सच्चे प्यार की बात ( आलेख ) डा लोक सेतिया
एक कहानी है । इक सन्यासी की कुटिया के सामने एक नौजवान युवक रहता था । इक दूध बेचने वाली दोनों को रोज़ दूध देने आया करती थी । साधू सारा दिन हाथ में माला लेकर प्रभु नाम का जाप किया करता । साधू को अचरज हुआ देख कर कि दूध बेचने वाली जब उसको दूध देती तो माप तोल कर लेकिन उस नवयुवक के बर्तन में बिना माप तोल किये ही डाल दिया करती है । एक दिन साधू ने पूछ ही लिया कि आप उसका हिसाब किस तरह रखती हो , आप तो कभी देखती ही नहीं कि कितना डाला नवयुवक के बर्तन में आपने । दूध बेचने वाली का जवाब था कि मैं उसको प्यार करती हूं ,उसके साथ कम ज़्यादा का हिसाब कैसे रख सकती हूं । उससे बदले में लेना नहीं मुझे कुछ भी । साधू को लगा कि एक दूध बेचने वाली जिसको प्यार करती है उसका कोई हिसाब नहीं रखती और मैं हूं कि जिस परमात्मा से प्यार करने की बात कहता हूं उसके नाम की माला गिनता रहता हूं । और उस साधू ने माला को फैंक दिया और कहा कि माई आपने मुझे सच्चा प्यार क्या है ये सबक सिखलाया है मैं आपको अपना गुरु मानता हूं ।आज कहीं धर्म के नाम पर प्यार करने वालों का विरोध हो रहा है तो कहीं कुछ लोग प्यार का अर्थ समझे बिना किसी को सज़ा देते हैं कि उसने उनका प्यार स्वीकार नहीं किया । दोनों प्यार से अनजान हैं । कोई भी धर्म प्यार को गुनाह नहीं बताता है , पढ़ लो सभी ग्रन्थों को खोलकर । प्यार इबादत है खुदा है यही लिखा हुआ मिलेगा , बस यही नहीं लिखा कि प्यार है क्या । मगर हर कथा कहानी में प्यार की बात ही है । राधा मोहन का प्यार , मीरा श्याम का प्यार । शिव पार्वती की कथा किसको नहीं मालूम , एक जन्म में नहीं अगले जन्म में भी फिर से उसी शिव को वर बनाने की चाह । अब आप हिसाब लगाने लगोगे उनकी उम्र के अंतर का । फिर वही बात , प्यार में कोई भी हिसाब नहीं , किसी तरह का बंधन नहीं , कोई अनुबंध नहीं । मगर प्यार पा लेने का नाम नहीं है और जो पा लेने को ही प्यार समझता है उसको प्यार का अर्थ समझने को कई जन्म लेने होंगे । ये मैं नहीं कह रहा , फिल्म दो बदन की नायिका कहती है खलनायक को । एक और पुरानी फिल्म में नायिका के पति को जब उसके पुराने प्रेमी की बात पता चलती है तब नायिका बताती है प्यार का अर्थ । वो बोलती है कि हम साथ साथ पढ़ते थे और मुश्किल से कुछ मिंट ही मिलते थे मुलाकात करने को , अगर उस सारे वक़्त को जोड़ दें तो वो साड़े सात घंटे भी नहीं होंगे , लेकिन उन कुछ घंटो में मुझे जितना प्यार उससे मिला उतना तुमसे शादी के बाद साड़े सात सालों में भी नहीं मिला और उन साड़े सात घंटो में उसने मुझे कभी छुआ तक नहीं । अब आजकल के युवकों को कौन बतायेगा प्यार क्या है । उनको तो इस दौर की फ़िल्में सीरियल आदि कुछ और ही पढ़ा रहे हैं , विज्ञापन भी । वासना को प्यार कहना किसी अपराध से कम नहीं है । पुरानी फिल्मों में कितनी बार सच्चे प्यार को त्याग बतलाया गया । सच्चा प्यार आदमी को खुदा बना देता है , जो इन्सान को शैतान बनाये उसको प्यार नहीं कह सकते । दिल एक मंदिर ,हँसते ज़ख्म , सफ़र , ख़ामोशी जैसी फिल्मों में बताया गया कि प्यार किसको कहते हैं । हमने देखी है उन आँखों की महकती खुशबू , हाथ से छू के उसे रिश्तों का इलज़ाम न दो । सिर्फ एहसास है ये रूह से महसूस करो , प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो । यही है परिभाषा सच्चे प्यार की । अंत में एक प्रेम कहानी इस आज के युग की कुछ ही साल पुरानी ।
महाराज कृष्ण जैन का नाम सुना होगा आपने भी । हरियाणा के अम्बाला में रहते थे , साहित्य के साधक थे , खुद ही नहीं लिखते थे बल्कि औरों को भी कहानी लिखना सिखाते थे पत्राचार द्वारा । और उर्मि जी जो मध्य प्रदेश में सरकारी सेवा में थी उनसे पत्राचार कर सीखा करती । एक बार शिमला जाते हुए उर्मि जी रस्ते में अम्बाला उनसे मिलने चली गई । देख कर हैरान हो गई कि जो पर्वतों की झरनों की बात और आशावादी बातें लिखता है वो वास्तव में जन्म से ही चल फिर नहीं सकता , एक कमरे तक सिमटी है दुनिया उसकी । आप सोच सकते हैं कोई ऐसे व्यक्ति से प्यार करे विवाह करे और जीवन भर उसका साथ नभाने के बाद भी उसके सपने को साकार करे । लेकिन उर्मि जी आज भी महाराज कृष्ण जैन जी के काम को जारी रखे हैं । कोई भी जाकर देख सकता है अम्बाला छावनी में जहाँ वो लेखन विद्यालय और साहित्य की पत्रिका निरंतर निकाल रही हैं ।
बात शुरू की थी प्यार की । कोई करे तो सही सच्चा प्यार , जितनी बार चाहे , जिस जिस से , चाहे तो सारी दुनिया से । किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार , किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार , जीना इसी का नाम है । आओ आज संकल्प करें प्यार करने का सभी से सच्चे दिल से , मिटा दें दुनिया से नफरत का निशां ।
ये पोस्ट उर्मि कृष्ण जी को समर्पित करता हूं ।
