बात मतलब की , पते की बात नहीं ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया
न्याय क्या है आजकल इसको नहीं देखना चाहते लोग। सच की डगर चलना आसान नें बहुत कठिन है। लोग आसान राह चाहते हैं मुश्किल यही है , आसान रास्तों से मंज़िल मिल जाये ये मुमकिन नहीं है। देश की सब से बड़ी अदालत भी वही कहती है जो मेरे शहर का पुलिस का दरोगा कहता है। क्या मिलेगा कोर्ट कचहरी धक्के खाकर मिल बैठ समझौता कर लो सब मुसीबत से छुटकारा पाओ। इस युग में सत्यमेव जयते सिर्फ इक लिखा हुआ वाक्य है जिस को कोई नहीं पढ़ता। कुर्सी के पीछे की बात पढ़ना संभव ही नहीं है , शायद यही शब्द यही वाक्य कुर्सी पर बैठे अधिकारी नेता मंत्री न्यायधीश को सामने हर वक़्त पढ़ने को मिलते तो उनपर कुछ प्रभाव पड़ता भी। जब दो पक्ष लड़ते हैं और समझते हैं हम सही दूसरा गलत है , तब कोई न्याय दोनों को पसंद कैसे आ सकता है। ऐसे में देश की अदालत अगर कई साल तक खामोश बैठी रहने के बाद मात्र सुझाव देती है किसी गांव की बिरादरी की पंचायत की तरह कि अच्छा है मिल बैठ सब भाई समझौता कर लो। चाहो तो हम बीच में मध्यस्थता को राज़ी हैं। भारत पाकिस्तान में अमेरिका कभी समझौता नहीं करवाना चाहेगा , उसका फायदा हमारी लड़ाई जारी रहने में है। अमेरिका भारत का मित्र नहीं हथियार का सब से बड़ा सौदागर है , और भारत और पाकिस्तान उसके खरीदार , बिल्लियों की लड़ाई में बंदर बन सब खुद खाना उसका मकसद रहा है।
न्याय कभी अधूरा नहीं होता , आधा सच झूठ होता है। खेद की बात है अगर देश की सब से बड़ी अदालत इंसाफ नहीं समझौता पसंद है। आप कैसे राजनीति से अपराधीकरण को खत्म करोगे अगर आप चुप चाप लोकतंत्र की हत्या होते देखते हैं। जब विधायक नहीं कोई और निर्णय करता है कौन उनका नेता और मुख्यमंत्री बनेगा तब लोकतंत्र कहां बचता है। मनोनित लोग शासन करें और निर्वाचित हाशिये पर बैठ ताली बजायें तब लोकतंत्र और संविधान के साथ क्रूर उपहास ही किया जा रहा होता है।
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