अगस्त 26, 2013

POST : 361 परीक्षा प्रेम की ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

 परीक्षा प्रेम की  ( कविता  )  डॉ लोक सेतिया 

उसने कहा है
मुझे लाना है
नदी के उस पार से
इक फूल उसकी पसंद का ।

मगर नहीं पार करना
तेज़ धार वाली गहरी नदी को
उस पर बने हुए पुल से
न ही लेना है सहारा
कश्ती वाले का ।

मालूम है उसे भी
नहीं आता है तैरना मुझको
अंजाम जानते हैं दोनों
डूबना ही है आखिर
डर नहीं इसका
कि नहीं बच सकूंगा मैं
दुःख तो इस बात का है
कि मर के भी मैं
पूरी नहीं कर सकूंगा
अपने प्यार की
छोटी सी अभिलाषा ।

परीक्षा में प्यार की
उतीर्ण नहीं हो सकता
मगर दूंगा अवश्य
अपने प्यार की
परीक्षा मैं आज । 
 

 

अगस्त 23, 2013

POST : 360 सबक ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

     सबक ( कविता ) - डॉ लोक सेतिया 

जीवन का तुम्हारे
कुछ बुरा वक़्त हूं
आया हूं मगर
नहीं रहूंगा हमेशा
चला जाऊंगा मैं जब
लौट आयेगा अच्छा वक़्त ।

मुझे देख कर तुम
घबराना मत कभी
सीखना सबक मुझसे
आ जायेगा तुमको
पहचानना अपने पराये को ।

भूल मत जाना मुझे
मेरे जाने के बाद भी
याद रखना हमेशा
निभाया साथ किसने
छोड़ गया कौन इस हाल में ।

खोना मत कभी उनको
हैं जो आज तुम्हारे साथ
गये चले जो छोड़कर
मत करना उनका इंतज़ार
कभी आयें जो वापस
फिर नहीं करना ऐतबार । 
 

 

अगस्त 20, 2013

POST : 359 हक़ नहीं खैरात देने लगे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हक़ नहीं खैरात देने लगे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हक़ नहीं खैरात देने लगे
इक नई सौगात देने लगे ।

इश्क़ करना आपको आ गया
अब वही जज़्बात देने लगे ।

रौशनी का नाम देकर हमें
फिर अंधेरी रात देने लगे ।

और भी ज़ालिम यहां पर हुए
आप सबको मात देने लगे ।

बादलों को तरसती रेत को
धूप की बरसात देने लगे ।

तोड़कर कसमें सभी प्यार की
एक झूठी बात देने लगे ।

जानते सब लोग "तनहा" यहां
किलिये ये दात देने लगे । 
 

 

अगस्त 12, 2013

POST : 358 चाहत प्यार की ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

       चाहत प्यार की  ( कविता  )  डॉ लोक सेतिया 

दूर दूर तक फैली है
नफरत की रेत यहां 
सब भटक रहे हैं
इक जलते हुए रेगिस्तान में
प्यार के अमृत कलश की
है सभी को तलाश ।

मिलती है हर किसी को
हर दिन हर पल नफरत
मिलता है इस जहां में
केवल तिरिस्कार ही तिरिस्कार
भाग जाना चाहता है हर कोई
इस दुनिया से किसी दूसरी दुनिया में ।

मगर नहीं मालूम किसी को भी
ऐसे किसी जहान का पता
मिल जाये जहां पर सभी को
कोई एक तो अपना उसका
जिससे कर सके प्यार और स्नेह की
पल दो पल को ही सही  कुछ बातें ।

भर चुका है सभी का मन
झूठे दिखावे की रिश्ते नातों की बातों से
जी रहे हैं घुट घुट कर लोग
अपनी अपनी इस पराई दुनिया में
बिना किसी का सच्चा प्यार पाये ।

दम घुटता है
सांसें टूटती हैं
धुंधली नज़रों को नहीं आता
कुछ भी नज़र कहीं पर भी
यूं ही ढोये जा रहे हम सब
बोझ अपने अपने जीवन का
बस इक प्यार की चाहत में
तमाम उम्र । 
 

 

अगस्त 06, 2013

POST : 357 अब लगे बोलने पामाल लोग ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

अब लगे बोलने पामाल लोग ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

अब लगे बोलने पामाल लोग 
देख हैरान सब वाचाल लोग ।
 
कौन कैसे करे इस पर यकीन 
पा रहे मुफ़्त रोटी दाल लोग ।

ज़ुल्म सहते रहे अब तक गरीब 
पांव उनके थे हम फुटबाल लोग ।

मुश्किलों में फंसी सरकार अब है
जब समझने लगे हर चाल लोग ।

कब अधिकार मिलते मांगने से
छीन लेंगे मगर बदहाल लोग ।

मछलियां तो नहीं इंसान हम हैं  
रोज़ फिर हैं बिछाते जाल लोग । 

कुछ हैं बाहर मगर भीतर हैं और
रूह "तनहा" नहीं बस खाल लोग । 
 
पामाल =  दबे कुचले  
 
वाचाल = बड़बोले 



अगस्त 05, 2013

POST : 356 जाना था कहाँ आ गये कहाँ ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

 जाना था कहाँ आ गये कहाँ  ( कविता  ) डॉ लोक सेतिया

ढूंढते पहचान अपनी
दुनिया की निगाह में , 

खो गई मंज़िल कहीं 
जाने कब किस राह में , 

सच भुला बैठे सभी हैं
झूठ की इक चाह में ।

आप ले आये हो ये
सब सीपियां किनारों से , 

खोजने थे कुछ मोती
जा के नीचे थाह में ,  

बस ज़रा सा अंतर है 
वाह में और आह में ।

लोग सब जाने लगे
क्यों उसी पनाह में ,

क्यों मज़ा आने लगा
फिर फिर उसी गुनाह में 

मयकदे जा पहुंचे लोग 
जाना था इबादतगाह में ।