जाना था कहाँ आ गये कहाँ ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
ढूंढते पहचान अपनीदुनिया की निगाह में ,
खो गई मंज़िल कहीं
जाने कब किस राह में ,
सच भुला बैठे सभी हैं
झूठ की इक चाह में ।
आप ले आये हो ये
सब सीपियां किनारों से ,
खोजने थे कुछ मोती
जा के नीचे थाह में ,
बस ज़रा सा अंतर है
वाह में और आह में ।
लोग सब जाने लगे
क्यों उसी पनाह में ,
क्यों मज़ा आने लगा
फिर फिर उसी गुनाह में
मयकदे जा पहुंचे लोग
जाना था इबादतगाह में ।
Bahut khoob bdhiya 👌👍
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