगों के प्रति अपराध किया है। यही बात नेताओं की है , उद्योगपतियों कारोबारियों , सभी ने नैतिकता और सामाजिक मूल्यों की धज्जियां उड़ाईं हैं। अध्यापक या डॉक्टर क्या इस लिये होते हैं कि शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा को मानव कल्याण के खिलाफ अपने मतलब के लिये इस कदर लूट खसूट का कारोबार बना देना चाहें। वकील और न्यायधीश न्याय को हैं अथवा अपनी ज़रूरत अपनी सुविधा अपनी आय ही सब से बड़ा धर्म है। कोई जो भी काम करता है उसको अपने कर्तव्य में ईमानदारी को महत्व देना होगा , जब कोई भी अपना फ़र्ज़ नहीं निभाता और अधिकार सब चाहते तब यही होना है जो आज होता दिखाई देता है।
आम आदमी क्या तथाकथित महान कहलाने वाले लोग भी अपने मार्ग से भटके हुए हैं। धर्मप्रवचक उपदेशक खुद मोह माया और नाम शोहरत में उलझे हैं , आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास। क्या यही उपदेश है किसी भी धर्मग्रंथ में लिखा कि धर्मस्थल अपने पास धन दौलत के अंबार जमा करते रहें। दीन दुखियों की सेवा की बात किस को याद है। पत्रकारिता और लेखकों कलाकारों अभिनय करने वालों फिल्मकारों आदि को मालूम है उनको क्या आदर्श स्थापित करने हैं। समाज का आईना जब बिगड़ गया है और धन दौलत हासिल करना सफलता का पैमाना बन गया हो तब क्या होगा। पथप्रदर्शक मार्ग से भटक गये हैं। शायद किसी को फुर्सत ही नहीं ये सोचे कि उसका अपना कर्तव्य सही ढंग से नहीं निभाना उसकी निजि बात नहीं है। हर मानव समाज का हिस्सा है और हर हिस्से को सही काम करना चाहिए। आप प्रकृति को देखें हवा पानी आग मिट्टी , पेड़ पौधे सूरज सब नियमित अपना अपना काम करते हैं , दुनिया तभी कायम है। आपके जिस्म में हर अंग अपना अपना काम ठीक करता है तभी हम ज़िंदा हैं , हाथ पांव क्या बदन का छोटे से छोटा भाग ठीक नहीं हो तब मुश्किल होती है। जिस्म के अंदर भी मांस हड्डी रक्त और हृदय गुर्दे और फेफड़ों की तरह कितने और भाग हैं मस्तिष्क की नाड़ियों से लेकर महीन ग्रन्थियों तक , सब अपना काम रात दिन करते हैं तभी जीवित हैं हम सब। यही नियम समाज का भी है , जब हम में कोई अंग रोगग्रस्त होता है बिमारी का असर सारे समाज पर पड़ता है।
शायद अब आप सोचोगे कि काश इंसान के लिये भी कोई कानून का पालन करवाने वाला हवालदार होता जो हर लाल बत्ती की तरह गलत दिशा में जाने से रोक देता। मगर वास्तव में ऐसा है , वो ईश्वर है या जो भी जिसने इंसान को बनाया है , उसने इक आत्मा इक रूह इक ज़मीर सभी में स्थापित किया है। मगर क्या हम अपनी अंतरात्मा अपने ज़मीर की आवाज़ सुनते हैं , ये फिर लाल बत्ती पर कोई हवालदार खड़ा नहीं होने पर सिग्नल तोड़ आगे निकल जाते हैं। सब जानते है उचित क्या है अनुचित क्या , पाप पुण्य का अंतर समझने को शिक्षित होना ज़रूरी नहीं है। जब भी किसी के साथ अन्याय करते हैं या किसी को उसका अधिकार नहीं देते तब हम जानते हैं ऐसा गलत है। हर धर्म यही समझाता है मगर हम खुद को धार्मिक बताने वाले धर्म-अधर्म में अंतर जानते हुए भी अनुचित मार्ग अपनाते हैं खुदगर्ज़ी में। लेकिन क्या हम सोचते हैं हमें अपने अपकर्मों की कर्तव्य नहीं निभाने की कोई सज़ा नहीं मिलेगी। ये खुद को धोखे में रखना है। आप बबूल बोते हैं तो आम कैसे खाओगे। आपका बीजा बीज इक दिन उगेगा पेड़ बनकर , अगले जन्म की बात नहीं है , इसी जन्म में सब को अपने अपकर्मों की सज़ा मिलती है ये कुदरत का नियम है जो किसी सरकारी कानून की तरह बदला नहीं जा सकता। हैरानी की बात ये है कि जब हम सभी को कोई दुःख कोई परेशानी होती है तब हम ये नहीं सोचते कि ऐसा अपने किसी अपकर्म के कारण तो नहीं हुआ , हम किसी और को दोषी ठहरा अपने आप को छलते हैं। सही यात्रा के लिये यातायात के नियम पालन करने की ही तरह सार्थक जीवन यात्रा जीवन में मानवीय मूल्यों का पालन कर ही संभव है।
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