कहा विकास किया विनाश ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
धीरे धीरे चली जब हवासत्ता को आया नहीं मज़ा
और तेज़ करनी है रफ्तार
कहती रही हर सरकार ।
हवा बन गई देखो आंधी
आंधी से बनी फिर तूफ़ान
उड़ा ले गई झुग्गी झौपड़ी
तबाह होते गये सब किसान
बाहर रौशनी भीतर अंधकार
है ऐसा अपना भारत महान ।
इक राक्षस की नई कहानी
सुन लो आज मेरी ज़ुबानी
फैला इतना विकास देखो
विनाश की बन गया पहचान
जाने कैसी राह पे चले हम
सोच सोच होते लोग हैरान
बड़े ऊंचे महल बने घर हैं
जिनमें छोटे दिल इंसान ।
किस को बनाया मसीहा
किस को कहते रहे शैतान
बहुत ऊंची हैं दुकानें जिनकी
फीके उनके निकले पकवान
इस राक्षस को मिली सुरक्षा
इसकी बड़ी निराली शान
पाया जनता ने क्या उससे
भाग भाग बचाई है जान ।
किस को बनाया मसीहा
किस को कहते रहे शैतान
बहुत ऊंची हैं दुकानें जिनकी
फीके उनके निकले पकवान
इस राक्षस को मिली सुरक्षा
इसकी बड़ी निराली शान
पाया जनता ने क्या उससे
भाग भाग बचाई है जान ।
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