अक्तूबर 24, 2016

क्या इसको मुहब्बत कहते हैं ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

 क्या इसको मुहब्बत कहते हैं  ( कविता ) डॉ  लोक सेतिया 

क्या इसको मुहब्बत कहते हैं
प्रेमिका हो चाहे हो पत्नी
आपकी सोच आपकी समझ
वही रहती है पुरातन पुरुषवादी
औरत के लिये सारे कर्तव्य निभाने को
और पुरुष के लिये सभी अधिकार ।

औरत की  नहीं हो सकती  कभी भी
कोई राय न कोई सोच न  कोई विचार
उसको नहीं सोचने तक का अधिकार
क्या इसको मुहब्बत कहते हैं ।

आप भले कितने शिक्षित हो जायें
आपको बेशक मालूम हो ये भी
होना चाहिये समानता का अधिकार
हर महिला को हर इक पुरुष को भी
आपका धर्म भी देता हो शिक्षा नारी
को आदर देने को , देवी समझ कर ।

लिखा हो वाणी में , समझाया गया हो
" सो किंव मंदा आखिये जिन जन्में राजान  "
तब भी आपको लगता हो श्रेष्ठ हैं पुरुष
नहीं देते  अगर उचित स्थान नारी को ।

फिर भी चाहते अच्छे  इंसान  कहलाना
करते हों पवित्र बंधन के नातों की बातें
क्या इसको मुहब्बत कहते हैं ।

आपको याद अपना  हक निर्णय का
अपने सभी निर्णय
करना चाहते आप
महिला के हर फैसले पर देते आप दखल ।

जो आपका है समझते है वो आपका ही
आपकी मर्ज़ी है जिसे  दें या नहीं दें ।

महिला का जो भी समझते  आपका है
खुद उनको भी नहीं है उस  पे अधिकार ।

ये मानसिकता भला कहला सकती है
उचित उनके लिये जिनको करते प्यार
क्या इसको मुहब्बत कहते हैं ।



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