आज खारों की बात याद आई ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
आज खारों की बात याद आईजब बहारों की बात याद आई।
प्यास अपनी न बुझ सकी अभी तक
ये किनारों की बात याद आई।
आज जाने कहां वो खो गये हैं
जिन नज़ारों की बात याद आई।
साथ मिल के दुआ थे मांगते हम
उन मज़ारों की बात याद आई।
कुछ नहीं दर्द के सिवा मुहब्बत
ग़म के मारों की बात याद आई।
जब गुज़ारी थी जाग कर के रातें
चांद-तारों की बात याद आई।
दूर रह कर भी पास-पास होंगे
हमको यारों की बात याद आई।
आज देखा वतन का हाल " तनहा "
उनके नारों की बात याद आई।
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