नवंबर 29, 2016

काला धन मिल गया , गरीबों के पास ( सत्ता का उपहास ) डॉ लोक सेतिया

      काला धन मिल गया , गरीबों के पास ( सत्ता का उपहास ) 

                                           डॉ लोक सेतिया 

                      हा-हा-हा  , खुल कर हंसो सभी , उनका चुटकुला मज़ेदार है। 
   
आखिर पता चल ही गया काला धन उन्हीं के पास है जिनके जनधन खाते सरकार ने खुलवाये थे। थानेदार यही हमेशा से करते आये हैं चोरी की रपट लिखने से पहले ही घर के नौकर चाकर को पकड़ लाते और बहुत बार उनसे चोरी की मनवा भी लेते हैं। इस में इक राज़ छुपा रह जाता है कि चोर पुलिस का भाईचारा बना रहता है। कितनी बार जिस की चोरी हुई पुलिस उसी को चोर साबित कर देती है , आपने देखा था किसी को घर में घुसते जैसे सवाल इतना उलझाते हैं कि लोग हाथ जोड़ कहते हैं माफ़ करें कोई चोरी नहीं हुई। सामान गया भाड़ में जान सलामत है इतना क्या कम है। यकीन करें चोरी की शिकायत करना घर पर आफत को बुलाना है। अब सरकार को मालूम हो गया है काला धन बड़े बड़े महल में रहने वालों अमीरों के पास नहीं है , काला धन जनधन खाते वालों के पास जमा है। उनको बता रहे हैं सच सच बता दो अगर बचना है। बस मान लो काली कमाई है और आधा-आधा बांट लो सरकार से। तो बात यहां तक पहुंच ही गई। कमाल है मोदी जी।

               मगर आप सोचते होंगे ये जितने नोट सरकार के ख़ज़ाने में वापस जमा होंगे उनका करेंगे क्या। क्या ये कागज़ के टुकड़े रद्दी वाला खरीदेगा।  जी नहीं ऐसा कुछ नहीं होगा , प्रधानमंत्री जी उनको किसी ऐतिहासिक प्रमाणपत्र की तरह सहेज कर रखेंगे और सभी को दिखाया करेंगे अपना महान कारनामा। आदेश दिया गया है उन तमाम पांच सौ और हज़ार रुपये के नोटों को सरकारी दीवारों में जितनी दरारें दिखती हैं उनको छुपाने को भीतर से चिपका दिया जाये सत्ता की गोंद के साथ। इस तरह किसी को भी कुछ दिखाई नहीं देगा , अंदर क्या है बाहर क्या है। भाई ये जो पब्लिक है नहीं कुछ भी जानती है। आखिर में दुष्यंत कुमार जी की ग़ज़ल के शेर।

                                     अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार

                                     घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तिहार।

                                     इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके-जुर्म हैं

                                     आदमी या तो ज़मानत पर रिहा है या फरार।

                                     आप बच कर चल सकें ऐसी कोई सूरत नहीं

                                     राहगुज़र रोके हुए मुर्दे खड़े हैं बेशुमार।

                                    दस्तकों का अब किवाड़ों पर असर होगा ज़रूर

                                    हर हथेली खून से तर और ज़्यादा बेकरार। 


 

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