हां ( लघुकथा ) डॉ लोक सेतिया
" बेटी तूं भाग्यशाली है जो इतने अमीर खानदान से तेरे लिए रिश्ता आया है। बिना किसी दहेज के ही उन्हें केवल दुल्हन ही चाहिये , फिर भी हम जैसे मध्यम वर्ग वाले घर से खुद मांग रहे हैं लड़की का हाथ। तुम नहीं जानती हम कब से इस चिंता में थे कि तुम दोनों बहनों के विवाह के लिये इतना पैसा कहां से लाएंगे दहेज देने के लिये। "माँ अपनी बेटी को समझा रही है। " मगर माँ ये उसकी दूसरी शादी है , मैंने सुना है कि उसकी पहली पत्नी विवाह के साल भर बाद ही जल कर मर गई थी। लोग आरोप लगाते हैं ससुराल के लोगों ने जला दिया था। कहीं मेरे साथ भी वही न हो जाये " डरी सहमी बेटी माँ को मन की बात कह रही है।
" बेटी घबरा मत , ये डर अपने मन से निकल दे। भगवान जाने वो खुद जली थी या उन्होंने उसको जला कर मार डाला था , मगर उस केस से बहुत मुश्किल से उनकी जान बची है। अब भूल कर भी वे अपनी बहू को परेशान नहीं करेंगे। अब तो वे तुझे और अधिक लाड़ प्यार से रखेंगे ताकि उनपर कोई नया आरोप फिर न लग सके। उनका पूरा प्रयास होगा समाज में अपनी छवि को सुधारने का और पुराने इल्ज़ाम को झूठा साबित करने का "।
माँ की बातों से बेटी को पूरा विश्वास हो गया है अपनी सुरक्षा का। उसने हां कह दी है।
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