जनवरी 09, 2014

POST : 399 बड़ा जूता , ज़्यादा पालिश ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

    बड़ा जूता , ज़्यादा पालिश ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

हमने बड़े अधिकारी से कहा " विभाग आपका बहुत ही बदनाम है। भ्रष्टाचार खुलेआम है , बिना रिश्वत होता नहीं किसी का भी काम है। " अधिकारी बोले साफ साफ कहो आपका कैसा काम है , हर काम का फिक्स दाम है। सच पूछो तो इसमें ही आराम है , जो भी है सरेआम है। हमको तो काम ही काम है , क्या बतायें सुबह है कि शाम है। पैसे का ही खेल सारा है। कर्मचारियों में कायम भाईचारा है। हर दिन का यही किस्सा है। बराबर सभी का हिस्सा है। लेने और देने वाले जब राज़ी हैं। आप किस बात के क़ाज़ी हैं। बेबुनियाद आपके इल्ज़ाम हैं। मुफ्त में कर रहे बदनाम हैं। नासमझ बीस पचास ले लेते हैं। ईमान को सस्ते में बेच देते हैं। हम कभी न ऐसा करते हैं। जब बिकते हैं अपना घर भरते हैं। वे ईमानदार कहलाते हैं , जो खुद भी खाते हैं और दूसरों को भी खिलाते हैं। हर दिन सब के काम आते हैं। जो भी देता है उसका ही हुक्म बजाते हैं। कुछ नोट मिल जाते हैं , सब चेहरे खिल जाते हैं। और नहीं दुनिया में कोई नाता है। सब जगह झूठा बही खाता है। चंद सिक्कों में बेड़ा पार है। नौ नकद न तेरह उधार है। तेल है तेल की धार है , आजकल का ये सच्चा प्यार है। आप तो बेवजह घबराते हैं , न खुद खाते हैं न हमें खिलाते हैं। खाली बातें ही बनाते हैं। बातों से कभी पेट भरता है , तुम क्या जानो पापी पेट क्या करता है। भ्रष्टाचार भी इक तपस्या है , ये नहीं कोई समस्या है। यह हर रोग की दवा है। तुम भी उधर चलो जिधर की हवा है। समझदारी से राह आसान हो जाती है , कुछ नोटों से गहरी पहचान हो जाती है। वरना यहां किसे कौन जानता है , जब भाई की भाई तक नहीं मानता है। सौ दो सौ लेने वाले रंगे हाथ पकड़े जाते है। वही रिश्वतखोर कहलाते हैं। लाखों खाने वाले नहीं हाथ आते हैं। करोड़ों खाने वाले सब छूट जाते हैं। "
    " रुपया दो रुपया भीख मांगना शर्म की बात होती है। चंदा मांगने वालों की और ही बात होती है। तब बस देने वालों की औकात होती है। कमीशन और दलाली बाज़ार के बड़े शो रूम वाला खेल है। भीख सड़क किनारे लगी सेल है। नेताओं को एंटीसिपेटरी बेल है , रहने को रेस्ट हाउस कहने को जेल है। भ्रष्टाचार तो दिलों का मेल है। इसकी बनी न कोई नकेल है। आप भी प्यार मुहब्बत को चलने दीजिये , जलने वालों को जलने दीजिये। चाहने वाले कहां घबराते हैं , राह नई रोज़ बनाते हैं। देश में कितने घोटाले हुए , कितने चेहरे काले हुए। कभी दलाली कभी हवाले हुए। सब के सब बरी होते रहे , आप तब चैन से सोते रहे। जाने कब सीधी राह पे आओगे , बहती गंगा में नहाओगे। अब भी नहीं समझे तो पछताओगे , प्यासे आये थे प्यासे ही जाओगे। "
                  सुनकर उनका प्रवचन हम तो घबरा गये , जाने कहां हैं हम लोग आ गये। दिन में भी लग रही रात है। हां ये इक्कीसवीं सदी की बात है। अधिकारी से बचकर जो बाहर को आये। बड़े बाबू से थे जा टकराये। वो मुस्कुरा कर बोले तो उनसे मिल आये , होंठ लगता है सिल आये। कहना जो हमारा मान जाते , सस्ते में ही छूट जाते। मामला जितना ऊपर जाता है , रिश्वत का भाव बढ़ता जाता है। बड़ा जूता अधिक पालिश खाता है। अब आपका काम करने से सब कर्मचारी डर गये हैं। समझो रिश्वत के दाम चढ़ गये हैं। ईमानदारी की बात करना छोड़ दीजिये , भ्रष्टाचार से नाता जोड़ लीजिये। काम आपका हो जायेगा। वहीं कोई सरकारी साधु भजन गा रहा था " जो खोयेगा वही पायेगा।  "

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