मार्च 25, 2014

POST : 425 भगवान के लिए अब तो इंसान बनाएं ( आलेख ) डा लोक सेतिया

 भगवान के लिए अब तो इंसान बनाएं ( आलेख ) डा लोक सेतिया

सब से पहले सभी धर्मों के अनुयाईयों से निवेदन कि कृपया इसको सही परिपेक्ष्य में समझें। मेरा किसी देवी देवता धर्म गुरु के प्रति , किसी की आस्था के प्रति रत्ती भर भी विरोध नहीं है। सच कहूं तो जो भी सभी धर्म सिखाते हैं मैंने उसी को समझने का प्रयास ही किया है। कल इक मित्र की वाल पर उनके किसी मित्र की पोस्ट को पढ़ा। जिसमें बताया गया था कि वे अपने धर्मस्थल की यात्रा पर गये और उनके साथ कोई घटना घटी और उनको सहायता की ज़रूरत आन पड़ी। उनके पास किसी का दिया एक कार्ड था और जब सम्पर्क किया तो जिन का निकला वो भी तब वहीं उस धर्मस्थल की यात्रा पर थी। इसको उन्होंने अपने ईष्ट देव की अनुकंपा बताया हुआ था। मैंने इसको उनकी इंसानियत समझा जिन्होंने उनकी सहायता की। मैंने सोचा क्या सभी देवी देवताओं को इसी तरह गुणगान कर ही भगवान नहीं बनाया गया है। और यहां सबसे पहला प्रश्न यही मन में आया कि वहां कितने ही लोग थे क्या उनमें कोई भी सहायता नहीं करता अगर उनकी जान पहचान का कोई नहीं मिल पाता। क्या ये तो और भी विडंबना की बात नहीं होती कि इतने धार्मिक लोगों में सच्चा धर्म किसी को याद नहीं होता। मगर सच तो यही है , शायद ही कोई असहाय को सहारा देने को तत्पर रहता है। मैंने देखा कि हम जिस धर्म ग्रंथ की पूजा करते हैं उसकी शिक्षा को मानते क्या समझते तक नहीं। हैरानी है ऐसे में हम सोचते हैं ईश्वर प्रसन्न हो जाता होगा सर झुकाने से और चढ़ावा चढ़ाने से। जिसको दाता कहते उसको भिखारी समझते हैं क्या हम , सोचना चाहिए। शायद अब इस बात को समझना होगा कि इंसान की इंसानियत बड़ी है किसी भी इष्ट देव देवता गुरु खुदा से। यकीन करें अगर हम अब भगवान बनाना छोड़ इंसान को इंसान बनाने का प्रयास करें तो न कोई भूखा रहेगा न कोई बेसहारा। वही पुराना गाना , इंसान का इंसान से हो भाईचारा , यही पैगाम हमारा। मैं देखता हूं फेसबुक पर हर कोई अपने अपने देव की तस्वीर को टैग कर जय जयकार करता रहता है। मुझे नहीं लगता ऐसा करने से किसी का कोई कल्याण होता होगा। काश लोग अपने धर्म का डंका पीटने की जगह उसका पालन कर कोई सार्थक काम कर रहे होते औरों की सहायता करने का। तब ऐसे एक कहानी नहीं होती कभी कभी , हर जगह कोई इंसान इंसानियत निभा रहा होता। शायद भगवान की किसी को ज़रूरत ही नहीं होती। किसी शायर का शेर है , अब कोई धर्म ऐसा भी चलाया जाये , जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाये। 

 

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